प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि पूर्णिमा होती है। दरअसल चंद्रमा की कलाओं के उतरने चढ़ने से ही माह के दो पक्ष निर्धारित किये जाते हैं। अमावस्या को चंद्रमा घटते-घटते बिल्कुल समाप्त हो जाता है तो अमावस्या के पश्चात बढ़ते-बढ़ते पूर्णिमा के दिन वह एक दम गोल-गोल बड़ा दुधिया चांदनी वाला नज़र आता है। जिन दिनों में चंद्रमा का आकार घटता है वह कृष्ण पक्ष तो जिन दिनों में बढ़ता है वह शुक्ल पक्ष कहलाता है। पूर्णिमा को पूर्णिमा, पूर्णमासी, पूनम आदि कई नामों से जाना जाता है। धार्मिक रूप से भी यह तिथि बहुत ही सौभाग्यशाली मानी जाती है। इसलिये इसका महत्व भी बहुत अधिक माना जाता है। सावन मास की पूर्णिमा तो इस मायने में और भी खास हो जाती है। आइये जानते हैं सावन पूर्णिमा के महत्व व पूर्णिमा व्रत व पूजा विधि के बारे में।
9 अगस्त 2025, शनिवार (श्रावण पूर्णिमा व्रत, श्रावण पूर्णिमा)
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - 08 अगस्त, दोपहर 02:12 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त - 09 अगस्त, दोपहर 01:24 बजे तक
हिंदू पंचांग के अनुसार चंद्रवर्ष के प्रत्येक माह का नामकरण उस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा की स्थिति के आधार पर हुआ है। ज्योतिषशास्त्र में 27 नक्षत्र माने जाते हैं। सभी नक्षत्र चंद्रमा की पत्नी माने जाते हैं। इन्हीं में एक है श्रवण। मान्यता है कि सावन पूर्णिमा को चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में गोचररत होता है। इसलिये पूर्णिमांत मास का नाम श्रावण रखा गया है और यह पूर्णिमा श्रावण पूर्णिमा कहलाती है।
सावन मास की पूर्णिमा पर वैसे तो विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न पर्वों के अनुसार पूजा विधियां भी भिन्न होती हैं। लेकिन चूंकि इस दिन रक्षासूत्र बांधने या बंधवाने की परंपरा है तो उसके लिये लाल या पीले रेशमी वस्त्र में सरसों, अक्षत, रखकर उसे लाल धागे (मौली या कच्चा सूत हो तो बेहतर) में बांधकर पानी से सींचकर तांबे के बर्तन में रखें। भगवान विष्णु, भगवान शिव सहित देवी-देवताओं, कुलदेवताओं की पूजा कर ब्राह्मण से अपने हाथ पर पोटली का रक्षासूत्र बंधवाना चाहिये। तत्पश्चात ब्राह्मण देवता को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देकर उन्हें संतुष्ट करना चाहिये। साथ ही इस दिन वेदों का अध्ययन करने की परंपरा भी है। इस पूर्णिमा को देव, ऋषि, पितर आदि के लिये तर्पण भी करना चाहिये। इस दिन स्नानादि के पश्चात गाय को चारा डालना, चिंटियों, मछलियों को भी आटा, दाना डालना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि विधि विधान से यदि पूर्णिमा व्रत का पालन किया जाये वर्ष भर वैदिक कर्म न करने की भूल भी माफ हो जाती है। मान्यता यह भी है कि वर्ष भर के व्रतों के समान फल श्रावणी पूर्णिमा के व्रत से मिलता है।
जैसा कि इस लेख के उपरोक्त पैरा में भी उल्लेख किया गया है कि पूर्णिमा की प्रत्येक तिथि शुभ और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है। लेकिन सावन पूर्णिमा की अपनी अलग विशेषता है। इस दिन देश भर में विशेषकर उत्तर भारत में रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाया जाता है। यही तिथि दक्षिण में नारियली पूर्णिमा और अवनी अवित्तम के रूप में मनाई जाती है। मध्य भारत में इसे कजरी पूनम तो गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कुछ क्षेत्रों में यज्ञोपवीत पूजन एवं उपनयन संस्कार करने का विधान भी है। जप-तप, दान-दक्षिणा के लिये यह तिथि श्रेष्ठ मानी ही जाती है। इसी दिन अमरनाथ यात्रा का समापन भी होता है। चंद्रदोष से मुक्ति के लिये भी यह तिथि श्रेष्ठ मानी जाती है।
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