वैदिक ज्योतिष

वैदिक ज्योतिष में कर्म व भाग्य पर आधारित सिद्धांतों प्रयोग किया जाता है। वैदिक ज्योतिष में अच्छे और बुरे कार्य या पिछले जीवन व वर्तमान जीवन के कर्मों की ज्योतिष गणना कर भविष्य का आकलन किया जाता है। वैदिक ज्योतिष में स्थान, दिनांक, समय एवं ग्रहों की स्थिति का उपयोग किया जाता है। यह अध्ययन बताता है कि आप के साथ क्या हो रहा है, आप क्या कर रहे हैं, आने वाले समय में भविष्य की क्या संभावनाएं पैदा हो रही हैं।

Delhi- Thursday, 21 November 2024
दिनाँक Thursday, 21 November 2024
तिथि कृष्ण षष्ठी
वार गुरुवार
पक्ष कृष्ण पक्ष
सूर्योदय 6:49:11
सूर्यास्त 17:25:32
चन्द्रोदय 22:44:5
नक्षत्र पुष्य
नक्षत्र समाप्ति समय 15 : 36 : 48
योग ब्रह्म
योग समाप्ति समय 35 : 33 : 8
करण I वणिज
सूर्यराशि वृश्चिक
चन्द्रराशि कर्क
राहुकाल 13:26:54 to 14:46:26
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वैदिक ज्योतिष की परिभाषा एवं संक्षिप्त परिचय


वैदिक ज्योतिष एक ऐसा विज्ञान या शास्त्र है, जिसमें आकाश मंडल में विचरण करने वाले ग्रहों जैसे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, शनि के साथ राशियों एवं नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता है। इन आकाशीय तत्वों से पृथ्वी एवं पृथ्वी पर रहने वाले लोग किस तरह से प्रभावित होते हैं इनका विश्लेषण करता है। वैदिक ज्योतिष में गणना के क्रम में राशिचक्र, नवग्रह, जन्म राशि को महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।
भारत में वैदिक काल से ही ज्योतिषीय गणनाओं का प्रयोग होता आ रहा है। वैदिक ऋषियों ने इसे अधिक उपयोगी बनाते हुए काल गणना के क्रम का निरधारण सूर्य व चंद्रमा की गतियों के द्वारा किया है। वैदिक कार्यों की सम्पन्नता हेतु शुभ समय का निर्धारण व समाजिक जीवन के तिथि व पर्व सहित कृषि आदि राजकीय व्यवस्थाओं के संचालन में वैदिक काल से वैदिक ज्योतिष के प्रयोग के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है।


वैदिक ज्योतिष व ऋग्वेद काल

ऋग्वेद के अनुसार ऋग्वेद काल में भारतीय ऋषि-मुनियों द्वारा चंद्र व सौर वर्ष गणना के ज्ञान को विस्तारित किया गया। इसी प्रकार दिन व दिनमान, रात्रिमान नक्षत्र, ग्रह व राशियों का भली-भांति ज्ञान अर्जित कर उनके शुभ- अशुभ प्रभाव को लोक हितार्थ प्रेषित किया जाता था। ऋग्वेद का समय लगभग शक संवत् से 4000 वर्ष पहले का माना जाता है। यजुर्वेद में भी 12 महीनों के नामों का उल्लेख मधु, माधव से तपस्य आदि के प्रमाण मिलते हैं। समय के साथ वैदिक ज्योतिष ने उन्नति की और माह के नामों को नक्षत्र के नामों से जाना-जाने लगा। उदाहरण हेतु - चैत्र माह का नाम चित्रा नक्षत्र पर पड़ा। इसी तरह 12 महीनों के नाम को बारह नक्षत्रों के आधार पर रखा गया।

