अहोई अष्टमी का व्रत प्रतिवर्ष माताओं द्वारा संतान की लम्बी आयु, समृद्धि,के लिए किया जाता हैं। इस दिन माताएं निर्जला व्रत करती हैं और अहोई अष्टमी पर स्याही माता और अहोई माता की पूजा का विधान हैं।
अहोई अष्टमी को प्रतिवर्ष कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को मुख्य रूप से करवा चौथ के बाद उत्तर भारत में मनाया जाता है जिसे अहोई माता के व्रत से भी जाना जाता है। इस अवसर पर माताएँ अपनी संतान की दीर्घायु और उनके ख़ुशहाल जीवन के लिए व्रत रखती है। अहोई अष्टमी व्रत को माँ का अपने पुत्र के प्रति समर्पण, मोह और प्रेम का प्रतीक माना गया है। इस दिन माताएँ अपने पुत्र की सुरक्षा के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत का पालन करती हैं। इसके विपरीत, निःसंतान महिलाएँ संतान प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं और व्रत के प्रताप से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।
अहोई अष्टमी व्रत का आरम्भ सूर्योदय से पहले हो जाता है और संध्या के समय तारों को देखने के बाद अर्घ्य देकर इस व्रत को तोड़ा जाता है। इस बार अहोई अष्टमी की पूजा के दौरान गुरु-पुष्य योग का निर्माण हो रहा है और इस योग को अत्यंत शुभ माना जाता है।
अहोई अष्टमी के व्रत में अहोई माता और स्याही माता की पूजा करने की परंपरा है। इस व्रत को कार्तिक माह में करवा चौथ के चौथे दिन और दीपावली से आठ दिन पहले किया जाता है।
अहोई अष्टमी 2024 तिथि एवं पूजा मुहूर्त
अहोई अष्टमी का व्रत 24 अक्टूबर 2024,बृहस्पतिवार के दिन किया जाएगा।
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त: शाम 05:42 बजे से 06:59 बजे तक, (अवधि - 01 घण्टा 17 मिनट्स)
तारों को देखने के लिए संध्या का समय: शाम 06:06 बजे
अहोई अष्टमी पर चन्द्रोदय समय: रात्रि 11:55 बजे, (24 अक्टूबर 2024)
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 24 अक्टूबर 2024 को रात्रि 01:18 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त - 25 अक्टूबर 2024 को रात्रि 01:58 बजे तक
व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान किया जाता है और पूजा के समय ही संकल्प लिया जाता है कि “हे अहोई माता, मैं अपने पुत्र की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु अहोई व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे पुत्रों को दीर्घायु, स्वस्थ एवं सुखी रखें।” अनहोनी से बचाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए इस व्रत में माता पर्वती की पूजा की जाती है।
अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र भी निर्मित किया जाता है।
माता जी के सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़े रखते हैं और सुबह दिया रखकर कहानी कही जाती है। कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी/ सूट के दुप्पटे में बाँध लेते हैं। सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं।
ध्यान रखें कि यह करवा, करवा चौथ में इस्तेमाल हुआ होना चाहिए. इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में भी छिड़का जाता है| संध्या काल में इन चित्रों की पूजा की जाती है। पके खाने में चौदह पूरी और आठ पूयों का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। उस दिन बयाना निकाला जाता है। बायने में चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को आर्ध किया जाता है।
अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं। पूजा के पश्चात अपनी सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करती है।
यह भी पढ़ें- आज का पंचांग ➔ आज की तिथि ➔ आज का चौघड़िया ➔ आज का राहु काल ➔ आज का शुभ योग
अहोई अष्टमी व्रत के दिन स्त्रियों को मिट्टी से जुड़े कार्य नहीं करने चाहिए, साथ ही खुरपी का प्रयोग करने से बचें।
महिलाओं को अहोई अष्टमी व्रत वाले दिन काले या गहरे नीले रंग के कपडे नहीं पहनने चाहिए। व्रत की पूजा का आरम्भ सदैव भगवान गणेश के स्मरण से करें।
अहोई अष्टमी पर कांसे के लोटे का प्रयोग अर्घ्य देने के लिए नहीं करें। इस व्रत की पूजा में पहले इस्तेमाल हुई पूजा सामग्री का प्रयोग दोबारा नहीं करना चाहिए।
इस दिन खान-पान में प्याज और लहसुन का प्रयोग करने से बचें। अहोई अष्टमी व्रत के दौरान महिलाओं को दिन में सोना नहीं चाहिए और बुजुर्गों का अनादर करने से बचें।
प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है "अनहोनी से बचाना " जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।