Vishwakarma Pooja 2022: कब है विश्वकर्मा जयंती, जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत कथा व पूजा विधि

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Vishwakarma Pooja 2022: कब है विश्वकर्मा जयंती, जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत कथा व पूजा विधि

Vishwakarma Jayanti 2022: भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा का जन्म हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था। साल 2022 में भगवान विश्वकर्मा की पूजा 17 सितम्बर को मनाया जाएगा।

भगवान विश्वकर्मा को युगों-युगों से न केवल मनुष्यों द्वारा बल्कि देवगणों द्वारा भी अपने व्यापक ज्ञान और विज्ञान के कारण पूजा जाता है। भगवान विश्वकर्मा का जन्‍म भाद्रपक्ष माह में हुआ था। वैसे ख़ास बात यह है कि भारत में लगभग सभी पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार मनाए जाते हैं, लेकिन विश्वकर्मा जयंती को लेकर हिन्दू धर्म में विभिन्न मान्यताएं देखने को मिलती हैं। कुछ धर्म विशेषज्ञों का मत है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ, जबकि अन्य लोगों का यह मानना है कि भाद्रपक्ष माह की अंतिम तिथि विश्वकर्मा पूजन के लिए शुभ है। हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्य की अवस्था के आधार पर विश्वकर्मा पूजन की तिथि को तय किया जाता है। कई राज्यों में  कन्या संक्रांति को विश्वकर्मा जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

ब्रह्म स्वरुप श्री विश्वकर्मा को पंचमुखी भी कहा जाता है। ईशान, पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण उनके पंचमुख हैं। वेदों में भगवान विश्वकर्मा के वशंज मनु, त्वष्टा, मय, देवज्ञ और शिल्पी का वर्णन मिलता है। इन्हीं पाचं पुत्रों की संतानों को भृगु कुलोत्पन्न, पांचाल या विश्व-ब्राह्मण भी कहा जाता है।

संसार के विस्तार के लिए भगवान विश्वकर्मा ने सघोजात नामक मुख से सामना, वामदेव मुख से सनातन, अघोर नामक मुख से अहिंमून, चौथे तत्पुरुष नाम वाले मुख से प्रत्न और पांचवें ईशान नामक मध्य मुख से सुपर्णा को उत्पन्न किया।

हिन्दू धर्मशास्त्रों और ग्रथों में विश्वकर्मा के पांच स्वरुपों का वर्णन होता है।

  • विराट विश्वकर्मा - सृष्टि के रचयिता

  • महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र धर्मवंशी विश्वकर्मा

  • आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र अंगिरावंशी विश्वकर्मा 

  • महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता ऋशि अथवी पुत्र सुधन्वा विश्वकर्मा 

  • उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र) भृंगुवंशी विश्वकर्मा 

भगवान विश्वकर्मा की पूजा भारत के प्रसिद्ध राज्यों जैसे-: दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल आदि में, ख़ासकर औद्योगिक क्षेत्रों में निर्माण और सृजन से जुड़े लोगो द्वारा पूर्ण श्रद्धा भाव से की जाती है। 

भगवान विश्वकर्मा की जन्म कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के प्रारंभ में भगवान विष्णु प्रकट हुए थे, तो वह क्षीर सागर में शेषनाग की शय्या पर विराजमान थे। उनकी नाभि से कमल निकला, जिस पर ब्रह्मा जी प्रकट हुए, वे चार मुख वाले थे। उनके पुत्र वास्तुदेव थे, जिनकी पत्नी अंगिरसी थीं। इन्हीं के पुत्र ऋषि विश्वकर्मा थे। विश्वकर्मा जी वास्तुदेव के समान ही वास्तुकला के विद्वान ​थे। उनको द्वारिकानगरी, इंद्रपुरी, इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर, सुदामापुरी, स्वर्गलोक, लंकानगरी, शिव का त्रिशूल, पुष्पक विमान, यमराज का कालदंड, विष्णुचक्र समेत कई राजमहल के निर्माण का कार्य मिला था।

भगवान विश्वकर्मा से जुड़ीं कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां 

  • भगवान विश्वकर्मा की सहायता से ही भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया। 

  • प्राचीन ग्रंथों में भगवान विश्वकर्मा जी को भगवान शिव का ही स्वरुप माना जाता है। 

  • भगवान विश्वकर्मा ने ही स्वर्गलोक, भू-लोक, यम लोक, कुबेर नगरी, द्वारका पुरी, पाण्डव पुरी, सुदामा पुरी आदि का निर्माण किया था। 

