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शनि स्तोत्र, एक ऐसे देव जो न्यास के देव माने जाते हैं। शनि का नाम सुनते ही अधिकतर लोग भयभीत हो जाते हैं। कहते हैं कि शनि जिस पर नाराज हो जाएं, वह राजा से रंक बन जाता है। परंतु यदि ये प्रसन्न हो जाए तो रंक राजा बन जाता है। हम आपको बता दें कि शनि देव एक ऐसे देव हैं जो सबसे जल्दी प्रसन्न होते हैं और इन्हें प्रसन्न करने के लिए केवल सही मार्ग पर चलना ही काफी है। इसके साथ यदि शनि स्तोत्र का पाठ कोई जातक करता है तो यह सोने पर सुहागा हो जाता है। यदि आप शनि देव की कृपा पाना चाहते हैं तो आपको चक्रवर्ती सम्राट राजा दशरथ रचित इस शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।
एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
शनि स्तोत्र के लाभ
शनि स्तोत्र का नित्य पाठ करने की सलाह ज्योतिष भी देते हैं। शनि स्तोत्र का पाठ वैसे हर कोई कर सकता है। परंतु ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि इस स्तोत्र का पाठ उन्हें जरूर करना चाहिए जो जातक शनि के कोप से पीड़ित हो। ऐसा करने पर उन्हें शनि से राहत मिलती है। शनि की कृपा प्राप्त होती है। जिससे उससे सारे कष्ट दूर होते हैं। यदि आपकी कोई मनोकामना है तो आप शनि स्तोत्र का पाठ कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं। परंतु ध्यान रहें कामना आपके हित में परंतु इससे किसी का अहित न हो। अन्यथा आपको इसका दंड जरूर भोगना पड़ेगा। शनि की कृपा से आप भय मुक्त होते हैं आपको आरोग्य का वर प्राप्त होता है। ऐसे में शनि स्तोत्र का पाठ करना लाभदायक है।
शनि स्तोत्र पाठ विधि
शनि स्तोत्र का पाठ करने लिए नित्य दिन की तरह आप स्नान कर शुद्ध हो लें। इसके बाद शनिदेव की मुर्ति या शिला को लकड़ी के पटरे या चौकी पर काला कपड़ा बिछा कर रख दें। इसके बाद आप गणेश जी का आह्वाहन कर लें। फिर आप शनि देव की मुर्ति पर तिल का तेल व तिल अर्पित करें। इसके बाद आप शनि स्तोत्र का पाठ आरंभ करें। पाठ समाप्त होने के बाद हो सके तो शनि चालिसा व हनुमान चालिसा का पाठ करें। फिर आरती कर मिश्री व लड्डू का प्रसाद सभी में बांट दें।