धनतेरस का त्योहार दीपावली से दो दिन पूर्व मनाया जाता है। इस बार तिथियों के संयोग से धनतेरस के अगले दीपावली का त्योहार मनाया जायेगा। इस दिन धन्वंतरि देव के साथ मां लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा की जाती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। धनतेरस दो शब्दों से मिलकर बना है, धन और तेरस। यहां धन का अर्थ पैसा और तेरस अर्थ 13वां दिन है। इस कारण, हिंदू धर्म में इस दिन धन के देवता कुबेर और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। वहीं, कुछ क्षेत्रों में धन तेरस को आयुर्वेद के देवता धन्वंतरि की जयंती के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस कारण इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। इसके साथ ही इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा भी की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि धनतेरस के दिन पूजा करने से घर में धन के भंडार हमेशा भरे रहते हैं। मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस पर नई वस्तुएं सोना, चांदी, कपड़े, वाहन, बर्तन आदि खरीदना काफी शुभ माना जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2022 में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 22 अक्टूबर, शनिवार को शाम 06ः02 मिनट पर हो रहा है। जो अगले दिन 23 अक्टूबर की शाम 06ः03 मिनट तक रहेगी। इस कारण धनतेरस तिथि 22 अक्टूबर की शाम से लेकर 23 अक्टूबर की शाम तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार धनतेरस की पूजा प्रदोष काल अर्थात् शाम के समय की जाती है, जब स्थिर लग्न हो। इसके अलावा वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है, मान्यता है कि इस समय पर धनतेरस पूजा की जाये तो मां लक्ष्मी घर में ठहर जातीं हैं। इसके साथ ही माता लक्ष्मी की कृपा से घर में धन की कोई कमी नहीं रहती है। इस बार त्रयोदशी तिथि 23 अक्टूबर को प्रदोष काल शुरू होने पर ही खत्म हो रही है, इस कारण धनतेरस की पूजा 22 अक्टूबर 2022 को ही करना शुभ है। इस दिन ही वृषभ लग्न है। इसमें यम के निमित्त दीपदान भी किया जाता है।
धनतेरस का दिन परमसिद्ध मुहूर्त होता है। वहीं, इस बार 23 अक्टूबर, धनतेरस पर सुबह से सर्वार्थ सिद्धि योग शुरू हो जाएगा, जो पूरे दिन और रात्रि तक रहेगा। इसके साथ ही दोपहर 2:30 बजे से अमृत सिद्धि योग भी शुरू होगा। धनतेरस पर सुबह 7.51 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच चर, लाभ और अमृत के शुभ चौघड़िया मुहूर्त रहेंगे। इस कारण खरीदारी करने के लिए यह बहुत शुभ समय होगा। इसके बाद दोपहर 1:30 से 3 बजे के बीच भी शुभ चौघड़िया में भी खरीदारी के लिए शुभ समय होगा। इसके बाद शाम 6 बजे से रात 10:30 बजे के बीच भी पुनः चर, लाभ और अमृत के शुभ चौघड़िया मुहूर्त होंगे, जिनमें खरीदारी की जा सकती है। इसके साथ ही राहुकाल में खरीदारी करना शुभ नहीं माना गया है, इस कारण राहुकाल में खरीदारी न करें। राहुकाल 23 अक्टूबर की शाम 4:19 बजे से शाम 5ः44 बजे तक रहेगा।
सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर नहाकर साफ वस्त्र पहनें।
चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं व गंगाजल छिड़कें।
इसके बाद उसपर भगवान धन्वंतरि, माता महालक्ष्मी और भगवान कुबेर की प्रतिमा या फिर चित्र स्थापित करें व स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं।
नीचे लिखे मंत्र से भगवान धन्वंतरि का आह्वान करें।
( सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।)
भगवान के सामने देसी घी का दीपक, धूप जलाएं।
अब देवी-देवताओं को लाल फूल अर्पित करें।
आपने इस दिन जिस भी धातु या फिर बर्तन अथवा ज्वैलरी की खरीदारी की है, उसे भी चौकी पर रख दें।
लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी यंत्र, कुबेर यंत्र और कुबेर स्तोत्र का पाठ करें।
भगवान कुबेर के लिए (ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये। धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥) मंत्र का जाप करें।
धनतेरस की पूजा के दौरान लक्ष्मी माता के मंत्रों का जाप करें और मिठाई का भोग भी लगाएं।
इसके साथ ही भगवान धन्वंतरि को पूजा स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं। आचमन के लिए जल छोड़ें और भगवान धन्वंतरि को वस्त्र (मौली) चढ़ाएं।
भगवान धन्वंतरि पर अबीर, गुलाल, पुष्प, रोली और अन्य सुगंधित चीजें चढ़ाएं।
चांदी के बर्तन में खीर का भोग लगाएं। (अगर चांदी का बर्तन न हो तो अन्य किसी बर्तन में भोग लगा सकते हैं।)
इसके बाद आचमन के लिए जल नीेचे की ओर छोड़ें। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी अर्पित करें। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वंतरि को चढ़ाएं।
भगवान से रोग नाश की कामना के लिए इस मंत्र का जाप करें। (ऊं रं रूद्र रोग नाशाय धनवंतर्ये फट्।।)
भगवान धन्वंतरि को श्रीफल व दक्षिणा अर्पित करें। पूजा के अंत में कर्पूर आरती करें।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि के अवतार में जन्म लिया था। शास्त्रों के अनुसार भगवान धन्वंतरी देवताओं के वैद्य हैं। इनकी पूजा से स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में हर साल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि के उत्पन्न होने के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं थीं, इसलिए धनतेरस के दो दिन बाद दीपावली मनायी जाती है।
वहीं, एक और मान्यता के अनुसार धंव नाम के राजा को कठोर तपस्या करने पर धन्वंतरी नाम का पुत्र प्राप्त हुआ था। धन्वंतरी भगवान की चार भुजाएं होती हैं। उनके एक हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ तो दूसरे हाथ में औषधि कलश होता है। तीसरे हाथ में जड़ी-बूटी और चौथे हाथ में शंख होता है। धन्वंतरी भगवान को ही आयुर्वेद का जनक माना जाता है। इस कारण धनतेरस पर भगवान धन्वंतरी की पूजा करने से आरोग्य का वरदान भी प्राप्त होता है। धन्वंतरी पूजन विशेष फलदायी होता है।
