Adhik Maas 2023: अधिक शब्द जहां भी इस्तेमाल होगा निश्चित रूप से वह किसी तरह की अधिकता को व्यक्त करेगा। हाल ही में अधिक मास शब्द आप काफी सुन रहे होंगे। विशेषकर हिंदू कैलेंडर वर्ष को मानने वाले इस शब्द से खूब परिचित हैं। जब किसी मास में दिनों की संख्या दो मास के बराबर हो जाये तो वह अधिक मास होता है। ज्योतिषाचार्य का कहना है कि इसकी विशेषता यह होती है कि इसमें सूर्य एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच सूर्य का राशि परिवर्तन यानि संक्रांति नहीं होती। यानि कह सकते हैं कि जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती उस मास को अधिक मास, पुरुषोत्तम मास, मल मास आदि नामों से जाना जाता है। शास्त्रानुसार इस माह में मांगलिक कार्य नहीं किये जाते बल्कि धार्मिक अनुष्ठान, स्नान, दान, उपवास आदि धर्म-कर्म के कार्य ही किये जाते हैं।
कैसे होती है अधिक मास की गणना
दरअसल सौर वर्ष जहां सूर्य की गति पर आधारित है तो चंद्र वर्ष चंद्रमा की गति पर। अब सूर्य एक राशि को पार करने में 30.44 दिन का समय लेता है। इस प्रकार 12 राशियों को पार करने यानि सौर वर्ष पूरा करने में 365.25 दिन सूर्य को लगते हैं। वहीं चंद्रमा का एक वर्ष 354.36 दिन में पूरा हो जाता है। लगभग हर तीन साल (32 माह, 14 दिन, 4 घटी) बाद चंद्रमा के यह दिन लगभग एक माह के बराबर हो जाते हैं। इसलिये ज्योतिषीय गणना को सही रखने के लिये तीन साल बाद चंद्रमास में एक अतिरिक्त माह जोड़ दिया जाता है। इसे ही अधिक मास कहा जाता है।
आदिमास शुरुआत: 18 जुलाई 2023
आदिमास समाप्ति: 16 अगस्त 2023
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ज्योतिषीय गणना और शास्त्र सम्मत मत के अनुसार चैत्र मास से लेकर अश्विन मास तक यानि प्रथम सात मासों में ही अधिक मास हो सकता है। आश्विन माह के पश्चात पड़ने वाले कार्तिक, मंगसर या मार्गशीर्ष और पौष मास में क्षय मास हो सकता है। हालांकि क्षय मास कम ही होते हैं। चंद्र वर्ष के अंतिम दो माह माघ व फाल्गुन में कभी भी अधिक या क्षय मास नहीं होते।
अधिक मास को मल मास भी कहा जाता है। इसके पिछे की मान्यता है कि शकुनि, चतुष्पद, नाग व किंस्तुघ्न यह चारों करण रवि का मल होते हैं। सूर्य का संक्रमण इनसे जुड़े होने के कारण अधिक मास को मल मास भी कहा जाता है।
अधिक मास की शुक्ल एकादशी पद्मिनी एकादशी तो कृष्ण पक्ष की एकादशी परमा एकादशी कहलाती हैं। मान्यता है कि इन एकादशियों के व्रत पालन से नाम व प्रसिद्धि मिलती है और व्रती की मनोकामना पूर्ण होने के साथ खुशहाल जीवन मिलता है।
अधिक मास के दौरान न करें
मलमास में कुछ कार्यों को न करने का विधान हैं। जैसे कि इस माह में कोई स्थापना, विवाह, मुंडन, नव वधु गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, नामकरण, अष्टका श्राद्ध जैसे संस्कार व कर्म करने की मनाही है तो साथ ही कुछ नया पहनना वस्त्रादि, नई खरीददारी करना वाहन आदि का भी निषेध माना जाता है।
अशुभ कर्मों में संलग्न रहें।
नशीली द्रव्यों का सेवन करें।
धार्मिक और आध्यात्मिक गलतियों में डूब जाएं।
अनुचित और अयोग्य विचारों को अपनाएं।
अपवित्र स्थानों पर जाएं और अशुभ कार्यों में शामिल हों।
नेगेटिविटी और आपत्तिजनक विचारों को प्रशंसा करें।
