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इस खंड में हम योग (Yoga) के बारे में विस्तार से जानेंगे। जैसा की हम सब जानते हैं। योग हमारे जीवन व शरीर के लिए कितना महत्वपूर्ण है। योग से न केवल हमारी शारीरिक क्षमता का विकास होता है। अपितु यह हमारे ज्ञानेंद्रियों को भी प्रभावित करता है। इस लेख में हम योग क्या है? योग की उत्पत्ति कैसे हुई?, योग का इतिसाह क्या है?, योग के पीछे का विज्ञान? योग कितने प्रकार का है? और योग के क्या लाभ हैं? आइये जानते हैं योग (Yoga) के बारे में -
योग अति प्राचिन क्रिया है। इसके इसमें साधक अपने जीवन के कई आयामोें को जानते व उसे पाने की कोशिश करता है। योग में से हम अपने वास्तविक क्षमता को पहचानने में सफल होते हैं। योग के सहयोग से हम अपने शारीरिक क्षमता को बढ़ाने में सक्षम बनते हैं। यह हमें तन व मन दोनों ही पहलुओं के लिए एक चमत्कारी परिणाम प्रदान करता है। योग असल में कई आसनों का संकलन हैं। जिसका अभ्यास कर हम अपने चेतना को साधने में सफल होते हैं।
योग की उत्पत्ति का कोई ऐसा प्रमाण नहीं जिससे यह पता चल सके कि वास्तव में योग (Yoga) की उत्पत्ति कब हुई? परंतु लगभग दस हजार वर्ष से अधिक समय से भारत में इसका अभ्यास किया जा रहा है। ऐसे कई हिंदू धर्म ग्रंथ व उपनिषद हैं जिनमें योग का विवरण मिलता है। पतंजलि योग सूत्र इसका सबसे बड़ा साक्ष्य है। परंतु कई विशेषज्ञ इसे और भी पहले का मानते हैं। धार्मिक मान्यताओं में भगवान शिव को योग का जनक कहा है। इसी लिए शिव को आदियोगी के नाम से भी जाना जाता है। योग की उत्पत्ति शिव से ही हुई है। माना जाता है कि शिव की आराधाना कर सप्तऋषियों में से एक अगस्त मुनि ने संपूर्ण भारतीय उप महाद्वीप का भ्रमण कर इस यौगिक तरीके को लोगों तक पहुंचाया और इसे संस्कृति का हिस्सा बनाया।
योग (Yoga) दस हजार साल से भी अधिक समय से प्रचलन में है ऐसा माना जाता है। इसका वर्णन नासदीय सूक्त में और सबसे पुराने साहित्य ऋग्वेद में पाया गया है। जो हमें एक बार फिर सिंधु-सरस्वती सभ्यता के करीब ले जाता है। इसी सभ्यता से पशु पति के मुहर पर योग मुद्रा की एक आकृति है, जो उस प्राचीन काल में योग की व्यापकता को दर्शाती है। इसके अलावा उपनिषदों, बृहदअरण्यक में भी ऐसे विभिन्न शारीरिक अभ्यासों का उल्लेख मिलता है जो अब योग का एक अभिन्न अंग बन चुके हैं। वर्तमान योग का उल्लेख कहा जाता है कि कठोपनिषद में मिलता है, जो यजुर्वेद का एक मुख्य और महत्वपूर्ण उपनिषद है। भगवद गीता के साथ महाभारत में भी योग का एक विस्तृत उल्लेख मिलता है।
वर्तमान में पतंजलि योग सूत्र को योग जनक माना जाता है। विशेषज्ञ इसके सूत्र को योग (Yoga) के लिए सबसे प्रभावी मानते हैं। इसी सूत्र को ध्यान रखते हुए आज योग का अभ्यास किया जाता है। जिससे इसका सबसे प्रभावी परिणाम प्राप्त होता है।
योग के पीछे का वैज्ञानिक तथ्य देखा जाए को वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि जब कोई व्यक्ति योग करता है तो वह शारीरिक व्यायाम की तुलना में काफी कम ऊर्जा खर्च करता है, जबकि सामान्य व्यायाम के मुकाबले योग से काफी अधिक लाभ होता है। विज्ञान मान्यताओं को नहीं मानता है। विज्ञान खोज व परीक्षण और उसके परिणाम को मानता है। उसी तरह योग भी मान्यता से शुरू नहीं होता। यह भी खोज, जिज्ञासा तथा परीक्षण से शुरू होता है। इसलिए योग (Yoga) के लिए केवल प्रयोग शक्ति की आवश्यकता है, प्रयोग करने की सामर्थ्य की जरूरत है।
योग के प्रकार की बात करें तो योग में कई तरह के अभ्यासों और तरीकों को शामिल किया गया है। योग का पहला प्रकार ज्ञान योग या दर्शनशास्त्र के नाम से जाना जाता है। ज्ञान योग में अध्ययन व अध्यापन पर जोर दिया जाता है। विशेषकर दर्शनशास्त्र पर, यह किसी भी क्षेत्र में हो सकता है। इसके बाद नंबर आता है भक्ति योग जिसे भक्ति-आनंद का पथ के नाम से भी जाना जाता है। इस योग में ईश्वर से जुड़ने का अभ्यास करना शामिल है। इस योग (Yoga) का अभ्यास कर जीव परमात्मा से संपर्क जोड़ता है। तीसरा योग है कर्म योग जिसे सुखमय कर्म पथ भी करते हैं। इस योग में जीन अपने कर्म का अभ्यास करता है। सुखमय कर्म को भोगता है। चौथा योग राजयोग, जिसे आगे आठ भागों में बांटा गया है, इसे अष्टांग योग भी कहते हैं। यह योग विभिन्न तरीकों को संतुलित और एकीकृत करने के लिए है। जिसे योग आसन का अभ्यास कहा जाता है।
योग के लाभ की बात करें तो इसके कई फायदे हैं। जिसमें से हम कुछ नीचे लिख रहे हैं।
इसी तरह कई फायदे हैं योग के, जिसे हम इसका अभ्यास कर पा सकते हैं। योग में कई प्रकार के योग हैं, जो अपनी विशेषता के अनुसार हमें परिणाम देते हैं।
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