राधा अष्टमी 2022: राधा रानी के जन्मदिन की तिथि को राधा अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। पूरे विश्व भर में इस दिन को खास त्योहार के रूप में मनाया जाता है। खासकर भारत के ब्रज क्षेत्र में यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है।
हिन्दू पंचांग में भाद्रपक्ष माह साल का छठवां महीना है। भारत में इस समय वर्षा ऋतु होती है। मान्यता है कि भाद्रपक्ष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को अनुराधा नक्षत्र में मां लक्ष्मी जी ने राधा रानी के रूप में बरसाने में जन्म लिया था। भगवान श्री कृष्ण और उनके भक्त राधा रानी को प्यार से लाड़ली भी कहते हैं। ब्रज क्षेत्र की मथुरा नगरी का बरसाना गांव श्री राधा रानी जी का जन्म स्थान है, इनके पिता राजा वृषभानु गोप एवं माता कीर्ति थीं। पौराणिक ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि राधा रानी अपनी माता के गर्भ से जन्म न लेकर, श्री वृषभानु जी की यज्ञ भूमि पर प्रकट हुईं थीं। यही कारण है जो उन्हें बरसाने वाली राधे या वृषभानु किशोरी के नाम से भी जाना जाता है। राधा अष्टमी का पर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिनों बाद बड़े ही उत्साह के साथ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मनाया जाता है।
वृन्दावन में स्थित "राधा वल्लभ मंदिर" में राधा अष्टमी पर्व को थोड़ा विचित्र रूप से मनाया जाता है। दही और हल्दी को मंदिर में बनीं हौदियों में मिलाया जाता है और उसे नृत्य कर रहे गोस्वामी समाज के लोगों और मंदिर में स्थित अन्य भक्त गणो पर उड़ेला जाता है जिससे वे और अधिक ऊर्जा के साथ नृत्य करते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 2022 के भाद्रपक्ष माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी है। राधा अष्टमी (Radha Ashtami) का पर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिनों बाद बहुत उत्साह के साथ पूरे विश्व में और ख़ास रूप से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है।
राधा अष्टमी तिथि : शनिवार 03, सितम्बर 2022 रात्रि 12 बजकर 28 मिनट से रविवार 04, सितम्बर 2022 सुबह 10 बजकर 39 मिनट तक
श्री कृष्ण को राधा रानी बहुत ही ज्यादा प्रिय हैं। आप केवल राधा नाम का उच्चारण या स्मरण मात्र से कृष्ण का सारा ध्यान अपनी ओर कर सकते हैं इसलिए जितना हो सके राधा अष्टमी पर भजन-भक्ति करके अपना दिन व्यतीत करें। श्री राधे को श्रृंगार बहुत पसंद है इसलिए उनका श्रृंगार करें। केवल राधा रानी को ही नहीं भगवान श्री कृष्ण को भी श्रृंगार अति प्रिय है। राधा रानी को पूर्ण श्रृंगार में देखकर श्री कृष्ण बहुत ज्यादा खुश हो जाते हैं। राधा अष्टमी के दिन यदि आप कृष्ण को खुश करना चाहते हैं तो राधा रानी का श्रृंगार अवश्य करें और राधे नाम का जाप करें।
वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥
अर्थात
श्री श्री श्री लाड़ली राधा महारानी जी ब्रज की स्वामिनी हैं और भगवान श्री कृष्ण जी ब्रज के स्वामी हैं, इसलिये हमारे जीवन का हर एक पल श्री राधा-कृष्ण की छत्र छाया में व्यतीत हो।
स्कंद पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की कुल 16,000 गोपियां थीं जिनमें देवी श्री राधा, भगवान श्री कृष्ण की सर्वाधिक प्रमुख और प्रिय थीं।