गर्व और अहंकार में रहें और दूसरों को निचा दिखाएं।
अधिक मास में क्या करें
अधिक मास के आरंभ होते ही प्रात:काल स्नानादि से निबट स्वच्छ होकर भगवान सूर्य को पुष्प चंदन एवं अक्षत से मिश्रित जल का अर्घ्य देकर उनकी पूजा करनी चाहिये। इस मास में देशी (शुद्ध) घी के मालपुए बनाकर कांसी के बर्तन में फल, वस्त्र आदि सामर्थ्यनुसार दान करने चाहिये। इस पूरे माह में व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत पुराण, ग्रंथों का अध्ययन विष्णु यज्ञ आदि किये जा सकते हैं। जो कार्य पहले शुरु किये जा चुके हैं उन्हें जारी रखा जा सकता है। महामृत्युंजय, रूद्र जप आदि अनुष्ठान भी करने का विधान है। संतान जन्म के कृत्य जैसे गर्भाधान, पुंसवन, सीमंत आदि संस्कार किये जा सकते हैं। पितृ श्राद्ध भी किया जा सकता है।
आदि मास या अधिमास भारतीय पंचांग में एक अत्यंत महत्वपूर्ण मास है, जो अधिक मास के रूप में भी जाना जाता है। यह मास बहुत ही पवित्र और व्रताधिक मास माना जाता है। इस मास के दौरान कुछ महत्वपूर्ण व्रत और उपायों का पालन किया जाता है। यहां कुछ टिप्स हैं जो आप आदि मास में अपना सकते हैं:
विष्णुपदी व्रत: आदि मास के पहले विष्णुपदी व्रत का पालन करें। इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और भक्ति और आराधना के साथ उनके मंत्रों का जाप किया जाता है।
दान-पुण्य करें: आदि मास में दान और पुण्य कार्यों का विशेष महत्व होता है। आप अपनी शक्ति और संयम से विभिन्न धर्मिक कार्यों में योगदान दे सकते हैं, जैसे अन्नदान, वस्त्रदान, वृत्ति-दान आदि।
जाप और पाठ करें: आदि मास में जाप और पाठ का विशेष महत्व होता है। आप अपनी इच्छित देवता के मंत्रों का जाप कर सकते हैं और पौराणिक कथाओं और स्तोत्रों का पाठ कर सकते हैं।
व्रत करें: आदि मास में विभिन्न व्रतों का पालन करें। कुछ प्रसिद्ध व्रत हैं जैसे गोवत्स द्वादशी व्रत, कामिका एकादशी व्रत, दादिसी व्रत आदि।
सत्संग में शामिल हों: आदि मास में सत्संग और साधु-संतों के संग में शामिल होने का विशेष महत्व होता है। इससे आपकी आत्मिक उन्नति होगी और आप धार्मिक तत्वों को अधिक समझेंगे।
संतोष और सेवा: इस मास में आप संतोष और सेवा का महत्व बढ़ा सकते हैं। दूसरों की सेवा करें, दयालु बनें, निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करें और संतोष से जीवन जिएं।
गौ सेवा: आदिमास में गौ माता की सेवा करने का विशेष महत्व होता है। आप गौशाला में गायों की सेवा कर सकते हैं, उन्हें चारा और पानी प्रदान कर सकते हैं, गौवंश का आदर कर सकते हैं और गौ माता की कृपा को प्राप्त कर सकते हैं।
अधिक मास में व्रती को पूरे माह व्रत का पालन करना होता है। जमीन पर सोना, एक समय सात्विक भोजन, भगवान श्री हरि यानि भगवान श्री कृष्ण या विष्णु भगवान की पूजा, मंत्र जाप, हवन, हरिवंश पुराण, श्रीमद् भागवत, रामायण, विष्णु स्तोत्र, रूद्राभिषेक का पाठ आदि कर्म भी व्रती को करने चाहिये। अधिक मास के समापन पर स्नान, दान, ब्राह्मण भोज आदि करवाकर व्रत का उद्यापन करना चाहिये। शुद्ध घी के मालपुओं का दान करने का काफी महत्व इस मास में माना जाता है।
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