Mahashivratri 2024: साल 2024 में महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का त्योहार 8 मार्च, दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 8 मार्च को रात में 9:57 बजे से होगा, जो अगले दिन यानी 9 मार्च को 6:17 बजे समाप्त होगी। हालांकि, महादेव की पूजा करने का विशेष महत्व प्रदोष काल में होता है इसलिए 8 मार्च 2024 को ही महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा। ऐसे में महा शिवरात्रि (Maha Shivratri) के अवसर पर बारह ज्योतिर्लिंगों (12 Jyotirlingas) के बारे में जानने मात्र से भी आप शिव कृपा के पात्र बन सकते हैं। ज्योतिर्लिंग में शिव स्वयं वास करते हैं। इन बारह ज्योतिर्लिंगों के नामों का अनुसरण करने से ही व्यक्ति अपने पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है। महाशिवरात्रि के दिन ज्योतिर्लिंग की पूजा का अपना ही महत्व है। इस लेख में हम आपको 12 ज्योतिर्लिंग की विशेषताएं व इनके महत्व के बारे में बताएंगे। तो आइये जानें -
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग विश्व का पहला ज्योतिर्लिंग है। यह ज्योतिर्लिंग भारत के गुजरात राज्य के सौराष्ट्र में संमुद्र के किनारे स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग का पौराणिक महत्व है। यहां स्थित शिवलिंग (shivling) को चंद्रमा ने स्थापित किया था और ज्योतिर्लिंग की पूजा कर शिव कृपा प्राप्त की थी। जिससे वे प्रजापति के श्राप से बच सके थें। इसे पापनाशक धाम के नाम से भी जाना जाता है।
महादेव के दूसरे ज्योतिर्लिंग के रूप में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को जाना जाता है। यह आंध्र प्रदेश के श्रीशैल पर्वत पर स्थित है। यहीं से कृष्णा नदी होकर गुजरती है। इस पर्वत को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। मान्यता है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
सभी बारह ज्योतिर्लिंगों में महाकालेश्वर सबसे अनूठा है। यह एक मात्र ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है। महाकालेश्वर को कालो का काल महाकाल कहा जाता है। माना जाता है कि जो भक्त महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की सच्ची श्रद्धा के साथ दर्शन करता है। उसके सिर से अकाल मृत्यु का साया हट जाता है। यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर स्थित है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भी मध्य प्रदेश में स्थित है। ज्योतिर्लिंग नर्मदा तट के करीब स्थित पर्वत पर है। मान्यता है कि ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर सभी तीर्थस्थलों से लाए गए जल को अर्पित करने के बाद ही तीर्थयात्रा को पूर्ण माना जाता है। जिस पर्वत पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है उसके चारों ओर नर्मदा की अविरल धारा प्रवाहित होती है। जिससे ॐ के आकृति का निर्माण होता है।
देवभूमि उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा तब देखने को मिला, जब केदार घाटी में भयंकर प्राकृतिक आपदा आयी थी। इस आपदा में घाटी पूरी तरह से विनाश की चपेट में आ गया था, परंतु केदारनाथ मंदिर को कुछ नहीं हुआ था। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग अलकनंदा व मंदाकिनी नदी के तट के करीब स्थित हिमालय श्रृंखला की केदार चोटी पर स्थित है। माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम की यात्रा से पूर्व केदारनाथ का दर्शन, यात्रा का पूरक बन जाता है और पुण्य फल को बढ़ा देता है।
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भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र प्रदेश के डाकिनी में सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है। यहां का शिवलिंग आकार में काफी मोटा है। इस ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि प्रातःकाल जो भक्त शिव के बारह ज्योतिर्लिंग के नामों का जाप कर इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है वह पाप मुक्त हो जाता है और उसके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं।
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग काशी यानी कि भारत की अध्यात्मिक व धार्मिक केंद्र वाराणसी में स्थित है। बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा अपार है। कैलाश के अलावा बाबा यहीं निवास करते हैं। माना जाता है। इस नगर को प्रलयकाल में महादेव अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और प्रलयकाल के अंत के बाद इसके पृथ्वी पर रख देते हैं।
महाराष्ट्र के नासिक क्षेत्र में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग ब्रह्मगिरी पर्वत पर स्थित है। यहीं से गोदावरी का उद्गम होता है। गोदावरी को पंच पवित्र नदियों में गिना जाता है। माना जाता है कि गोदावरी व गौतम ऋषि की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भोलेनाथ इस शिवलिंग के रूप में यहां विराजमान हुए हैं।
झारखंड के देवघर में स्थित है बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग। यह वही आत्मलिंग है जिसे रावण लंका ले जाना चाहता था। दरअसल भगवान शिव की घोर आराधना कर रावण ने उनसे लंका में निवास करने का वर मांगा। जिस पर वे लंका जाने के लिए राजी हो गए। माता पार्वती ने संसार के हित के लिए उन्हें जाने रोका, जिसके बदले वे अपना आत्मलिंग रावण को देते हैं। लेकिन देवों ने छल से रावण को इस आत्मलिंग को भूमि पर रखने के लिए विवश किया। जैसे से ही रावण इस लिंग को भूमि पर रखते हैं यह वहीं स्थापित हो जाता है। रावण के अथक प्रयास के बावजूद यह लिंग अपनी जगह से नहीं हिलता, आखिरकार रावण इस लिंग को यहीं छोड़कर लंका चला जाता है। इस लिंग को बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, जैसा कि नाम से प्रतीत होता है कि यह ज्योतिर्लिंग नागों देव नीलकंठ महादेव है। यह ज्योतिर्लिंग गुजरात राज्य के द्वारका में स्थित है। मान्यता है कि जो इस लिंग की कथा का श्रवण भक्ति भाव से करता है। उसके सारे पाप धुल जाते हैं और वह सभी सुखों का भोग कर अंत में शिव की शरण में स्थान पाता है। इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन रूद्र संहिता में विस्तार से मिलता है।
तमिलनाडु प्रांत के रामनाथम स्थान पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग ग्यारहवा शिवलिंग है। इस रामसेतु तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने की थी। लंका पर वियज प्राप्त करने के लिए श्रीराम ने इसकी आराधना की और शिव की कृपा प्राप्त की, जिसके बाद वे लंका पर विजय पाने में सफल हुए। जिसके कारण इसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
शिवालय नाम से प्रसिद्ध शिव का द्वादश ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर शिव लिंग महाराष्ट्र के संभाजीनगर के दौलताबाद में स्थित है। बारह ज्योतिर्लिंग में से सबसे आखरी ज्योतिर्लिंग को घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है।
यें हैं शिव के बारह ज्योतिर्लिंग। जिनके बारे में हमने आपको संक्षिप्त जानकारी व इनसे जुड़ी मान्यताओं के बारे में बताया। आशा है यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित हुआ है। महादेव की कृपा आप सभी पर बनी रहे।
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