पूर्णिमा की तिथि धार्मिक रूप से बहुत ही खास मानी जाती है विशेषकर हिंदूओं में इसे बहुत ही पुण्य फलदायी तिथि माना जाता है। वैसे तो प्रत्येक मास की पूर्णिमा महत्वपूर्ण होती है लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा बहुत ही खास होती है। इसके खास होने के पिछे कारण यह है कि इसी पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष आरंभ होता है जो आश्विन अमावस्या तक चलते है। इस पूर्णिमा को स्नान दान का भी विशेष महत्व माना जाता है। आइये जानते हैं भाद्रपद पूर्णिमा के महत्व व व्रत पूजा विधि के बारे में।
7 सितम्बर 2025, रविवार (भाद्रपद पूर्णिमा व्रत, भाद्रपद पूर्णिमा)
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - 07 सितम्बर, रात 01:41 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त - 07 सितम्बर, रात 11:38 बजे तक
प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि से ही चंद्र वर्ष के महीनों के नामों का निर्धारण हुआ है। मान्यता रही है कि माह में पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी के अनुसार उस माह का नाम रखा जाता है। समस्त 12 महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। ऐसे में भाद्रपद पूर्णिमा भी इसे इसीलिये कहा जाता है क्योंकि इस दिन चंद्रमा उत्तर भाद्रपदा या पूर्व भाद्रपदा नक्षत्र में होता है।
जैसा कि इस आलेख के आमुख में हमने बताया कि भाद्रपद पूर्णिमा कई मायनों में खास मानी जाती है। एक और देश भर में गणेशोत्सव की समाप्ति से जोश भरा होता है तो वहीं अपने पूर्वजों यानि पितरों को याद करते हुए उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करने का पूरा एक पखवाड़ा यानि श्राद्ध पक्ष इस तिथि से आरंभ होते हैं। वहीं इस पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण की पूजा करने का विधान भी है। मान्यता है कि भगवान सत्यनारायण की पूजा करने से उपासक के सारे कष्ट कट जाते हैं और घर सुख-समृद्धि व धन धान्य से भरा रहता है। व्रती के अपने जीवन में पद व प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है।
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