गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागू पाये,
बलिहारी गुरु आपनी, जिन्हे गोविन्द दियो मिलाय।
हिन्दू शास्त्रों में गुरू की महिमा अपरंपार बताई गयी है। गुरू बिन, ज्ञान नहीं प्राप्त हो सकता है, गुरू बिन संसार सागर से, आत्मा भी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकती है। गुरू को भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है। चंद शब्दों में गुरू के प्रताप को बताया जाए तो शास्त्रों में लिखा है कि अगर भगवान से श्रापित कोई है तो उसे गुरू बचा सकता है किन्तु गुरू से श्रापित व्यक्ति को भगवान भी नहीं बचा पाते हैं।
साल 2024 में गुरू पूर्णिमा को जुलाई महीने की 21 तारीख को मनाया जाने वाला है। इस दिन हम अपने इष्टदेव, जिनको हम अपना भगवान मानते हैं इनका ध्यान भी मंत्र जाप विधि से कर सकते हैं। अगर व्यक्ति ने जाने-अनजाने किसी भी तरह की कोई गलती की है या गलती हो गयी है तो अपने गुरू से माफ़ी लेनी चाहिए।
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आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को गुरु की पूजा की जाती है। पूरे भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु की पूजा का आयोजन करते थे। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं किन्तु अपने घर में अपने से जो बड़ा है अर्थात पिता और माता, भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझ कर उनकी पूजा की जाती है।
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। वेदव्यास जी ने 18 पुराणों एवं 18 उपपुराणों की रचना की थी। महाभारत एवं श्रीमद् भागवत् शास्त्र इनके प्रमुख रचित शास्त्र हैं। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में मनाई जाती है। इस दिन से प्रारम्भ कर, अगले चार महीने तक परिव्राजक और साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर, गुरू से ज्ञान प्राप्त करते हैं। क्योकि यह चार महीने मौसम के हिसाब से अनुकूल रहते हैं, इसलिए गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।