Vishwakarma Pooja 2025: कब है विश्वकर्मा जयंती, जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत कथा व पूजा विधि

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Vishwakarma Pooja 2025: कब है विश्वकर्मा जयंती, जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत कथा व पूजा विधि

Vishwakarma Puja 2025: क्या आप जानते हैं कि सनातन धर्म में हर पर्व और उत्सव क्यों खास माना जाता है? हर तिथि अपने साथ एक अनोखा संदेश और परंपरा लेकर आती है। इन्हीं पावन अवसरों में से एक है विश्वकर्मा पूजा, जिसे भगवान विश्वकर्मा – देवताओं के शिल्पी, प्रथम अभियंता और सृजन के देवता – को समर्पित किया जाता है। साल 2025 में यह विशेष दिन और भी खास होने वाला है, क्योंकि बुधवार, 17 सितम्बर को न सिर्फ विश्वकर्मा पूजा मनाई जाएगी, बल्कि इसी दिन कन्या संक्रांति भी पड़ेगी। यही कारण है कि यह तिथि धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

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विश्वकर्मा पूजा 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त (Vishwakarma Puja Kab Hai)

हिंदू पंचांग के अनुसार, विश्वकर्मा पूजा 2025 यानि 17 सितम्बर के दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करेंगे। संक्रांति का क्षण रात 01:55 बजे रहेगा। इसी दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा और कन्या संक्रांति के धार्मिक स्नान, दान-पुण्य का भी महत्व है।

  • तिथि – 17 सितम्बर 2025, बुधवार

  • संक्रांति का क्षण – रात 01:55 बजे

विश्वकर्मा 2025 का महत्व (Vishwakarma Day 2025 Mahatav)

भगवान विश्वकर्मा को वास्तु शास्त्र और शिल्प कला का देवता माना जाता है। उनकी ही देन है – इंद्रपुरी, द्वारका नगरी, लंका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, पुष्पक विमान, यमराज का कालदंड, शिव का त्रिशूल और विष्णु का सुदर्शन चक्र। यही कारण है कि उन्हें सृष्टि का प्रथम इंजीनियर और वास्तुकार कहा जाता है।

इस दिन विशेष रूप से तकनीकी क्षेत्र, कारखानों, मशीनरी, उद्योगों और कारोबार से जुड़े लोग भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से मशीनें सुरक्षित रहती हैं, दुर्घटनाओं का भय कम होता है और व्यापार-रोजगार में तरक्की होती है।

कन्या संक्रांति 2025 (Kanya Sankranti 2025)

कन्या संक्रांति का अर्थ है सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश। इस दिन धार्मिक दृष्टि से स्नान, दान और जप-तप का बहुत महत्व है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान या पवित्र नदियों में स्नान करके गरीबों को अन्न, वस्त्र और दान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।

कई राज्यों में कन्या संक्रांति को ही भगवान विश्वकर्मा का जन्मदिन माना जाता है। इसलिए इस दिन संक्रांति स्नान और विश्वकर्मा पूजा का संगम देखने को मिलता है।

भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति कथा (Vishwakarma Puja katha)

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर विराजमान थे, तभी उनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ। उसी कमल से ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्मा के पुत्र वास्तुदेव थे और उनकी पत्नी अंगिरसी से ऋषि विश्वकर्मा का जन्म हुआ।

विश्वकर्मा जी को वास्तु और शिल्पकला में अद्वितीय ज्ञान प्राप्त था। उनके द्वारा बनाए गए दिव्य निर्माण आज भी पौराणिक कथाओं में अमर हैं। उन्होंने ही पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया और भगवान शिव का त्रिशूल भी उनकी ही रचना है।

भगवान विश्वकर्मा के पांच स्वरूप 

धर्मग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा के पांच स्वरूप बताए गए हैं –

