वैसे तो पूरे वर्ष में मां दुर्गा यानि देवी की पूजा का पर्व वर्ष में चार बार आता है लेकिन साल में दो बार ही मुख्य रूप से नवरात्रि पूजा की जाती है। प्रथम नवरात्रि चैत्र मास में शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होते हैं और रामनवमी तक चलते हैं। वहीं शारदीय नवरात्र अश्विन माह की शुक्ल प्रतिपदा से लेकर विजयदशमी के दिन तक चलते हैं। इन्हें महानवरात्रि भी बोला जाता है। दोनों ही नवरात्रों में देवी का पूजन नवदुर्गा के रूप में किया जाता है। दोनों ही नवरात्रों में पूजा विधि लगभग समान रहती है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के नवरात्रों के बाद दशहरा यानि विजयदशमी का पर्व जाता है।
वर्ष 2020 में शारदीय (आश्विन) नवरात्र व्रत 17 अक्टूबर से शुरु होंगे व 26 अक्टूबर 2020 तक रहेंगें। नवरात्र में सर्वप्रथम व्रत का संकल्प लेना चाहिये। क्योंकि लोग अपने सामर्थ्य अनुसार दो, तीन या पूरे नौ के नौ दिन उपवास रखते हैं। इसलिये संकल्प लेते समय उसी प्रकार संकल्प लें जिस प्रकार आपको उपवास रखना है। इसके पश्चात ही घट स्थापना की प्रक्रिया आरंभ की जाती है।
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व्रत का संकल्प लेने के बाद, मिट्टी की वेदी बनाकर ‘जौ बौया’ जाता है। इसी वेदी पर कलश स्थापित किया जाता है। दरअसल हिंदूओं में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है। कलश को भगवान गणेश का ही रूप माना जाता है। कलश स्थापना से पहले अच्छे से पूजा व स्थापना स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लें। पूजन में समस्त देवी-देवताओं का आह्वान करें। कलश में सात तरह की मिट्टी, सुपारी व पैसे रखे जाते हैं। पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। मिट्टी की वेदी पर सतनज व जौ बीजे जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को पारण के समय काटा जाता है। कलश पर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है। इस दिन "दुर्गा सप्तशती" का पाठ किया जाता है। पाठ पूजन के समय अखंड जोत जलती रहनी चाहिए।
नवरात्रि की पहली तिथि में दुर्गा माँ के प्रारूप माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती है| इस दिन सभी भक्त उपवास रखते हैं और सायंकाल में दुर्गा माँ का पाठ और विधिपूर्वक पूजा करके अपना व्रत खोलते हैं|
घट स्थापना तिथि व मुहूर्त - 06:27 से 10:13 (17 अक्टूबर 2020)
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 17, 2020 को 01:00 बजे से
प्रतिपदा तिथि समाप्त - अक्टूबर 17, 2020 को 21:08 बजे तक
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