योग

सूर्य नमस्कार

सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar) योग के सभी आसनों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह एक अकेला ऐसा अभ्यास है जो व्यक्ति को पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुँचाता है। आपके पास समय की कमी है, तो आप स्वयं को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए सूर्य नमस्कार का अभ्यास कर सकते हैं। इस लेख में हम आपको सूर्य नमस्कार क्या है? सूर्य नमस्कार व विज्ञान, सूर्य नमस्कार कैसे करें? इसका क्या लाभ है? इन सभी पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दे रहे हैं जो आपके लिए काफी सहायक होगा। तो आइये जानते हैं सूर्य नमस्कार के बारे में -

सूर्य नमस्कार क्या है?

योग में सूर्य नमस्कार एक ऐसा अभ्यास है जो व्यक्ति को समग्र रूप से लाभ पहुँचाता है। सूर्य नमस्कार का शाब्दिक अर्थ देखा जाए तो इसका अर्थ है सूर्य को अर्पण या नमस्कार करना है, जैसा की हम सभी जानते हैं कि, सूर्य नमस्कार हमारे शरीर को सही आकार देने और मन को शांत व स्वस्थ बनाए रखने का सबसे बेहतर तरीका है। क्योंकि सूर्य नमस्कार कुछ बारह योग आसन का संगम है। इन बारहों योग मिलकर एक योग सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar) बना है। जो निम्मलिखित हैं -
1- प्रणामासन, 2- हस्त उत्तानासन, 3 - उत्तानासन, 4 - अश्व संचालनासन, 5 - चतुरंग दंडासन, 6 - अष्टांग नमस्कार, 7 - भुजंगासन, 8 – अधोमुक्त श्वानासन, 9 - अश्व संचालनासन, 10 – उत्तानासन, 11 - हस्त उत्तानासन, 12 - प्रणामासन है।

सूर्य नमस्कार व विज्ञान

सूर्य नमस्कार का अभ्यास प्रात: काल में जब सूर्य का रंग लाला होता है तब करना सबसे उत्तम माना जाता है। क्योंकि तब उस समय सूर्य से अल्ट्रा वायलेट किरणें निकलती हैं। विज्ञान में इस किरण का काफी महत्व है। वर्तमान में कृत्रिम अल्ट्रा वायलेट किरणों द्वारा कई रोगों का उपचार किया जा रहा है। ऐसे में प्राकृतिक अल्ट्रा वायलेट किरणों में सूर्य नमस्कार का अभ्यास किया जाय तो कितना लाभ होगा, यह कोई भी विचारशील मनुष्य समझ सकता हैं।

सूर्य नमस्कार कैसे करें

सूर्य नमस्कार करने की एक पूरी प्रक्रिया बनायी गई जैसा की हमने पहले ही आपको बताया इस व्यायाम में कुल बारह आसन शामिल हैं। ऐसे में इसकी क्रिया भी बारह अलग भागों में विभाजित है। जो नीचे दिया गया है।

सबसे पहले दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हो जाएं और आँख बंद कर लें। ध्यान अपने आज्ञा चक्र पर केंद्रित करके सूर्य देव  का आह्वान करें। इस दौरान आप सूर्य देव के मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं।

दूसरे चरण में सांस भरते हुए दोनों भुजाओं को ऊपर की ओर ले जाएं तथा हाथों और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। विशुद्धि चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश करें।

तीसरे चरण में सांस को धीरे-धीरे बाहर छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें। अपने हाथों को गर्दन के साथ, कानों से सटाते हुए नीचे ले जाएं और पैरों के दाएं-बाएं ओर जमीन को छुएं। ध्यान रखें घुटने सीधे रहें और माथा घुटनों को स्पर्श करे। आप अपना ध्यान मणिपूरक चक्र पर केन्द्रित करें जो आपके नाभि के पीछे स्थित हैं। कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें।

चौथे चरण में उसी स्थिति में सांस को अंदर लेते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। सीने को आगे की ओर तानें। जितना हो सके गर्दन को उतना पीछे की ओर झुकाएं। पैर तने हुए सीधे पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ होना चाहिए। इस स्थिति में कुछ समय के लिए बने रहें। ध्यान को स्वाधिष्ठान और विशुद्धि चक्र पर केंद्रित करने की कोशिश करें।

पांचवें चरण में सांस को धीरे से छोड़ते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। ध्यान रखें की दोनों पैरों की एड़ियां एक दूसरे से मिली हुई हों। शरीर को पीछे की ओर ताने और एड़ियों को जमीन से मिलाने की कोशिश करें। कूल्हों को जितना हो सके ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को सीने की ओर ले में आएं। ध्यान सहस्रार चक्र पर केंद्रित करने का अभ्यास करें।

छठे चरण में आप सांस भरते हुए शरीर को जमीन के समानांतर लाकर साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा जमीन तक लें जाएं। कूल्हों को थोड़ा ऊपर उठाएं और सांस धीरे से छोड़ दें। ध्यान को अनाहत चक्र पर केंद्रित करने की कोशिश करें।

सातवें चरण में जिस स्थिति में हैं आप धीरे-धीरे सांस को भरते हुए सीने को आगे की ओर ताने और हाथों को सीधा करें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने ज़मीन को छुए और पैरों के पंजे खड़े हों।

सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar) के आठवें चरण में सांस को धीरे-धीरे बाहर छोड़ते हुए दाएं पैर को भी पीछे की ओर ले जाएं। ध्यान रखें कि दोनों पैरों की एड़ियां मिली हुई हों। अब आपको पीछे की ओर शरीर को ले जाना है और एड़ियों को जमीन पर लाने का प्रयास करें। कूल्हों को जितना हो सके ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को सीने के करीब ले आएं।

नौवें चरण में इसी स्थिति में सांस लेते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। सीने को आगे की ओर तानें। गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। पैरों को तानते हुए सीधे पीछे की ओर और पैर का पंजा खड़ा हुआ हो। इस स्थिति में कुछ समय के लिए बने रहें।

दसवें चरण में आपको इसी स्थिति में सांस को धीरे- धीरे छोड़ना है और शरीर को आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए हो, हाथों को नीचे लें जाकर पैरों के दाएं-बाएं ओर जमीन से सटाएं। ध्यान रखें कि घुटने सीधे रहें।

सूर्य नमस्कार के ग्यारवें चरण में सांस लेते हुए दोनों हाथों को कान से सटाते हुए ऊपर की ओर ले जाएं तथा हाथों और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएंं।

सूर्य नमस्कार के अंतिम चरण में आपको एक बार पुनः शुरूआती स्थिति में आ जाएं।

सूर्य नमस्कार के लाभ

सूर्य नमस्कार के लाभ की बात करें तो इसके कई लाभ हैं जिनमें से हम कुछ यहां बता रहे हैं।

  1. अभ्यास से व्यक्ति का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर ऊर्जावान बनाता है।
  2. व्यक्ति के शरीर में बढ़ा हुआ वजन कम होता है।
  3. शारीरिक मुद्रा में सुधार होता है।
  4. शरीर में लचीलापन बढ़ता है।
  5. व्यक्ति का रक्तचाप सामान्य रहता है।
  6. पाचन शक्ति बढ़ती है।
  7. हड्डियाँ मजबूत होती हैं।
  8. मानसिक तनाव से भी राहत मिलता है।
  9. नींद व अनिद्रा की परेशानी से राहत मिलती है।
  10. एकाग्रता बढ़ाने में सहायक है।

इसी कारण सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar) को स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है।

 

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