  1. विराट विश्वकर्मा – सृष्टि के रचयिता।

  2. प्रभात पुत्र धर्मवंशी विश्वकर्मा – शिल्प विज्ञान के विधाता।

  3. वसु पुत्र अंगिरावंशी विश्वकर्मा – विज्ञान के प्रथम आचार्य।

  4. ऋषि अथर्वा पुत्र सुधन्वा विश्वकर्मा – महान शिल्पाचार्य।

  5. भृगुवंशी विश्वकर्मा – शिल्प विज्ञान के आचार्य।

इन सभी स्वरूपों से स्पष्ट है कि भगवान विश्वकर्मा केवल निर्माण ही नहीं बल्कि ज्ञान, विज्ञान और सृजन शक्ति के प्रतीक हैं।

यह भी पढ़ें: कब हैं श्राद्ध? जानें इसकी तिथियों की लिस्ट।

विश्वकर्मा पूजा विधि (Vishwakarma Puja Vidhi)

यदि आप अपने काम में तरक्की और सुख-समृद्धि चाहते हैं तो इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा अवश्य करें। पूजा की विधि इस प्रकार है –

  1. सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।

  2. कार्यस्थल, फैक्ट्री, ऑफिस या दुकान को साफ करें।

  3. घर या ऑफिस में भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

  4. तांबे या मिट्टी के पात्र में जल भरकर रखें।

  5. पूजा सामग्री जैसे – फूल, अक्षत, मिठाई, फल, रोली, धूप, दीप, रक्षा सूत्र और सुपारी आदि एकत्र करें।

  6. सात प्रकार के अनाज से बने सतनजा और रंगोली बनाएं।

  7. मशीनों, औजारों और वाहनों की सफाई कर उनकी भी पूजा करें।

  8. भगवान विश्वकर्मा को फल, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाएं।

  9. अंत में उनकी आरती करें और प्रार्थना करें।

भगवान विश्वकर्मा की आरती (Vishwakarma Aarti)

ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।

सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा॥

इस आरती का पाठ करने से मन को शांति और कार्यों में सफलता मिलती है।

विश्वकर्मा पूजा का महत्व उद्योग जगत में

भारत के कई राज्यों जैसे – दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में विश्वकर्मा पूजा खास उत्साह से मनाई जाती है।

  • फैक्ट्रियों में मशीनों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है।

  • दफ्तरों में कर्मचारी एक साथ पूजा कर प्रसाद ग्रहण करते हैं।

  • कारीगर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट और तकनीकी पेशों से जुड़े लोग विशेष श्रद्धा से पूजा करते हैं।

मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से मशीनें सुरक्षित रहती हैं, व्यापार में वृद्धि होती है और कार्यों में आने वाली रुकावटें दूर होती हैं।

भगवान विश्वकर्मा से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य

  • भगवान विश्वकर्मा को विश्व का पहला वास्तुकार और अभियंता कहा जाता है।

  • उन्होंने ही स्वर्गलोक, यमलोक और कुबेर की नगरी का निर्माण किया।

  • रावण की लंका और पुष्पक विमान भी उनकी ही देन हैं।

  • जगन्नाथपुरी के जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का निर्माण भी उन्होंने किया।

  • देवताओं के अस्त्र-शस्त्र और आभूषण सभी विश्वकर्मा जी ने बनाए।

कन्या संक्रांति और दान का महत्व

इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। कन्या संक्रांति पर यह कार्य शुभ माने जाते हैं –

  • तिल और तांबे का दान

  • अन्न और वस्त्र का दान

  • जरूरतमंदों को भोजन कराना

  • गरीब कन्याओं को उपहार देना

मान्यता है कि इससे पितरों की कृपा मिलती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

17 सितम्बर 2025, बुधवार को विश्वकर्मा पूजा और कन्या संक्रांति का संगम एक बेहद शुभ संयोग है। इस दिन जहां भगवान विश्वकर्मा की पूजा कर व्यवसाय, उद्योग और तकनीकी क्षेत्र में प्रगति की कामना की जाती है, वहीं कन्या संक्रांति पर स्नान और दान से पुण्य की प्राप्ति होती है।

इस अवसर पर आप भी अपने कार्यस्थल, फैक्ट्री या घर में भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें, अपने औजार और मशीनों की साफ-सफाई करें और श्रद्धा के साथ प्रार्थना करें। मान्यता है कि इससे आपके कार्यों में सफलता और जीवन में उन्नति अवश्य होगी।

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