शिव का शरभावतार - नृसिंह की क्रोधाग्नि से बचायी सृष्टि

Thu, Jun 01, 2017
टीम एस्ट्रोयोगी
 टीम एस्ट्रोयोगी के द्वारा
Thu, Jun 01, 2017
Team Astroyogi
 टीम एस्ट्रोयोगी के द्वारा
article view
480
शिव का शरभावतार - नृसिंह की क्रोधाग्नि से बचायी सृष्टि

भले ही भगवान भोलेनाथ को विध्वसंक कहा जाता हो क्योंकि मान्यता है कि सृष्टि के नव सृजन के लिये विध्वसंक की भूमिका भगवान शिव ही निभाते हैं लेकिन असल में देखा जाये तो समय-समय पर भगवान शिव शंकर जी ने जगत का कल्याण किया है। कभी वे विष को अपने कंठ में धारण कर लेते हैं तो कभी गंगा मैया के वेग से धरा को बचाने के लिये उन्हें अपनी जटा में लपेट लेते हैं। इसी प्रकार जब जब कोई स्थिति अनियंत्रित होती है तो उससे निपटने के लिये भी उन्हें ही आगे किया जाता है। इसी के लिये भगवान शिव 19 बार अवतार रूप में अवतरित हुए। अपने एक लेख में हमनें शिव के वृषभावतार की कथा बताई है जिसमें उन्होंने भगवान विष्णु के दैत्य पुत्रों का संहार किया था लेकिन अपने इस अवतार में तो स्वयं भगवान विष्णु को ही उन्हें थामना पड़ा था।

 

क्या है शिव के शरभ अवतार की कथा

हुआ यूं कि हरिण्यकश्यप के आतंक के खिलाफ खड़े उनके ही पुत्र भक्त प्रह्लाद को मारने के लिये हरिण्यकश्यप ने अनेक चालें चली लेकिन भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। परंतु हरिण्यकश्यप का आतंक फिर भी बढ़ता ही जा रहा था क्योंकि उसे वरदान था कि वह न नर से मारा जायेगा न पशु से. न दिन में न रात में लेकिन यह तो सर्वमान्य सत्य है कि जो जन्मा है वह मृत्यु को भी प्राप्त अवश्य होगा और भगवान भक्तों के सहायक अवश्य बनेंगें। अब भक्तों की पुकार सुनकर और धर्म की हानि होते देख स्वयं श्री हरि यानि विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर हरिण्यकश्यप का वध करना पड़ा।

हरिण्यकश्यप का वध तो हो गया लेकिन अब भी वे क्रोधित ही थे। उनके क्रोध से समस्त जगत भयभीत हो गया। देवता तक कांपने लगे थे। तब सब ने शिव की शरण ली। अब नरसिंह को नियंत्रित करने के लिये शिव ने शरभावतार धारण किया।

 

क्या है शरभावतार व कैसे किया नरसिंह के क्रोध को शांत

अपने शरभावतार में भगवान शिव शंकर ने आधा स्वरूप मृग यानि के हिरण का धारण किया व बाकि शरीर शरभ नामक पक्षी का। शरभ पक्षी के बारे में मान्यता है कि पौराणिक काल में यह एक ऐसा प्राणी था जो शेर से भी शक्तिमान था व जिसके आठ पैर होते थे।

नृसिंह अवतार के क्रोध को शांत करने के लिये पहले तो शिव ने शरभावतार धारण कर नृसिंह की स्तुति आरंभ की लेकिन तब भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। फिर शिव ने अपना रोद्र रूप दिखाते हुए नृंसिह को अपनी पूंछ में लपेट लिया व उन्हें ब्रह्मांड में ले उड़े। फिर क्या था, भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि एकदम शांत हो गई और वे शिव के शरभावतार से क्षमा याचना के लिये उनकी स्तुति करने लगे।

इस प्रकार भगवान शिव ने शरभावतार धारण कर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि से सृष्टि की रक्षा की।

भगवान शिव की पूजा कर आप अपनी कुंडली में ग्रहों के दुष्प्रभावों से भी बच सकते हैं। अपनी राशिनुसार पूजा विधि जानने के लिये एस्ट्रोयोगी पर देश के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों से परामर्श करें।

यह भी पढ़ें

शिव वृषभ अवतार - क्यों किया विष्णु पुत्रों का संहार?   |   शिव मंदिर – भारत के प्रसिद्ध शिवालय   |   नटराज – सृष्टि के पहले नर्तक भगवान शिव   |   

आखिर क्यों भस्म में सने रहते हैं भगवान भोलेनाथ   |   यहाँ भगवान शिव को झाड़ू भेंट करने से, खत्म होते हैं त्वचा रोग   |   

विज्ञान भी है यहाँ फेल, दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है यह शिवलिंग   |   चमत्कारी शिवलिंग, हर साल 6 से 8 इंच बढ़ रही है इसकी लम्बाई   | 

article tag
Hindu Astrology
Spirituality
Vedic astrology
article tag
Hindu Astrology
Spirituality
Vedic astrology
नये लेख

आपके पसंदीदा लेख

अपनी रुचि का अन्वेषण करें
आपका एक्सपीरियंस कैसा रहा?
facebook whatsapp twitter
ट्रेंडिंग लेख

ट्रेंडिंग लेख

और देखें

यह भी देखें!