धनतेरस से जुड़ी एक और मान्यता के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए थे। दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें कुछ भी देने से मना कर दें। इसके बाद भी राजा बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी।
वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए राजा बलि संकल्प लेने के लिए कमंडल से जल निकालने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इसकी वजह से कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन अवतार में भगवान विष्णु शुक्राचार्य की चाल को समझ गए।
भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमंडल में डाला तो शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी। इसके बाद शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आये। बलि ने संकल्प लेकर तीन पग भूमि दान कर दी। इसके बाद भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पैर से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। राजा बलि ने दान में अपना सब कुछ दे दिया। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुणा अधिक धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। माना जाता है कि इसके उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार धनतेरस पर खरीदारी करने से उसमें 13 गुना वृद्धि होती है। इस कारण धनतेरस पर नए बर्तन, सोना, चांदी आदि के आभूषण, नए वस्त्र और घर की साज-सज्जा का सामान व दीपावली पर पूजन के लिए भगवान गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति आदि खरीदना शुभ माना गया है। इसके साथ ही इस दिन नींवपूजन, गृहप्रवेश, नए घर की बुकिंग, बिजनेस डील और नए वाहन की खरीदारी भी बहुत शुभ मानी गई है।
झाड़ू खरीदने से दूर होगी गरीबी
झाड़ू का संबंध माता लक्ष्मी से माना जाता है। इस कारण धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदना शुभ होता है। लक्ष्मी मां को सफाई से प्रेम है। कहा जाता है कि जहां गंदगी होती है, उन जगहों पर माता लक्ष्मी निवास नहीं करती हैं। इस कारण धनतेरस के दिन झाड़ू जरूर खरीदना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन सींक वाली झाड़ू खरीदने से गरीबी दूर हो जाती है।
धन संपत्ति बढ़ाती है धातु की खरीदारी
धनतेरस के दिन धातु खरीदना भी शुभ माना जाता है। इस दिन स्टील, तांबे और पीतल आदि के बर्तन खरीदकर उनकी भी पूजा की जाती है। कुछ लोग सोने-चांदी के गहनों की खरीदारी करते हैं। माना जाता है कि इस दिन धातु की पूजा करने से घर की धन-संपत्ति में बरकत होती है।
वाहन और जमीन की खरीदारी के लिए शुभ दिन है धनतेरस
धनतेरस पर वाहन या फिर जमीन आदि की भी खरीदारी करते हैं। धनतेरस के दिन यदि वाहन खरीदते हैं तो उससे आपको सालभर शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जमीन की खरीदारी से जायदाद में इजाफा होता है।
दीपक की खरीदारी से आयेगी खुशहाली
हिंदू धर्म में दिवाली और धनतेरस के दिन दीपक जलाने की परंपरा है। धनतेरस के दिन दीपक खरीदने का खास महत्व है। मान्यता है कि प्रकाश और सकारात्मकता के प्रतीक दीपक को खरीदने से जीवन में खुशहाली आती है और मां लक्ष्मी की भी कृपा बनी रहती है।
धनतेरस पर दान से प्रसन्न होती हैं मां लक्ष्मी
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के साथ दान का बहुत महत्व है। माना जाता है कि धनतेरस के दिन नई चीजों को खरीदने के साथ ही अन्न, वस्त्र आदि का दान भी करें। धनतेरस के दिन जरूरतमंद लोगों को वस्त्र बांटने को महादान माना गया है। वस्त्र दान से धन की देवी मां लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होती हैं। माता सक्ष्मी की कृपा से घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है।
धनतेरस पर न करें ये काम
ज्योतिषियों के अनुसार धनतेरस के दिन कुछ चीजों की खरीददारी करने से बचना चाहिए अन्यथा शुभ की जगह अशुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि धनतेरस पर कांच, चीनी मिट्टी और लोहे के बर्तन नहीं खरीदने चाहिए।
धनतेरस पर उधार लेना या देना भी है अशुभ
माना जाता है कि धनतेरस के दिन न तो किसी से धन उधार लेना और न ही देना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को धन लेना और देना हो तो यह कार्य धनतेरस से पहले ही कर लेना चाहिए। मान्यता है कि धनतेरस पर धन के लेन-देन से मां लक्ष्मी रुष्ट हो जाती हैं। जिससे व्यक्ति की अर्थिक वृद्धि रुक जाती है और उसके पास धन नहीं टिकता है।
ॐ जय धन्वंतरि देवा, स्वामी जय धन्वंतरि जी देवा, जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा, स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ॐ जय धन्वन्तरि जी देवा।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए, देवासुर के संकट आकर दूर किए, स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ॐ जय धन्वन्तरि जी देवा।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया, सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया,स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ॐ जय धन्वन्तरि जी देवा।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी, आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी, स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ॐ जय धन्वन्तरि जी देवा।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे, असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे, स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ॐ जय धन्वन्तरि जी देवा।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा, वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा, स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ॐ जय धन्वन्तरि जी देवा।
धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे, रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे, स्वामी जय धन्वन्तरि देवा, ॐजय धन्वन्तरि जी देवा।।
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✍️ BY- टीम एस्ट्रोयोगी