नवरात्रि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। साल में हम 2 बार देवी की आराधना करते हैं। चैत्र नवरात्रि चैत्र मास के शुक्ल प्रतिपदा को शुरु होती है और रामनवमी पर यह खत्म होती है, वहीं दूसरी नवरात्रि शारदीय, जिसकी शुरुआत आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से होती है और विजयादशमी के दिन खत्म होती है। भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरह से नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।पंडितजी के अनुसार इस बार शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर 2020 से शुरु हो रही है। इन 9 दिनों में भक्तजन देवी दुर्गा के 9 रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। नवरात्रि के दौरान माता रानी को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु कलश स्थापना, अंखड ज्योति, माता की चौकी आदि तरह के पूजन-अर्चन करते हैं। नवरात्रि के 9 दिन हम घर पर कलश स्थापना और अखंड ज्योत जलाते हैं। अखंड ज्योति पूरे 9 दिन तक बिना बुझे जलाने का प्रावधान है। अखंड ज्योति जलाने के बाद आप उसे अकेला नहीं छोड़ सकते हैं और अगर ये ज्योति बुझ जाए तो अपशगुन होता है।
नवरात्रि में अखंड ज्योति
नवरात्रि के दौरान हम माँं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि देवी का पूजन-अर्चन करते हैं। साथ ही नवरात्रि के दौरान कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए। वहीं नवरात्रि में 9 दिनों तक देवी मां को प्रसन्न करने और मनवांछित फल पाने के लिए गाय के देशी घी से अखंड ज्योति प्रज्जवलित की जाती है। लेकिन अगर गाय का घी नहीं है तो अन्य घी से भी आप माता के सामने अखंड ज्योति जला सकते हैं।
ज्योतिषाचार्य कहना है कि हिंदू धर्म में पूजा के दौरान दीपक का विशेष महत्व है। कोई भी पूजा बिना दीपक जलाए पूर्ण नहीं हो सकती है। ऐसी मान्यता है कि पूजा में दीपक को जलाना भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक होता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान 9 दिन तक दीपक को जलाए रखना अखंड ज्योति कहलाता है। मान्यता है कि नवरात्रि में दीपक जलाए रखने से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। इसलिए नवरात्रि के पहले दिन संकल्प करते हुए अखंड दीपक को जलाना चाहिए और नियमानुसार उसका सरंक्षण करना चाहिए।
अखंड ज्योति जलाने की विधि
अखंड ज्योति जलाने का उद्देश्य जीवन के अंधकार को दूर करना है और माता रानी से जीवन में सदैव प्रकाश बना रहे इसकी प्रार्थना करना होता है। वहीं नवरात्रि के दौरान जलाये जाने वाले दीपक यानि अखंड ज्योति को जलाने के भी कुछ नियम हैं, जिनका पालन हमें करना चाहिए ताकि हमें मनवांछित फल की प्राप्ति हो सके।
आमतौर पर लोग पीतल के दीपपात्र में अखंड ज्योति प्रज्वल्लित करते हैं। यदि आपके पास पीतल का पात्र न हो तो आप मिट्टी का दीपपात्र भी इस्तेमाल कर सकते हैं। मगर मिट्टी के दीपपात्र में अखंड ज्योति जलाने से पहले दीपपात्र को 1 दिन पहले पानी में भिगो दें और उसे पानी से निकालकर साफ कपड़े से पोछकर सुखा लें।
शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाने से पहले हम मन में संकल्प लेते हैं और मां देवी से प्रार्थना करते हैं कि हमारी मनोकामना जल्द पूर्ण हो जाएं। अखंड दीपक को कभी भी जमीन पर न रखें। दीपक को चौकी या पटरे में रखकर ही जलाएं। दुर्गा मां के सामने यदि आप जमीन पर दीपक रख रहे हैं तो अष्टदल बनाकर रखें। यह अष्टदल आप गुलाल या रंगे हुए चावलों का बना सकते हैं।
अखंड ज्योति की बाती का विशेष महत्व है। यह बाती रक्षासूत्र यानि कलावा से बनाई जाती है। सवा हाथ का रक्षासूत्र(पूजा में प्रयोग किया जाने वाला कच्चा सूत) लेकर उसे बाती की तरह दीपक के बीचोंबीच रखें।
अखंड ज्योति जलाने के लिए शुद्ध घी का इस्तेमाल करना चाहिए। यदि आपके पास दीपक जलाने के लिए घी न हो तो आप तिल का तेल या सरसों के तेल का भी दीपक जला सकते हैं। मगर ध्यान ऱखें कि इनमें सरसों का तेल शुद्ध हो और उसमें कोई मिलावट न हो।
ज्योतिष के अनुसार, अखंड ज्योति को देवी मां के दाईं ओर रखा जाना चाहिए लेकिन यदि दीपक तेल का है तो उसे बाईं ओर रखना चाहिए। अखंड दीपक की लौ को हवा से बचाने के लिए कांच की चिमनी से ढक कर रखना चाहिए। संकल्प समय खत्म होने बाद दीपक को फूंक मारकर या गलत तरीके से बुझाना सही नहीं है, बल्कि दीपक को स्वयं बुझने देना चाहिए।
ज्योतिष के अनुसार, ईशान कोण यानि उत्तर पूर्व दिशा को देवी-देवताओं का स्थान माना गया है। इसलिए अखंड ज्योति पूर्व- दक्षिण कोण यानि आग्नेय कोण में रखना शुभ माना जाता है। ध्यान रखें कि पूजा के समय ज्योति का मुख पूर्व या फिर उत्तर दिशा में होना चाहिए।
अखंड ज्योत जलाने से पहले हाथ जोड़कर श्रीगणेश, देवी दुर्गा और शिवजी की आराधना करें। दीपक प्रज्जवलित करते वक्त मन में मनोकामना सोच लें और मां से प्रार्थना करें कि पूजा की समाप्ति के साथ आपकी मनोकामना भी पूर्ण हो जाए। अखंड ज्योत जलाते वक्त ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।। या
मंत्र दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति जनार्दन:
दीपोहरतिमे पापं संध्यादीपं नामोस्तुते।
शुभ करोतु कल्याणामारोग्यं सुख संपदा
शत्रुवृद्धि विनाशं च दीपज्योति: नमोस्तुति।। का मंत्रोच्चारण करें।
अखंड ज्योति जलाने के नियम
नवरात्रि में अखंड ज्योति की लौ पूर्व दिशा की ओर जलाने से आय़ु वृद्धि होती है। दीपक की लौ उत्तर दिशा की ओर रखने से धन लाभ होता है। दीपक की लौ कभी भी दक्षिण दिशा की ओर न रखें, ऐसा करने से जन या धनहानि होती है।
अखंड ज्योति की गर्मी दीपक से 4 अंगुल चारों ओर अनुभव होनी चाहिए। ऐसा दीपक भाग्योदय का सूचक होता है।
दीपक की लौ सुनहरी जलनी चाहिए, जिससे आपके जीवन में धन-धान्य की वर्षा होती है और व्यापार में प्रगति होती है।
अगर अखंड ज्योति बिना किसी कारण के स्वयं बुझ जाए तो घर में आर्थिक तंगी आने की संभावना रहती है।
दीपक में बार-बार बाती नहीं बदलनी चाहिए। दीपक से दीपक जलाना भी अशुभ माना जाता है। ऐसा करने से रोग में वृद्धि होती है और मागंलिक कार्यों में बाधाएं आती है।
मिट्टी के दीपक में अखंड ज्योति जलाने से आर्थिक समृद्धि आती है और चारों दिशाओं में आपकी कीर्ति का बखान होता है।