सनातन धर्म में अमावस्या तिथि का बहुत महत्व है। अमावस्या को पूर्वजों का दिन कहते हैं, इस दिन चंद्रमा दिखाई नहीं देता है। हिंदू पंचांग के हिसाब से कृष्ण पक्ष की आखिरी तिथि को अमावस्या होती है। यह चंद्रमा की गति के हिसाब से हर महीने आती है। जो अमावस्या पौष मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को पड़ती है, उसे पौष अमावस्या कहते हैं। कहा जाता है कि इस दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में होते हैं। 2022 में इसकी तिथि 02 जनवरी और दिन रविवार पड़ रहा है।
कब है पौष अमावस्या 2025? जानें शुभ मुहूर्त और समय
पौष अमावस्या, 19 दिसम्बर 2025, शुक्रवार
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 19 दिसम्बर, सुबह 04:59 बजे से
अमावस्या तिथि समाप्त - 20 दिसम्बर, सुबह 07:12 बजे तक
धार्मिक कार्यों को समर्पित होती है पौष अमावस्या
पौष अमावस्या को लेकर मान्यता है कि इस दिन भगवान का स्मरण, नदी में स्नान करके दान-पुण्य और पितृ तर्पण करने वालों पर काफी शुभ फलों की बरसात होती है। यानी इस दिन को धार्मिक कार्य, पूजा-पाठ और मंत्र जाप आदि के लिए समर्पित करना चाहिए। इसके साथ ही इस दिन किसी भी बुरे काम और यहां तक की निगेटिव विचारों से भी दूरी बनानी चाहिए।
अमावस्या तिथि का महत्व
हिंदू धर्म में पौष अमावस्या का विशेष महत्व है। ज्योतिषी के अनुसार पौष अमावस्या के दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए खास पूजा की जाती है। इस दिन को तर्पण व श्राद्ध जैसे संस्कार के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
इसके साथ ही पितृ दोष और कालसर्प दोष से परेशान जातकों के लिए भी यह दिन शुभ फलदायी साबित हो सकता है। दरअसल, इस दिन उपवास रखकर इन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है।
पूरे पौष माह में ही सूर्यदेव की अराधना करना काफी खास माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि पौष महीने यदि सूर्य की उपासना की जाए तो जातक के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके साथ घर में खुशियों की बौछार होती है।
यह महीना धार्मिक और आध्यात्मिक चिंतन-मनन के लिए लिहाज से सबसे उत्तम माना जाता है।
सिर्फ पितरों के लिए ही नहीं बल्कि सूर्य, अग्नि, वायु, ब्रह्मा, इंद्र, ऋषि, पशु-पक्षी और भूत प्राणी भी इस महीने में अराधना करने से तृप्त होते है। जातक की पूजा-अराधना से ये सभी प्रसन्न होते हैं।
पौष मास में होने वाले मौसम परिवर्तन के आधार पर ही पूरे साल में कितनी बारिश होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
जिन व्यक्तियों की कुंडली में संतान हीन योग हो, पौष अमावस्या का व्रत और पितरों का तर्पण करने से उनको शुभ फल मिलता है।
पौष अमावस्या के दिन कुछ मंदिरों में विशेष महायज्ञ का भी आयोजन किया जाता है।
कैसे करें पौष अमावस्या का व्रत
इस दिन पूर्वजों को याद किया जाता है, इसलिए इसे श्राद्ध अमावस्या भी कहा जाता है। कहते हैं कि इस दिन पूर्वज अपने परिवार को आर्शीवाद देने के लिए धरती पर आते हैं। इस दिन पूजा-अर्चना करने से चंद्र देवता की कृपा मिलती है। चंद्र देव भावनाओं और दिव्य अनुग्रहों के स्वामी कहे जाते हैं, इसलिए इस दिन की पूजा से असीम कृपा बरसती है। पौष अमावस्या जितना खास माना जाता है, उतना ही विशेष इसके व्रत और उपासना की विधि भी है। आइए, जानते हैं कि इस दिन शुभ फल के लिए किस तरह पूजा करनी चाहिए और व्रत की विधि क्या है?
पौष अमावस्या पर पितरों को तर्पण देने के लिए सबसे पहले पवित्र नदी, जलाशय या किसी कुंड आदि में स्नान करें। अगर आसपास ऐसा कोई स्थान न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाना चाहिए।
इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य देकर पितरों का तर्पण करें।
अर्घ्य देने के लिए तांबे का पात्र लें। फिर उसमें शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के पुष्प डालें। इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए उपवास रखना चाहिए। किसी गरीब को भी दान-दक्षिणा दें, ताकि घर में खुशहाली बरसती रहे।
इस मौके पर पीपल के पेड़ का पूजन और तुलसी के पौधे की परिक्रमा भी करने की सलाह दी जाती है।