वैदिक ज्योतिष का प्रचलन

वैदिक ज्योतिष का प्रचलन भारत में वराहमिहिर (ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे) के समय में ही हो चुका था। जिसमें ज्योतिष के विभिन्न पहलुओं का विस्तार हुआ। जिसके द्वारा राशि ग्रह नक्षत्रों के फल कथनों का वर्णन भी मिलता है। इसका सीधा सा मतलब की आपकी स्वसहायता करने का वैदिक सिद्धांत। वेदों में हम ज्योतिष शास्त्र का विस्तृत विवरण देख सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र में कर्म को अत्यंत महत्ता दी गयी है। क्यूंकि पिछले जन्म में किये गए कर्मफलों के आधार पर ही इस जन्म में भाग्य बनता है जो ज्योतिष शास्त्र द्वारा प्रकाशमान है।

वैदिक ज्योतिष सिद्धान्त एवं गणना प्रणाली

सामान्यतः वैदिक ज्योतिष सिद्धान्त में ग्रह-नक्षत्रों से संबंधित गणित ज्ञान हैं। जिसमें वेध विधियों एवं पंचाग निर्माण सहित अनेक गणितीय पहलुओं को साधा जाता है। जिससे होने वाले शुभ-अशुभ प्रभावों को जाना जा सके। माना जाता है कि ज्योतिष गणना करने के लिए मुख्य ग्रह सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, और शनि हैं। वैदिक ज्योतिष में गणनात्मक तथ्य विखरे पड़े हैं। किन्तु सूर्य सिद्धान्त, ग्रह लाघव आदि पद्धतियों द्वारा ज्योतिषीय गणनाएं प्राप्त की जाती हैं। वैदिक ज्योतिष में काल गणना के क्रम के सूक्ष्म पहलुओं का वर्णन मिलता है। जिसमें प्राण, पल, घटी, कला, विकला, क्षण, आहोरात्र, पक्ष, सावन मास, ऋतु, अयन, भ्रमण चक्र, वर्ष तथा युगों तक की अनेकों उपयोगी गणना पद्धतियों का वर्णन हैं। ग्रहृ-नक्षत्रों के द्वारा होने वाले शुभाशुभ प्रभाव को सटीक गणना होने पर ही जाना जा सकता है।

ज्योतिष राशि एवं राशिचक्र

ज्योतिष में राशिचक्र उन बारह बराबर भागों को कहा जाता है जिन पर पूर्णतया ज्योतिष गणना आधारित है। हर राशि सूर्य के क्रांतिवृत्त (खगोलशास्त्र में क्रांतिवृत्त या सूर्यपथ) पर आने वाले एक तारामंडल से सम्बन्ध रखती है। राशिचक्र वह तारामंडलों का चक्र है जो क्रांतिवृत्त में आते हैं। ज्योतिष में इस मार्ग को बाराह बराबर के हिस्सों में बाँट दिया जाता है जिन्हें राशियाँ कहा जाता है। हर राशि का नाम उस तारामंडल पर रखा जाता है जिसमें सूर्य उस माह में (प्रतिदिन दोपहर के बारह बजे) उपस्थित होता है। हर वर्ष में सूर्य इन बारह राशियों का दौरा पूरा करके फिर से विचरण शुरू प्रारम्भ करता है।

ज्योतिष व नवग्रह

वैदिक ज्योतिष में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि ग्रह तथा राहु-केतु को छाया ग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त है। सभी ग्रह अपने गोचर में भ्रमण करते हुए राशिचक्र में कुछ समय के लिए रूकते हैं और अपना राशिफल प्रदान करते हैं। राहु और केतु आभाषीय ग्रह हैं, नक्षत्र मंडल में इनका वास्तविक अस्तित्व नहीं है। ये दोनों राशिमंडल में गणितीय बिन्दु के रूप में स्थित हैं।

