कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन सोने-चांदी खरीदने की परम्परा रही है। जानें, धनतेरस की तिथि, महत्व एवं पूजा मुहूर्त के बारे में।
धनतेरस का पर्व पांच दिवसीय दिवाली पर्व का प्रथम दिन होता है जो भगवान धनवंतरि को समर्पित होता हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, धनतेरस का त्यौहार प्रति वर्ष कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को श्रद्धाभाव एवं उत्साह से मनाया जाता है। यह पर्व धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जंयती के नाम से भी प्रसिद्ध है। धनतेरस का शाब्दिक अर्थ "धन" और तेरस अर्थात "त्रयोदशी या तेरह " होता है। पौरणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन कुछ भी खरीदा जाता हैं उससे कई गुना लाभ की प्राप्ति होती है। धन संपदा में वृद्धि होती है इसलिए इस दिन माँ लक्ष्मी की पूजा की जाती हैं।
इस वर्ष धनतेरस का त्यौहार 2 नवंबर, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा।
धनतेरस पूजा मुर्हुत: 06:18 PM से 08:10 PM तक
प्रदोष काल: 05:32 PM से 08:10 PM तक
वृषभ काल: 06:18 से रात 08:13 PM तक
त्रयोदशी तिथि आरंभ: सुबह 11:31 बजे से (2 नवंबर 2021)
त्रयोदशी तिथि समाप्त: सुबह 09:02 बजे तक (3 नवंबर 2021)
हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार, धनतेरस के दिन धन की देवी माता लक्ष्मी और आयुर्वेद के देवता धन्वंतरी अमृत कलश हाथ में लेकर समुद्र मंथन से प्रकट हुए थे। संसार को स्वस्थ एवं सुखी जीवन प्रदान करने के उद्देश्य से भगवान धन्वंतरी और माँ लक्ष्मी ने दर्शन दिए थे। यही कारण है कि धनतेरस को धन्वंतरि जयंती के रूप में भी जाना जाता है। देवों और असुर द्वारा किये गए समुद्र मंथन से प्राप्त हुए चौदह रत्नों में धन्वन्तरि देव एवं माता लक्ष्मी भी शामिल थे।
ऐसा माना जाता है कि, इस दिन जैन धर्म के भगवान महावीर तीसरे और चौथे ध्यान में जाने हेतु योग निरोध के लिए चले गए थे। तीन दिन ध्यान के पश्चात योग निरोध करते हुए दीपावली के दिन भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था। उस समय से ही यह तिथि जैन आगम में धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है|
हिन्दू धर्म में धनतेरस के दिन माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान हैं। ऐसा करने से घर-परिवार में सदैव धन, वैभव, सुख और समृद्धि का वास रहता है।
इस दिन देवी लक्ष्मी सहित धन के कोषाध्यक्ष कुबेर की भी उपासना की जाती हैं। यही मुख्य कारण है कि धनतेरस पर चांदी, सिक्का, आभूषण, नए बर्तन, नए कपड़े आदि खरीदने की परंपरा हैं।
भारत में धनतेरस के पर्व को पूरे धूमधाम एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है। हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार होने के बाद भी, इसको समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा आस्था से मनाया जाता है। धनतेरस पर सोने, चांदी के गहने, सिक्कों एवं बर्तनों की खरीदारी अत्यंत शुभ माना गयी है। ऐसा करने से घर में "देवी लक्ष्मी" का स्थायी वास बना रहता हैं। मान्यता है कि किसी भी प्रकार की "धातु" की खरीद अच्छे भाग्य का प्रतीक मानी जाती है। इस अवसर पर सभी लोग अपने घरों, दुकानों एवं कार्यालयों की सफ़ाई करते हैं और देवी के स्वागत के लिए घर को रंगोली और दीपों से सजाते हैं।
धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा में दीप जलाने की परंपरा है। ऐसा कहा जाता है कि एक दिन दूत ने धर्मराज यमराज से बातों ही बातों में प्रश्न किया कि क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई मार्ग है? दूत के इस सवाल का जवाब देते हुए यम देवता ने कहा कि जो मनुष्य कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर शाम के समय दक्षिण दिशा में यम के नाम का दीप प्रजवल्लित करता है उसे कभी अकाल मृत्यु का भय नहीं होता हैं। यही कारण है कि धनतेरस की शाम लोग आँगन में यम देवता के नाम का दीप दक्षिण दिशा में जलाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, साधक और उसके परिवार को मृत्यु के देवता यमराज के कोप से मुक्ति मिलती है। मुख्य रूप से,अगर घर की लक्ष्मी द्वारा दीपदान किया जाता है तो पूरे परिवार को स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद मिलता है|
धनतेरस पर शाम के समय पूजा सम्पन्न करने से सुख, समृद्धि एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। हम आपको धनतेरस की सम्पूर्ण पूजा विधि बताने जा रहे हैं जो आपके लिए उपयोगी सिद्धं होगी।
भगवान कुबेर और धन्वन्तरि की मूर्ति को पूजा स्थान पर उत्तर दिशा की तरफ स्थापित करें।
इसके बाद माँ लक्ष्मी तथा भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं।
पूजा में सभी देवी-देवताओं पर फूल, फल, चावल, रोली व चंदन अर्पित करे और दीप जलाएं।
इसके पश्चात भगवान कुबेर को सफेद मिठाई एवं धनवंतरि देव को पीली मिठाई का प्रसाद के रूप में भोग लगाएं। भगवान धन्वन्तरि को पीली वस्तु अतिप्रिय है।
धनतेरस के दिन यमदेव के नाम का एक दीपक जलाने की भी परंपरा है। दीप जलाने के बाद पूरी आस्था से यमराज को नमन करना चाहिए।
धनतेरस पर सदैव घर या कार्यस्थल पर व्यापार और पेशे में वृद्धि एवं सफलता प्राप्ति के लिए भगवान कुबेर, देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश और देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
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