
अहोई अष्टमी का व्रत प्रतिवर्ष माताओं द्वारा संतान की लम्बी आयु, समृद्धि,के लिए किया जाता हैं। इस दिन माताएं निर्जला व्रत करती हैं और अहोई अष्टमी पर स्याही माता और अहोई माता की पूजा का विधान हैं
अहोई अष्टमी को प्रतिवर्ष कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को मुख्य रूप से करवा चौथ के बाद उत्तर भारत में मनाया जाता है जिसे अहोई माता के व्रत से भी जाना जाता है। इस अवसर पर माताएँ अपनी संतान की दीर्घायु और उनके ख़ुशहाल जीवन के लिए व्रत रखती है। अहोई अष्टमी व्रत को माँ का अपने पुत्र के प्रति समर्पण, मोह और प्रेम का प्रतीक माना गया है। इस दिन माताएँ अपने पुत्र की सुरक्षा के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत का पालन करती हैं। इसके विपरीत, निःसंतान महिलाएँ संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं और व्रत के प्रताप से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।
अहोई अष्टमी व्रत का आरम्भ सूर्योदय से पहले हो जाता है और संध्या के समय तारों को देखने के बाद अर्घ्य देकर इस व्रत को तोड़ा जाता है। इस बार अहोई अष्टमी की पूजा के दौरान गुरु-पुष्य योग का निर्माण हो रहा है और इस योग को अत्यंत शुभ माना जाता है।
अहोई अष्टमी के व्रत में अहोई माता और स्याही माता की पूजा करने की परंपरा है। इस व्रत को कार्तिक माह में करवा चौथ के चौथे दिन और दीपावली से आठ दिन पहले किया जाता है।
अहोई अष्टमी का व्रत 17 अक्टूबर 2022,सोमवार के दिन किया जाएगा।
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त: शाम 05:50 बजे से 07:05 बजे तक, (अवधि - 01 घण्टा 15 मिनट्स)
तारों को देखने के लिए संध्या का समय: शाम 06:13 बजे
अहोई अष्टमी पर चन्द्रोदय समय: रात्रि 11:24 बजे,
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 17 अक्टूबर 2022 को सुबह 09:29 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त - 18 अक्टूबर 2022 को सुबह 11:57 बजे तक
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प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है "अनहोनी से बचाना " जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।
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✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी