प्रत्येक मास में चंद्रमा की कलाएं घटती और बढ़ती रहती हैं। चंद्रमा की घटती बढ़ती कलाओं से ही प्रत्येक मास के दो पक्ष बनाये गये हैं। जिस पक्ष में चंद्रमा घटती कला का होता है तो उसे कृष्ण पक्ष कहा जाता है और चढ़ती कला के चंद्रमा वाले पक्ष को शुक्ल पक्ष कहा जाता है।
ऐसे में प्रत्येक पक्ष का अंतिम दिन बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है। शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन यानी जिस दिन चंद्रमा की कलाएं चढ़ते-चढ़ते चंद्रमा अपने वास्तविक रूप में गोल गोल और दूधिया रोशनी वाला दिखाई दे वह पूर्णिमा कहलाता है तो जब चंद्रमा घटते घटते बिल्कुल समाप्त हो जाये और रात घोर अंधकार वाली हो तो उसे अमावस्या कहते हैं। धार्मिक रूप से अमावस्या तिथि का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या तो शनिवार के दिन आने वाली अमावस्या शनि अमावस्या कहलाती है। आषाढ़ मास की अमावस्या को भी खास माना जाता है।
आषाढ़ अमावस्या तिथि व मुहूर्त : जून 25, 2025, बुधवार
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 24 जून, शाम 06:59 बजे से
अमावस्या तिथि समाप्त - 25 जून, शाम 04:00 बजे तक
आषाढ़ मास हिंदू पंचांग के अनुसार का हिंदू वर्ष का चौथा महीना माना जाता है। आषाढ़ मास की अमावस्या के पश्चात वर्षा ऋतु का आगमन भी माना जाता है। इस मायने में आषाढ़ अमावस्या का बहुत ही महत्व है। दान-पुण्य व पितरों की आत्मा की शांति के लिये किये जाने वाले अनुष्ठानों के लिये तो यह तिथि चिर-परिचित है ही। अमावस्या के दिन पवित्र नदियों, धार्मिक तीर्थ स्थलों पर स्नान का भी विशेष महत्व माना जाता है।
आषाढ़ अमावस्या हिंदू पंचांग में एक महत्वपूर्ण तिथि है, जो हर साल आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को आती है। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद खास माना जाता है। इसे विशेष रूप से पितरों की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस दिन स्नान, दान और तप का विशेष महत्व होता है। कई लोग गंगा, यमुना, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान कर पितरों के तर्पण और श्राद्ध कर्म करते हैं।
इस दिन भगवान शिव, भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। इसके अलावा, इस तिथि को भूमि पूजन, वृक्षारोपण, और नए कार्यों की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है। आषाढ़ अमावस्या को 'हलहारिणी अमावस्या' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह दिन कृषि से जुड़े देवी-देवताओं की पूजा के लिए भी शुभ होता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से, इस दिन उपवास और ध्यान करने से आत्मशुद्धि होती है और मन को शांति मिलती है। इसका धार्मिक और पर्यावरणीय महत्व इसे और भी खास बनाता है।
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