वैदिक काल में वेदों के आधार पर सभी कार्य किये जाते थे। जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कार वेदों द्वारा निर्धारित होते थे, जो आगे चलकर वैदिक परंपरा के रूप में विद्धमान हुए। सनातन धर्म एक जीवन यापन पद्धति है।जिसके अनुयायी ज्यादातर भारत, नेपाल और मॉरिशस में हैं। इसे विश्व का सबसे प्राचीन धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं।अर्थात इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले हुई है।धार्मिक विद्वानों का मानना है कि हिन्दू धर्म भारत वर्ष की विभिन्न संस्कृतियों एवं परंपराओं का सम्मिश्रण है। जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म आपने आप में कई उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए है। सनातन धर्म अनुयायियों की संख्या के आधार पर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी- देवताओं की उपासना की जाती है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इसका औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है।
वैदिक साहित्य
वेद प्राचीन भारत के पवित्र साहित्य हैं जो हिन्दुओं की प्राचीन व आधारभूत धर्मग्रन्थ हैं। जिसे वैदिक साहित्य के रूप में जाना जाता है। वैदिक साहित्य भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्राचीनतम स्वरूप पर रोशनी डालने वाला विश्व का सबसे प्राचीन साहित्य है। वैदिक साहित्य को 'श्रुति' भी कहा जाता है। दरअसल ऋषियों ने भी इस साहित्य को श्रवण परंपरा से ही ग्रहण किया था। वेद के मुख्य मंत्र भाग को संहिता कहते हैं। वेदों की मुख्य भाषा संस्कृत है। इसे वैदिक संस्कृत भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन संस्कृत शब्दों के प्रयोग और अर्थ कालान्तर में बदल गए या लुप्त हो गए। संस्कृत भाषा के प्राचीन रूप को लेकर इनका साहित्यिक महत्व आज भी बना हुआ है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में शामिल हैं।जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था से पढ़े और सुने जाते हैं।
वैदिक सभ्यता
वैदिक सभ्यता प्राचीन भारत की वो सभ्यता है जिसमें वेदों की रचना हुई । भारतीय विद्वान इस सभ्यता को अनादि परंपरा से उत्पन्न हुआ मानते हैं। परंतु पश्चिमी विद्वानों का मत है कि आर्यों का एक समुदाय भारत वर्ष में कहीं और से लगभग 1500 ईसा पूर्व आया और इनके आने के बाद इस सभ्यता की नींव पड़ी। हालाँकि भारत मे आर्यो के आने का प्रमाण अभी तक न ही किसी पुरातत्त्व खोज में और न ही किसी डी एन ए अनुसंधानों में मिला है। इस काल में ही वर्तमान हिंदू धर्म की नींव पड़ी थी, जो आज भी अस्तित्व में है। वेदों के अतिरिक्त संस्कृत के अन्य कई ग्रंथों की रचना भी इसी काल में हुई। जिनमें रामायण, महाभारत अन्य पौराणिक ग्रन्थ शामिल हैं। जिन्हे ज्ञानप्रदायी स्रोत माना गया है।
वैदिक परंपरा की वर्तमान प्रासंगिकता
प्राचीन काल में प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होते थे। जो आगे चलकर परंपरा के रूप में स्थापित हुए । जैसे-जैसे समय बदलता गया कुछ संस्कार व परंपरा स्वत: समाप्त हो गये। इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। हिन्दू धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है। इनमें प्रथम गर्भाधान संस्कार और मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है। जन्म के बाद शिशु का नामकरण किया जाता है। इसके बाद चूड़ाकर्म और यज्ञोपवीत संस्कार होता है। फिर विवाह संस्कार। यह गृहस्थ जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। हिन्दू धर्म में स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सबसे बडा संस्कार है, जो जन्म-जन्मान्तर का होता है। परंतु आज के आधुनिक दौर में इन सभी पारंपरिक संस्कारों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। लोग अलग मानसिक रवैया अपना रहे हैं। इस नयी अर्थव्यवस्था में भौतिक सुख, निजी स्वार्थ, पद और पैसा सबकुछ मात्र रह गया है। आधुनिकता एवं पश्चिमी जीवनशैली ने हमारे सामाजिक नैतिक मूल्यों, आदर्शां, संस्कृति तथा हमारी समृद्धशाली परंपरा को छिन्न-भिन्न कर दिया है।
वैदिक परिवार पितृ-स्थानीय, पितृ वंशीय एवं पितृ सत्तात्मक होते थे। अनेक वैदिक मंत्र में भी इस बात का उल्लेख है। उसमें विवाह- बंधन पावन और अटूट माना जाता था। मान्यता है कि भारत में वर्तमान में संयुक्त परिवार (एक ऐसा परिवार जिसमें माता-पिता, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, भाई-भाभी आदि मिल जुलकर रहते हैं) की जो परंपरा चली आ रही है वह हमारी वैदिक परंपरा का ही हिस्सा है। घर के बड़े-बुजर्गों के पैर छूना, उनका आशीर्वाद लेना, परिवार के साथ जमीन पर आसन लगाकर बैठकर हाथ से खाना खाना, प्रकृति के करीब रहना, पेड़-पौधों से प्यार करना, बरगद, पीपल जैसे वृक्षों की देवताओं की तरह पूजा करना इत्यादि बहुत सारी बाते हैं जो हमें आज भी वैदिक परंपरा से जोड़ती हैं।