ज्योतिष में लग्न और जन्म राशि

खगोलशास्त्र के अनुसार पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार पश्चिम से पूरब की ओर घूमती है। इस प्रक्रिया में सभी राशियां और तारे 24 घंटे में एक बार पूर्वी क्षितिज पर उदय और पश्चिमी क्षितिज पर अस्त होते हुए दिखते हैं। यही कारण है कि एक निश्चित बिन्दु और काल में राशिचक्र में एक विशेष राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित होती है। जब कोई जातक जन्म लेता है उस समय उस अक्षांश और देशांतर में जो राशि पूर्व दिशा में उदय होती है वह राशि जातक का जन्म लग्न कहलाता है। तो वहीं जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में उपस्थित होता है उस राशि को जन्म राशि या चन्द्र लग्न के नाम से जाना जाता है।

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वैदिक परम्परा

वैदिक काल में वेदों के आधार पर सभी कार्य किये जाते थे। जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कार वेदों द्वारा निर्धारित होते थे, जो आगे चलकर वैदिक परंपरा के रूप में विद्धमान हुए। सनातन धर्म एक जीवन यापन पद्धति है।

वैदिक ज्योतिष की परिभाषा एवं संक्षिप्त परिचय


वैदिक ज्योतिष एक ऐसा विज्ञान या शास्त्र है, जिसमें आकाश मंडल में विचरण करने वाले ग्रहों जैसे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, शनि के साथ राशियों एवं नक्षत्रों का अध्ययन किया जाता है। इन आकाशीय तत्वों से पृथ्वी एवं पृथ्वी पर रहने वाले लोग किस तरह से प्रभावित होते हैं इनका विश्लेषण करता है। वैदिक ज्योतिष में गणना के क्रम में राशिचक्र, नवग्रह, जन्म राशि को महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।
भारत में वैदिक काल से ही ज्योतिषीय गणनाओं का प्रयोग होता आ रहा है। वैदिक ऋषियों ने इसे अधिक उपयोगी बनाते हुए काल गणना के क्रम का निरधारण सूर्य व चंद्रमा की गतियों के द्वारा किया है। वैदिक कार्यों की सम्पन्नता हेतु शुभ समय का निर्धारण व समाजिक जीवन के तिथि व पर्व सहित कृषि आदि राजकीय व्यवस्थाओं के संचालन में वैदिक काल से वैदिक ज्योतिष के प्रयोग के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है।


वैदिक ज्योतिष व ऋग्वेद काल

ऋग्वेद के अनुसार ऋग्वेद काल में भारतीय ऋषि-मुनियों द्वारा चंद्र व सौर वर्ष गणना के ज्ञान को विस्तारित किया गया। इसी प्रकार दिन व दिनमान, रात्रिमान नक्षत्र, ग्रह व राशियों का भली-भांति ज्ञान अर्जित कर उनके शुभ- अशुभ प्रभाव को लोक हितार्थ प्रेषित किया जाता था। ऋग्वेद का समय लगभग शक संवत् से 4000 वर्ष पहले का माना जाता है। यजुर्वेद में भी 12 महीनों के नामों का उल्लेख मधु, माधव से तपस्य आदि के प्रमाण मिलते हैं। समय के साथ वैदिक ज्योतिष ने उन्नति की और माह के नामों को नक्षत्र के नामों से जाना-जाने लगा। उदाहरण हेतु - चैत्र माह का नाम चित्रा नक्षत्र पर पड़ा। इसी तरह 12 महीनों के नाम को बारह नक्षत्रों के आधार पर रखा गया।

वैदिक ज्योतिष का प्रचलन

वैदिक ज्योतिष का प्रचलन भारत में वराहमिहिर (ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे) के समय में ही हो चुका था। जिसमें ज्योतिष के विभिन्न पहलुओं का विस्तार हुआ। जिसके द्वारा राशि ग्रह नक्षत्रों के फल कथनों का वर्णन भी मिलता है। इसका सीधा सा मतलब की आपकी स्वसहायता करने का वैदिक सिद्धांत। वेदों में हम ज्योतिष शास्त्र का विस्तृत विवरण देख सकते हैं। ज्योतिष शास्त्र में कर्म को अत्यंत महत्ता दी गयी है। क्यूंकि पिछले जन्म में किये गए कर्मफलों के आधार पर ही इस जन्म में भाग्य बनता है जो ज्योतिष शास्त्र द्वारा प्रकाशमान है।

