शनि यानि शनिश्चर ग्रह की छवि एक क्रूर ग्रह की बनी हुई है। इसका कारण भी वाज़िब है क्योंकि जब शनि की मार पड़ती है तो अच्छे-अच्छों की हालत पतली हो जाती है। हालांकि शनि न्यायप्रिय देवता हैं और अच्छे के साथ अच्छा तो बूरे के साथ बूरा परिणाम देने वाले होते हैं लेकिन कई बार जाने अनजाने में की गई गलतियों के कारण शनि भक्त भी इनके कोप का भाजन बनते हैं। इसलिये शनि को न्यायप्रिय की बजाय दुष्ट ग्रह ज्यादा माना जाता है। अपने इस लेख में हम आपको बतायेंगें शनि दोष के बारे में ताकि आप जान सके कि कहीं आप भी तो शनि दोष का शिकार नहीं हैं।
शनि दोष दरअसल जातक की कुंडली में शनि की उस अवस्था को कहते हैं जिसमें वह कष्टदायक हों। इसके कई रूप हो सकते हैं। चूंकि शनि देव धीमी चाल से चलते हैं इसलिये शनि की मार भी लंबे समय तक पड़ती है। इस लिहाज से शनि की ढ़ैय्या, साढ़ेसाती भी शनि दोष ही मानी जाती है। देश भर के जाने-माने ज्योतिषाचार्यों से परामर्श करने के लिये आप इस लिंक पर क्लिक करें।
जब शनि मेष राशि में हो तो वह नीच का माना जाता है जिस कारण इसे शनिदोष भी कहा जाता है। इसके अलावा शनि शत्रु राशि का हो तो भी वह जातक को परेशान करता है। शनि, सूर्य के साथ हो और अस्त न हो रहा हो तो इन परिस्थितियों में भी शनि दोष लगता है। शनि का चंद्रमा के साथ होना भी अशुभ होता है। कुल मिलाकर जब शनि नीच राशि का हो, सूर्य या चंद्रमा के साथ युक्ति बना रहा हो या इन पर दृष्टि डाल रहा हो तो इन अवस्थाओं में शनि दोष लगता है।
शनि की ढ़ैय्या: चंद्र राशि के अनुसार जब शनि आठवें या चौथे स्थान में हो तो यह अवस्था शनि की ढ़ैय्या कहलाती है। इस दौरान जातक को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तौर पर काफी हानि उठानी पड़ती हैं और उसका जीवन कष्टप्रद हो जाता है।
शनि की साढ़ेसाती: चंद्र राशि के अनुसार ही जब शनि प्रथम, द्वितीय या द्वादश स्थान मे हो तो शनि की यह अवस्था साढ़ेसाती कहलाती है।
शनि की मार जब पड़ती है तो आदमी दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो जाता है। बुलंदी की सीढ़ियों पर चढ़ते हुआ आसमान को छूता आदमी भी सड़क पर आ जाता है। घर-बार, कारोबार जीवन के हर मुकाम में अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगता है। फेंका गया कोई भी पासा सीधा नहीं पड़ता। कुल मिलाकर शनि की मार को सही मायनों में तो वही समझ सकता है जो हर रोज इससे दो चार होता हो। शनि देव को भले ही क्रूर या दुष्ट ग्रह माना जाता हो लेकिन असल में उनकी भूमिका एक न्यायप्रिय दंडाधिकारी की ही है। जैसी करनी वैसी भरनी के सिद्धांत पर शनिदेव न्याय और दंड देते हैं ऐसे में कुछ ऐसे उपाय हैं जिनके जरिये जाने अनजाने में हुई अपनी भूल का, पाप का प्रायश्चित जातक कर सकते हैं।
शनिदोष के नकारात्मक प्रभावों से बचने के लिये शनिदेव की पूजा करनी चाहिये और तेल, राई, उड़द आदि का दान करना चाहिये। श्री हनुमान की पूजा करने से भी शनिदेव का क्रोध कम होता है। भगवान शिव की आराधना विशेषकर शिवमंत्रों के जाप से भी शनिदोष का निवारण हो सकता है। पीपल में चूंकि समस्त देवताओं का निवास माना जाता है अत: पीपल के पेड़ को सींचने, दीपक लगाने से भी शनिदेव प्रसन्न हो सकते हैं। शनि मंत्र का जाप भी किया जा सकता है। शनिवार या शनि जयंती के दिन शनिदेव की विधिवत पूजा करने से भी शनिदोष दूर हो सकता है। शनिदोष का पता लगाने और शनिदोष दूर करने के उपायों को जानने के लिये आपको विद्वान ज्योतिषाचार्यों से परामर्श अवश्य करना चाहिये।
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