सावन अमावस्या 2022 – खास होती है हरियाली अमावस्या

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सावन अमावस्या 2022 – खास होती है हरियाली अमावस्या

अमावस्या तिथि बहुत मायने रखती है। हिंदू पंचांग के अनुसार कृष्ण पक्ष का यह अंतिम दिन होता है। अमावस्या की रात्रि को चंद्रमा घटते-घटते बिल्कुल लुप्त हो जाता है। सूर्य ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाएं केवल अमावस्या तिथि को ही घट सकती हैं। कुल मिलाकर अमावस्य तिथि बहुत महत्वपूर्ण होती है लेकिन धार्मिक रूप से तो अमावस्या और भी खास होती है। स्नान दान के लिये तो यह बहुत ही सौभाग्यशाली तिथि मानी जाती है विशेषकर पितरों की आत्मा की शांति के लिये हवन-पूजा, श्राद्ध, तर्पण आदि करने के लिये तो अमावस्या श्रेष्ठ तिथि होती है। आइये जानते हैं सावन अमावस्या व इसके महत्व के बारे में।  हरियाली अमावस्या पर अपनी कुंडली के अनुसार सरल ज्योतिषीय उपाय जानने के लिये एस्ट्रोयोगी पर देश के प्रसिद्ध ज्योतिषियों से परामर्श करें। अभी बात करने के लिये यहां क्लिक करें।

 

सावन (हरियाली) अमावस्या का महत्व

श्रावण मास वर्षा ऋतु का माह होता है। इस माह में मौसम का नज़ारा इतना मनोरम होता है कि बादलों की घटा में प्रकृति की छटा भी बिखरी हुई नज़र आती है। हर ओर हरियाली छाने लगती है। पेड़ पौधे बारिश की बूंदों में धुलकर एकदम तरोताज़ा हो जाते हैं। पक्षी चहकने लगते हैं तो मन भी बहकने लगते हैं। इसीलिये सावन मास की अमावस्या बहुत खास मानी जाती है। श्रावणी अमावस्या से पहले दिन शिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। सावन शिवरात्रि से अगला दिन श्रावणी अमावस्या का होता है। गर्मी से झुलसते पेड़ों को सावन की रूत नया जीवनदान देती है और हर ओर हरियाली छा जाती है। इस अमावस्या के तीन दिन बाद ही त्यौहारों का बीजारोपण करने वाला पर्व हरियाली तीज आता है इसलिये यह अमावस्या हरियाली अमावस्या भी कही जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 2022 में हरियाली अमावस्या 28 जुलाई को  बृहस्पतिवार के दिन है।

 

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श्रावण अमावस्या तिथि

  • अमावस्या तिथि – 28 जुलाई 2022, बृहस्पतिवार
  • अमावस्या तिथि आरंभ – रात 21 बजकर 11 मिनट बजे (27 जुलाई 2022) से
  • अमावस्या तिथि समाप्त – रात 23 बजकर 24 मिनट (28 जुलाई 2022) तक

 

हरियाली अमावस्या व्रत व पूजा विधि

  • चूंकि इस अमावस्या पर पेड़-पौधों को नया जीवन प्रदान होता है और पेड़-पौधों से मनुष्य का जीवन सुरक्षित होता है इस कारण वृक्षों की पूजा का हरियाणा अमावस्या पर खास महत्व होता है।
  • इस दिन पीपल की पूजा की जाती है। इसके फेरे लिये जाते हैं। मालपूओं का भोग लगाया जाता है।
  • पीपल, बरगद, केला, निंबू, तुलसी आदि का वृक्षारोपण करना भी शुभ माना जाता है।
  • दरअसल वृक्षों की प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के पर्व के रूप में हरियाली अमावस्या को जाना जाता है।
  • इन वृक्षों में देवताओं का वास माना जाता है। पीपल में जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास बताया जाता है वहीं आवंला में भगवान लक्ष्मीनारायण को विराजमान माना जाता है।
  • इस दिन गेंहू, ज्वार, मक्का आदि की सांकेतिक बुआई भी की जाती है। गुड़ व गेंहू की धानि प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है। उत्तर भारत में तो इसे पर्व के रूप में मनाया जाता है।
  • ज्योतिषाचार्य jyotishacharya का कहना है कि पौधारोपण के लिये उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपदा, रोहिणी, मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, मूल, विशाखा, पुष्य, श्रवण, अश्विनी, हस्त आदि नक्षत्र श्रेष्ठ व शुभ फलदायी माने जाते हैं। 

 

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