वैदिक ज्योतिष सिद्धान्त एवं गणना प्रणाली

सामान्यतः वैदिक ज्योतिष सिद्धान्त में ग्रह-नक्षत्रों से संबंधित गणित ज्ञान हैं। जिसमें वेध विधियों एवं पंचाग निर्माण सहित अनेक गणितीय पहलुओं को साधा जाता है। जिससे होने वाले शुभ-अशुभ प्रभावों को जाना जा सके। माना जाता है कि ज्योतिष गणना करने के लिए मुख्य ग्रह सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, और शनि हैं। वैदिक ज्योतिष में गणनात्मक तथ्य विखरे पड़े हैं। किन्तु सूर्य सिद्धान्त, ग्रह लाघव आदि पद्धतियों द्वारा ज्योतिषीय गणनाएं प्राप्त की जाती हैं। वैदिक ज्योतिष में काल गणना के क्रम के सूक्ष्म पहलुओं का वर्णन मिलता है। जिसमें प्राण, पल, घटी, कला, विकला, क्षण, आहोरात्र, पक्ष, सावन मास, ऋतु, अयन, भ्रमण चक्र, वर्ष तथा युगों तक की अनेकों उपयोगी गणना पद्धतियों का वर्णन हैं। ग्रहृ-नक्षत्रों के द्वारा होने वाले शुभाशुभ प्रभाव को सटीक गणना होने पर ही जाना जा सकता है।

ज्योतिष राशि एवं राशिचक्र

ज्योतिष में राशिचक्र उन बारह बराबर भागों को कहा जाता है जिन पर पूर्णतया ज्योतिष गणना आधारित है। हर राशि सूर्य के क्रांतिवृत्त (खगोलशास्त्र में क्रांतिवृत्त या सूर्यपथ) पर आने वाले एक तारामंडल से सम्बन्ध रखती है। राशिचक्र वह तारामंडलों का चक्र है जो क्रांतिवृत्त में आते हैं। ज्योतिष में इस मार्ग को बाराह बराबर के हिस्सों में बाँट दिया जाता है जिन्हें राशियाँ कहा जाता है। हर राशि का नाम उस तारामंडल पर रखा जाता है जिसमें सूर्य उस माह में (प्रतिदिन दोपहर के बारह बजे) उपस्थित होता है। हर वर्ष में सूर्य इन बारह राशियों का दौरा पूरा करके फिर से विचरण शुरू प्रारम्भ करता है।

ज्योतिष व नवग्रह

वैदिक ज्योतिष में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि ग्रह तथा राहु-केतु को छाया ग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त है। सभी ग्रह अपने गोचर में भ्रमण करते हुए राशिचक्र में कुछ समय के लिए रूकते हैं और अपना राशिफल प्रदान करते हैं। राहु और केतु आभाषीय ग्रह हैं, नक्षत्र मंडल में इनका वास्तविक अस्तित्व नहीं है। ये दोनों राशिमंडल में गणितीय बिन्दु के रूप में स्थित हैं।

ज्योतिष में लग्न और जन्म राशि

खगोलशास्त्र के अनुसार पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार पश्चिम से पूरब की ओर घूमती है। इस प्रक्रिया में सभी राशियां और तारे 24 घंटे में एक बार पूर्वी क्षितिज पर उदय और पश्चिमी क्षितिज पर अस्त होते हुए दिखते हैं। यही कारण है कि एक निश्चित बिन्दु और काल में राशिचक्र में एक विशेष राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित होती है। जब कोई जातक जन्म लेता है उस समय उस अक्षांश और देशांतर में जो राशि पूर्व दिशा में उदय होती है वह राशि जातक का जन्म लग्न कहलाता है। तो वहीं जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में उपस्थित होता है उस राशि को जन्म राशि या चन्द्र लग्न के नाम से जाना जाता है।

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