  • रावण की लंका से लेकर पुष्पक विमान तक सब विश्वकर्मा जी द्वारा बनाए गए हैं।  

  • ओडिशा के जगन्नाथपुरी में विराजमान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा जी की मूर्ति का निर्माण भी विश्वकर्मा जी ने ही किया है। यही नहीं अखंड भारत की अधिकतम शिल्पकलाएं इन्हीं की देन हैं। 

  • कर्ण के कवच-कुण्डल, यमराज का कालदण्ड, इंद्र का वज्र सब इन्हीं की देन हैं। देव गणों के सभी अस्त्र,शस्त्र, आभूषण और उपयोग होने वाली वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है। 

  • भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला वास्तु शास्त्री और अभियंता (इंजीनियर) भी कहा जाता है। 

भगवान विश्वकर्मा की पूजा का महत्व

जो भी व्यक्ति तकनीक, कलाकृति या मशीनों से संबंधित कार्य करते हैं, उन्हें आवश्यक रूप से विश्वकर्मा जी की पूजा करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि विश्वकर्मा जी की पूजा करने से मशीनें व तकनीकी उपकरण जल्दी खराब नहीं होते हैं। साथ ही मशीन संबंधी काम में कोई दुर्घटना भी नहीं होती है। इसी कारण इस दिन बड़ी फैक्ट्री हो या छोटा कारोबार हर जगह लोग अपने काम को रोककर अपनी मशीनों की साफ सफाई करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। यदि आप भी अपने काम में बरकत पा पाना चाहतें हैं तो जानें अपनी भगवान विश्वकर्मा जी को खुश करने के उपाए। 

  • अपने रोजगार या कारोबार में वृद्धि चाहते हैं तो आप भी विश्वकर्मा जी की पूजा अवश्य करें।
  • यदि आप कोई काम शुरू करने वाले हैं तो अपने ऑफिस, दुकान, फ़ैक्ट्री या कार्यशाला में भगवान विश्वकर्मा जी की मूर्ति लगाएं। 
  • घर में उपस्थित तकनीकी उपकरण जैसे - कार,बाइक आदि अन्य मशीनों को साफ करें तत्पश्चात उनका का पूजन करें। 

विश्वकर्मा जयंती शुभ मुहूर्त 2022

हिन्दू पांचांग के अनुसार 2022 के 17 सितम्बर दिन शनिवार को सुबह 07:36 मिनट से विश्वकर्मा पूजन शुभ मुहूर्त प्रारम्भ होगा। जो रात तक चलेगा।  

||शिवा मनुमंय स्त्वष्टा तक्षा शिल्पी च पंचमः || विश्वकर्मसुता नेतान् विद्धि प्रवर्तकान् || एतेषां पुत्र पौत्राणामप्येते शिल्पिनो भूवि||

||पंचालानां च सर्वेषां शाखास्याच्छौन कायनो || पंचालास्ते सदा पूज्याः प्रतिमा विश्वकर्मणः || रूद्रवामल वास्तु तन्त्र व्रत्यादि||

व्यापार में वृद्धि के लिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि

यदि आप भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना चाहते हैं तो इस विधि से पूजा आराधना कर सकते हैं। मान्यता है कि यह देवताओं के अस्त्र-शस्त्र महल और आभूषण आदि बनाने का काम करते थे। भगवान विश्वकर्मा की पूजा के दिन फैक्ट्रियों और ऑफिसों में लगी हुई मशीनों की पूजा की जाती है। ताकि व्यक्ति का व्यापार और ज्यादा तरक्की करें। 

  • इस दिन अपनी गाड़ी, मोटर या दुकान की मशीनों को साफ करें।

  • घर के मंदिर में विष्‍णु जी का ध्‍यान करें और फूल चढाएं।

  • ताबें के पात्र में पानी लेकर उसमें फूल डालें और विश्वकर्मा भगवान का ध्यान करें। 

  • पूजा करने के लिए अक्षत अर्थात चावल, फूल, मिठाई, फल रोली, सुपारी, धूप, दीप, रक्षा सूत्र, मेज, दही और भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर इत्यादि की व्यवस्था कर लें।

  • सारी सामग्री का प्रबंध करने के बाद अष्टदल की बनी रंगोली पर सतनजा बनाएं।

  • अनाज पर तांबे या मिट्टी के बर्तन के पानी का छिड़काव करें।

  • सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी और दक्षिणा को कलश में डालकर उसे कपड़े से ढकें।

