भारतीय संस्कृति में कुंडली मिलान (Kundli Matchmaking) की प्रक्रिया को महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू संस्कृति के अनुसार, किसी भी रिश्ते के अच्छे और लंबे भविष्य के लिए मैच मेकिंग की प्रक्रिया अहम होती है। मैचमेकिंग प्रक्रिया के द्वारा कोई भी व्यक्ति एक सुखी वैवाहिक जीवन और एक आनंदमय पारिवारिक जीवन प्राप्त करने में सक्षम हो सकता है।
हम सभी अलग-अलग समय पर पैदा हुए हैं और हम सब की एक अलग कुंडली है। इस प्रकार जब हम शादी जैसे बड़ा निर्णय लेते हैं तो कुंडलियों के मिलान पर खास ध्यान दिया जाता है। एक सफल वैवाहिक जीवन के लिए दूल्हा और दुल्हन की कुंडली में ग्रहों की स्थिति की जांच की जाती है। हमारा जीवन एक लंबे सफर के समान होता है जिसमें मैरिड कपल्स हर परिस्थिति में एक-दूसरे का साथ निभाते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे जीवन के हर पड़ाव पर अच्छे से एक-साथ रहेंगे, इसके लिए मैच मेकिंग के द्वारा वैवाहिक जीवन के हर पहलू पर विचार किया जाता है।
प्राचीन समय से ही कुंडली मिलान के बाद विवाह करना हमारी परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इसकी मुख्य वजह है कि शादी सिर्फ लड़का-लड़की का मेल नहीं बल्कि दो परिवारों के बीच मजबूत रिश्ते की नींव मानी जाती है। विवाह लड़का और लड़की दोनों के परिवारों के रिश्ते को सही दिशा देगा। कुंडली मिलान से सिर्फ लड़का और लड़की का रिश्ता ही नहीं बल्कि संतान का भविष्य भी जुड़ा होता है। यदि पति-पत्नी के बीच प्रेम, स्नेह का बंधन मजबूत है तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि आने वाली संतान सुंदर, स्वस्थ और सभ्य होगी।
वैदिक ज्योतिष की सहायता से किए जाने वाले विवाह अनुकूलता विश्लेषण को कुंडली मिलान कहा जाता है। जब एक बच्चा जन्म लेता है तो उसके जन्म के साथ ही उसके माता-पिता उसकी कुंडली बनवाने पर खास ध्यान देते हैं। यह कुंडली उस व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पड़ाव में उपयोगी सिद्ध होती है। विशेषकर जब शादी की बात आती है तो कुंडली का महत्व अधिक बढ़ जाता है। शादी का निर्णय लेते समय हर कोई एक परफेक्ट पार्टनर की तलाश करता है और जब वह पार्टनर मिल जाता है तो उसके बाद कपल्स के भविष्य को लेकर कई सवाल सामने आ जाते हैं। क्या इन लोगों का जीवन अच्छा चलेगा? क्या इनके बीच साझेदारी रहेगी? रिश्ते का भविष्य कैसा होगा? संतान प्राप्ति के कैसे योग होंगे या रिश्ता परिवार के लिए सौभाग्य लाएगा या नहीं। यह सभी सवालों का समाधान हमें कुंडली मिलान से मिल सकता है। इस प्रकार कुंडली मिलान का मूल विचार यह पहचानना है कि कौन दो लोग एक-साथ अच्छा से रहेंगे और एक सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करेंगे या किन दो लोगों को एक अच्छे रिश्ते को निभाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
किसी व्यक्ति को समझने में समय लगता है और यह पहचानने में इससे भी अधिक समय लगता है कि आप उस व्यक्ति के साथ खुश रहेंगे या नहीं। हालांकि कुंडली मिलान की सहायता से हम किसी भी रिश्ते में बंधने से पहले अपने पार्टनर और उस रिश्ते की संभावनाओं से जुड़ा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
ज्योतिषशास्त्र में इंसान की दशा पर उसके कर्मों का जितना प्रभाव पड़ता है उतना ही प्रभाव उसके ग्रह-नक्षत्रों का भी पड़ता है। इस कारण बचपन में ही व्यक्ति की जन्म कुंडली बनवाई जाती है। जिसके माध्यम से ज्योतिषी उन्हें उचित मार्गदर्शन और कुछ उपाय भी बताते हैं जो जीवन के प्रत्येक चरण पर उसकी सहायता करते हैं। कुंडली मिलान करते समय योग, नक्षत्र, भाव और दशा आदि जैसे काफी पहलुओं को देखा व समझा जाता है। आइए जानते हैं कि कुंडली मिलान के समय किन जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए।
कुंडली के आठवें भाव में सातवें भाव के स्वामी की स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती है। जब सप्तम भाव के स्वामी अष्टम भाव में बैठते हैं तो जातक को विवाह का सुख, आराम और सुख नहीं मिलता है। कई मामलों में पति की जान को खतरा भी हो सकता है। इसका कारण बहुत स्पष्ट है, सातवां भाव जीवन में अन्य चीजों के अलावा जीवनसाथी का प्रतिनिधित्व करता है। जबकि आठवां भाव से जीवनसाथी की मृत्यु के संकेत देता है। हालांकि आप ज्योतिषीय मार्गदर्शन से इसका समाधान पा सकते हैं। इसलिए कुंडली मिलान करते समय सातवें भाव के स्वामी की स्थिति को कभी भी नज़रअंदाज़ न करें।
कन्या राशि में गुरु, लग्न का कारक होते हैं। इस कारण लड़की की कुंडली के छठवें, आठवें और बारहवें भाव में बृहस्पति का स्थान विवाह के लिए अच्छा नहीं माना जाता। सभी जानते हैं कि देव गुरु बृहस्पति एक शुभ ग्रह है, अगर यह कुंडली के पहले, चौथे, पांचवें और नौवें भाव में विराजमान होते हैं तो यह विवाह के दृष्टिकोण से बहुत अच्छा होता है। कुंडली मिलान करते समय हमें बृहस्पति की स्थिति को सही तरह से जांचना नहीं भूलना चाहिए।
यह कुंडली मिलान के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। मंगल जब कुंडली के पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में बैठते हैं तो मांगलिक योग बनता है। इस योग का होना सुखी वैवाहिक जीवन के लिए बुरा माना जाता है। इस प्रकार अगर आप कुंडली मिलान के दौरान एक कुंडली में मांगलिक योग की उपस्थिति देखते हैं तो कभी भी किसी को शादी की सलाह न दें।
सूर्य, राहु, बारहवें भाव के स्वामी ग्रह, विभाजक ग्रह माने जाते हैं। विभाजक ग्रह अशुभ ग्रह माने जाते हैं। यदि कुंडली का सप्तम भाव इन ग्रहों के प्रभाव में हो तो जातक का वैवाहिक जीवन दुखी रहता है। इसलिए हमेशा कुंडली में इन ग्रहों की स्थिति की जांच करें। कुछ मामलों में सूर्य और राहु की उपस्थिति तलाक का कारण भी बन सकती है।
मंगनी करते समय हमें कुंडली में शनि की स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। कुंडली में सातवें भाव में शनि का होना अच्छा नहीं माना जाता है। जब शनि सातवें भाव में होते हैं तो आपके विवाह में देर हो सकती है। यह भी देखा जाता है कि सातवें भाव पर शनि के प्रभाव से जीवनसाथी काफी मैच्योर दिखता है।
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✍️ By: टीम एस्ट्रोयोगी