हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों की श्रृंखला के तहत पूर्वलिखित लेखों में दस संस्कारों की जानकारी दे चुके हैं। इन संस्कारों में संतान प्राप्ति के लिये किये जाने वाले प्रथम संस्कार गर्भाधान से लेकर जातक के शिक्षा ग्रहण और यज्ञोपवीत धारण करने के संस्कार उपनयन तक की जानकारी पाठकों को दी है। दशम संस्कार उपनयन के पश्चात हिंदू धर्म में ग्यारहवां संस्कार केशांत किया जाता है। आइये जानते हैं केशांत संस्कार के महत्व व इसकी विधि के बारे में।
जैसा कि नाम से ज्ञात होता है केशांत का तात्पर्य है केश यानि बालों का अंत लेकिन इससे यह भ्रम होना स्वाभाविक है कि यदि यह केशांत संस्कार में मुंडन ही किया जाता है तो फिर चूड़ाकर्म संस्कार यानि मुंडन संस्कार भिन्न कैसे है? तो इसमें अंतर यह है कि मुंडन संस्कार जातक के जन्म के समय से जो केश उसके सिर पर होते हैं उन्हें पहली बार उतरवाने का संस्कार है जबकि केशांत संस्कार में किशोरावस्था के दौरान जब जातक की दाड़ी आती है तो पहली बार उन केशों को उतारा जाता है यानि जातक की दाड़ी बनवाई जाती है इस दौरान भी जातक के सिर के बाल भी पुन: उतारे जाते हैं। दरअसल गुरु शिष्य परंपरा के दौरान जो कि उपनयन संस्कार के पश्चात आरंभ होती है। जातक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए गुरु के सानिध्य में रहते हुए ज्ञानार्जन करता है। गुरु से शिक्षा दीक्षा प्राप्त करने के दौरान जातक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपने केश भी नहीं कटवाता है। जब जातक युवावस्था की दहलीज़ पर आता है तो उसके श्मश्रु यानि दाड़ी भी उग आती है। इन्हीं केशों का जब विधि-विधान से अंत होता है तो इसे केशांत संस्कार कहा जाता है। इसी संस्कार के दौरान जातक द्वारा उपनयन संस्कार के दौरान धारण की गई मौजी मेखला आदि का भी परित्याग किया जाता है।
यह इस पर निर्भर करता है कि जातक द्वारा गुरुकुल या कहें वेदाध्ययन कब पूर्ण किया जाता है। असल में इस संस्कार के साथ ही जातक को गुरुकुल से विदाई देकर ब्रह्मचर्य की अवस्था से गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिये प्रेरित किया जाता है। वेद-पुराणों सहित विभिन्न विषयों में पारंगत होने के पश्चात समावर्तन संस्कार से पहले बालों की सफाई करवाकर स्नानोपरांत जातक को स्नातक की उपाधि दी जाती है।
अन्य संस्कारों की तरह केशांत संस्कार भी किसी शुभ मुहूर्त में संपन्न किया जाता है। यह संस्कार गुरुकुल में ही करवाया जाता है। शास्त्रानुसार विधि विधान से व्रतों का पालन करने वाला ब्रह्मचारी यानि शिष्य इस संस्कार में गुरु की आज्ञानुसार गणेश आदि देवताओं की पूजा अर्चना के पश्चात अपने सिर एवं श्मश्रु के केशों को कटवाता है। तत्पश्चात स्नान करने के पश्चात जातक को गुरु द्वारा स्नातक की उपाधि दी जाती है।
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