  • इसके बाद उनको भोग फल, पंचामृत आदि का भोग लगायें

  •  उसके बाद पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ विश्वकर्मा जी की मूर्ति की पूजा करें और उनके ऊपर फूल अर्पित करें, साथ ही कहें कि - हे विश्वकर्मा जी आइए, मेरी पूजा स्वीकार कीजिए।

  • भगवान विश्‍वकर्मा की आरती उतारें।

श्री विश्वकर्मा भगवान की प्रार्थना 

हे विश्वकर्मा! परम प्रभु! इतनी विनय सुन लीजिये। दु:ख दुर्गुणों को दूर कर, सुख सद्गुणों को दीजिये।।

ऐसी दया हो आप की, सब जन सुखी सम्पन्न हों। कल्याणकारी गुण सभी में, नित नये उत्पन्न हों।।

प्रभु विघ्न आये पास न, ऐसी कृपा हो आपकी। निशिदिन सदा निर्भय रहें, सतांप हो नाहि ताप की।।

कल्याण होये विश्व का, अस ज्ञान हमको दीजिये। निशि दिन रहें कर्तव्यरल, अस शक्ति हमको कीजियें।।

तुम भक्त वत्सल ईश हो, भौवन तुम्हारा नाम है। सत कोटि कोट्न अहर्निशि, सुचि मन सहित प्रणाम है।। 

हो निर्विकार तथा पितुम हो भक्त वत्सल सर्वथा, हो तुम निरिहत तथा पी अद्भुत सृष्टी रचते हो सदा।

आकार हीन तथा पितुम साकार सन्तत सिद्ध हो, सर्वेश होकर भी सदातुम प्रेम वस प्रसिद्ध हो।

करता तुम्हीं भरता तुम्हीं हरता तुम्हीं हो सृष्टि के, हे ईश बहुत उपकार तुम ने सर्वदा हम पर किये।

उपकार प्रति उपकार में क्या दें, तुम्हें इसके लिए, है क्या हमारा सृष्टि में जो दें तुम्हें इसके लिए। 

जय दीन बन्धु सोक सिधी दैव दैव दया निधे, चारों पदार्थ दया निधे फल है तुम्हारे दृष्टि के।

श्री विश्वकर्मा भगवान के इन नामों की माला का जाप करें

  • || ऊँ विश्वात्मने नमः || ऊँ विश्वस्माय नमः || ऊँ विश्वधाराय नमः || ऊँ विश्वधराय नमः ||

  • ||  ऊँ विश्वभंराय नमः || ऊँ विश्वेशाधिपतये नमः || ऊँ वितलाय नमः || ऊँ श्वेतवस्त्राय नमः || 

  • || ऊँ हंसवाहनाय नमः || ऊँ त्रिगुणात्मने नमः || ऊँ सत्यात्मने नमः || ऊँ गुणवल्लभाय नमः ||

  • || ऊँ विश्वव्यापक नमः || ऊँ ब्रहमांडाय नमः || ऊँ विश्वरक्षकाय नमः || ऊँ स्वर्गलोकाय नमः ||

  • || ऊँ पंचवकत्राय नमः || ऊँ विश्वलल्लभाय नम: || ऊँ विश्वकराय नमः || ऊँ विश्वरुपाय नमः || 

  • ||  ऊँ भूकल्पाय नमः || ऊँ भूलेंकाय नमः || ऊँ भुवलेकाय नमः || ऊँ चतुर्भुजय नमः || 

  • || ऊँ विश्वकर्मणे नमः ||

विश्वकर्मा जी की पूजा कथा

हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार,काशी में धार्मिक आचरण रखने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण था, परंतु जगह-जगह घूमने और प्रयत्न करने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं होता था। वहीं उसकी पत्नी भी संतान न होने के कारण काफी चिंतित रहती थी। संतान प्राप्ति के लिए दोनों साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन इसके बाद भी उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई। फिर उनके एक एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा, तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी अवश्य ही इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा की कथा सुनों। इसके बाद रथकार और उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की। जिससे उन्हें धन-धान्य और पुत्र की प्राप्ति हुई और वह दोनों सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। तभी से विश्वकर्मा की पूजा बड़े धूमधाम के साथ की जाने लगी।

विश्‍वकर्मा जी  की आरती

ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।

सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।

शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।

ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।

संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥

जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।

सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।

द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।

मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥

श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।

कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥

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✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी

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