कूर्मा जयंती प्रत्येक वर्ष वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने कूर्मा अवतार धारण किया था। इस वर्ष कूर्मा जयंती 18 मई को है। क्या आप जानते हैं कूर्मा अवतार की कहानी? कैसे मनाई जाती है कूर्मा जयंती? आइये जानते हैं एस्ट्रोयोगी के इस लेख में।
कूर्मा असल में भगवान विष्णु के अवतारों में से एक हैं। जब-जब भक्तों पर संकट मंडराता है तो जगत के पालक भगवान विष्णु अपने भक्तों की रक्षा के लिये अवतरित हुए हैं। कूर्मा अवतार को धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु का दूसरा अवतार माना जाता है। कूर्मा को कच्छप अवतार भी कहा जाता है। कूर्मा दरअसल संस्कृत भाषा का शब्द है इसे हम कच्छप और कछुए के रूप में समझ सकते हैं। कछुए को ही कूर्म कहा जाता है। कुल मिलाकर भगवान विष्णु ने द्वितीय अवतार कछुए का धारण किया था। जिस दिन विष्णु कच्छुए का रूप धारण कर अवतरित हुए वह दिन वैशाख मास की पूर्णिमा का था इसलिये विष्णु भक्त वैशाख पूर्णिमा को कूर्मा जयंती के रूप में भी मनाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान मंदराचल पर्वत का भार सहन करने की क्षमता किसी में नहीं थी जैसे ही उसे क्षीर सागर में छोड़ा गया वह नीचे की ओर धंसता जा रहा था तब भगवान विष्णु ने कच्छुए यानि कूर्मा अवतार धारण कर उसे अपनी पीठ का आधार दिया था। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के दौरान उनकी पीठ का घेरा एक लाख योजन का बताया जाता है। इसके पश्चात ही समुद्र मंथन संभव हो सका था। पौराणिक ग्रंथों में भी इसका वर्णन विस्तार से मिलता है। वहीं पद्मपुराण के ब्रह्मखंड में यह वर्णन भी मिलता है कि इंद्र द्वारा दुर्वासा ऋषि का अपमान किये जाने के बाद उन्होंने इंद्र को शाप दे दिया कि तुम्हारा वैभव समाप्त हो जाये। शाप के कारण मां लक्ष्मी समुद्र में लुप्त हो गई। तब भगवान विष्णु ने लक्ष्मी की पुन: प्राप्ति और दुर्वासा के शाप से मुक्ति के लिये देवताओं को समुद्र मंथन की सलाह दी। लेकिन देवता अकेले समुद्र मंथन करने में सक्षम नहीं थे। इस कारण असुरों से उन्होंने समुद्र मंथन के पश्चात निकलने वाले अमृत का लालच देकर समुद्र मंथन के लिये राजी कर लिया। इसके लिये मंदराचल पर्वत को मथनी तो वासुकी नाग को रस्सी बनाने का विकल्प सुझाया गया। यहां भी देवताओं ने चालाकी की ओर असुरों की प्रशंसा कर उन्हें वासुकी नाग को मुख की ओर से पकड़ने के लिये प्रेरित किया तो खुद देवताओं ने वासुकी की पूंछ थामी। जब मंथन होने लगा तो वासुकी की विषैली फुंफकार से अनेक असुर मारे गये और अनेक निशक्त हो गये। जैसे ही मंदराचल पर्वत को समुद्र में डाला गया तो उसके लिये कोई आधार नहीं था तब भगवान विष्णु ने कूर्मा अवतार धारण किया और मंदराचल पर्वत का आधार बने। कई चरणों में हुए इस समुद्र मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए अंत में मां लक्ष्मी और अमृत कलश लेकर धन्वतरि निकले। मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के पास चली गई तो असुरों ने अमृत अपने पास रख लिया इसके पश्चात भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों को अपने मोहपाश में बांध लिया और छल पूर्वक देवताओं को अमृतपान करवाकर अमर कर दिया। अमरत्व प्राप्त करने के पश्चात देवताओं ने असुरों के साथ युद्ध किया और उन्हें हराकर अपना वैभव, साम्राज्य पुन: प्राप्त किया।
सबसे अहम बात तो यही है कि यह भगवान विष्णु के एक अवतार कूर्म के अवतरित होने का दिन है। दूसरा यह तिथि निर्माण से जुड़े कार्यों का शुभारंभ करने के लिये बहुत ही सौभाग्यशाली मानी जाती है। कूर्मा जयंती पर ही वास्तु दोष दूर करने के उपाय भी किये जाते हैं। ग्रह प्रवेश पूजा आदि के लिये भी यह दिन बहुत ही सौभाग्यशाली माना जाता है।
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