राधा अष्टमी को उपवास करने और राधा नाम लेने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। कहा जाता है कि ऐसा करने से भगवान श्री कृष्ण के बैकुंठ में निवास मिलता है। यही नहीं राधा नाम इतना महान है कि केवल दो बार राधे राधे कहना, 108 जप की माला करने के समान है। श्री राधा कृष्ण का प्रेम सम्बन्ध इतना विचित्र है कि जब आप राधा रानी की भक्ति करेंगे तो कृष्ण आप से बेहद प्रसन्न होंगे, और जब आप कृष्ण की भक्ति करेंगे, तो राधा रानी अपनी कृपा आप पर बरसाएंगी। राधा रानी स्वयं बहुत बड़ी कृष्ण भक्त थीं, इसलिए वे आपको कभी निराश नहीं होने देंगी, आपकी निस्वार्थ भक्ति का अवश्य मान रखेंगी ।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी एक दूसरे से बहुत अधिक प्रेम करते थे। इनके प्रेम का साक्षी सारा ब्रह्मांड है। यही कारण है कि राधा रानी के बिना कृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। मान्यता है कि जो लोग कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं, उन्हें राधा रानी के जन्मोत्सव पर भी व्रत अवश्य रखना चाहिए। राधा अष्टमी के व्रत के बिना कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत का पूरा पुण्य प्राप्त नहीं होता है।
राधा अष्टमी के दिन श्री सर्वेश्वरी राधा रानी और सर्वेश्वर श्री कृष्ण दोनों की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजन करने वालों को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इसके अलावा राधा अष्टमी के दिन व्रत रखने व श्री राधा रानी की आरधना से वैवाहिक जीवन में संपन्नता और प्रेम सदैव बना रहता है।
वहीं, महिलाएं घर में सुख-शांति और खुशहाली के लिए श्री राधा अष्टमी का व्रत रखती हैं। कहा जाता है कि राधा नाम के जाप से भगवान श्री कृष्ण भी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। राधा अष्टमी के दिन व्रत रखने और राधा रानी के साथ कृष्ण जी की पूजा करने से घर में धन-धान्य के भंडार भरे रहते हैं। साथ ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
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राधा रानी, श्रीकृष्ण के साथ गोलोक में निवास करती थीं। एक बार देवी राधा गोलोक में नहीं थीं, उस समय श्रीकृष्ण अपनी एक सखी विराजा के साथ गोलोक में विहार कर रहे थे। राधाजी यह सुनकर क्रोधित हो गईं और तुरंत श्रीकृष्ण के पास जा पहुंचीं और उन्हें भला-बुरा कहने लगीं। यह देखकर कान्हा के मित्र श्रीदामा को बुरा लगा और उन्होंने राधा को पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। राधा को इस तरह क्रोधित देखकर विराजा वहां से नदी रूप में चली गईं।
इस श्राप के बाद राधा ने श्रीदामा को राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया। देवी राधा के श्राप के कारण ही श्रीदामा ने शंखचूड़ राक्षस के रूप में जन्म लिया। वही, राक्षस, जो भगवान विष्णु का अनन्य भक्त बना और देवी राधा ने वृषभानुजी की पुत्री के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया। लेकिन राधा वृषभानु जी की पत्नी देवी कीर्ति के गर्भ से नहीं जन्मीं थीं।
जब श्रीदामा और राधा ने एक-दूसरे को श्राप दिया तब श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि आपको पृथ्वी पर देवी कीर्ति और वृषभानु जी की पुत्री के रूप में रहना है। वहां आपका विवाह रायाण नामक एक वैश्य से होगा। रायाण मेरा ही अंशावतार होगा और पृथ्वी पर भी आप मेरी प्रिया बनकर रहेंगी। उस रूप में हमें बिछड़ने का दर्द सहना होगा। अब आप पृथ्वी पर जन्म लेने की तैयारी करें। सांसारिक दृष्टि में देवी कीर्ति गर्भवती हुईं और उन्हें प्रसव भी हुआ। लेकिन देवी कीर्ति के गर्भ में योगमाया की प्रेरणा से वायु का प्रवेश हुआ और उन्होंने वायु को ही जन्म दिया, जब वह प्रसव पीड़ा से गुजर रहीं थीं, उसी समय वहां देवी राधा कन्या के रूप में प्रकट हो गईं।कृष्ण प्रिया राधा रानी के प्राकट्य दिवस पर व्रत रखने से भगवान कृष्ण भी प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। राधा नाम संसार के सभी दुखों को हरने वाला है। मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से धन की कमी नहीं होती और घर में बरकत बनी रहती है।
✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी