हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक माह की अमावस्या तिथि के दिन दीपावली (दिवाली) का त्योहार मनाया जाता है। दिवाली आने से काफी पहले ही बाजारों में रौनक बढ़ जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां लक्ष्मी प्रकट हुईं थीं। दीपावली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
दीपावली या दिवाली हिंदूओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर दीपावली का त्योहार मनाय़ा जाता है। दिवाली की शाम को माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, देवी सरस्वती, धन के देवता कुबेर और मां काली की पूजा की जाती है। माना जाता है कि कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर ही समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी प्रकट हुईं थीं। मान्यता है कि दिवाली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भम्रण करती हैं और भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक अमावस्या की रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और सभी के घरों में जाती हैं। जिन घरों में साफ-सफाई, रोशनी और विधि-विधान से देवी-देवताओं का पूजन होता है, वे वहां वास करने लगती हैं। ऐसे घरों में कभी धन का अभाव नहीं होता है।
दिवाली के दिन लोग अपने घरों व ऑफिसों को गेंदे के फूल, अशोक, आम व केले के पत्तों से सजाते हैं। घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर मांगलिक कलश को बिना छिलके वाले नारियल से ढक कर रखना शुभ माना जाता है। लोग घरों और ऑफिसों में रंगोली बनाते है। दिवाली की शुरुआत धनतेरस से होती है और इसका अगला दिन रुप चौदस (छोटी दिवाली) या नरक चौदस का होता है। बड़ी दिवाली, इस छोटी दिवाली के अगले दिन होती है। इस बार बड़ी दिवाली 24 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इसके अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है। इसके बाद भाईदूज का त्योहार मनाया जाता है। वहीं, इस बार दिवाली के अगले दिन ही सूर्य ग्रहण पड़ रहा है।
मान्यता है कि माता लक्ष्मी की पूजा प्रदोष काल में की जानी चाहिए। सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल का प्रारम्भ होता है और यह काल लगभग 2 घण्टे 24 मिनट तक रहता है। वहीं, विद्वानों का मानना है कि महानिशिता काल तांत्रिकों और विशेष पूजा करने वालों के लिए होता है। सामान्य लोगों के लिए प्रदोष काल मुहूर्त में ही पूजा करनी चाहिए।
माता लक्ष्मी की पूजा करने के लिए चौघड़िया मुहूर्त नहीं देखे जाते हैं, क्योंकि माना जाता है कि ये मुहूर्त यात्रा के लिए सही होते हैं। माता लक्ष्मी की पूजा के लिए सबसे अच्छा समय प्रदोष काल ही होता है। ऐसी मान्यता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाए तो लक्ष्मी जी घर में ठहर जाती हैं। इस कारण लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे अच्छा माना जाता है। वहीं, वृषभ लग्न को स्थिर माना जाता है और दीवाली के त्योहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ ही होता है। अनेक समुदाय, विशेष रूप से गुजराती व्यापारी लोग, दीपावली की पूजा के दौरान चोपड़ा पूजन करते हैं। चोपड़ा पूजा के दौरान देवी लक्ष्मीजी की उपस्थिति में नए खाते की पुस्तकों का शुभारम्भ किया जाता है और अगले वित्तीय वर्ष के लिए उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है। दीपावली की पूजा को लक्ष्मी-गणेश पूजन के नाम से भी जाना जाता है।
साल 2022 में कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 24 अक्टूबर से शुरू होकर 25 अक्टूबर तक रहेगी। 25 अक्टूबर को प्रदोष काल से पहले ही अमावस्या तिथि समाप्त हो जायेगी। वहीं, 24 अक्टूबर को प्रदोष काल में अमावस्या तिथि रहेगी। उसी दिन निशित काल में भी अमावस्या तिथि रहेगी। इस कारण 24 अक्टूबर को ही पूरे देश में दीपावली का पर्व मनाया जाएगा।
24 अक्टूबर 2022 को छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली साथ मनाई जाएगी। रात में माता लक्ष्मी की पूजा के लिए शाम 06:53 से शाम 08:16 तक और निशिता मुहूर्त रात 11.46 से 12.37 तक शुभ मुहूर्त है। रविवार के दिन त्रयोदशी तिथि शाम 06ः04 तक रहेगी। उसके बाद चतुर्दशी तिथि लग जाएगी। 24 अक्टूबर को शाम 05ः28 पर चतुर्दशी तिथि समाप्त होगी और अमावस्या तिथि आरंभ होगी। अमावस्या तिथि 25 अक्टूबर को शाम 04ः19 मिनट तक रहेगी। मान्यता है कि दिवाली पूजन प्रदोष काल में किया जाता है।
स्थिर लग्न के बिना लक्ष्मी पूजा मुहूर्त
दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के लिये शुभ चौघड़िया मुहूर्त
दीपावली बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण को परास्त कर लंका पर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के दिन वे 14 साल का वनवास पूरा कर अयोध्या वापस लौटे थे। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता अयोध्या आए थे तो उनका स्वागत लोगों ने दीप जलाकर किया था। उस दिन भगवान श्रीराम के वापस आने की खुशी में प्रकाश का पर्व दीपावली मनाया गया था।उस दिन से प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दिवाली का त्योहार मनाया जाने लगा। पूरे भारत में इस पर्व को अलग ही हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है।
इसके साथ ही धार्मिक मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान इस दिन मां लक्ष्मी प्रकट हुईं थीं, तब से वे दिवाली के दिन अपने भक्तों के घर पर आती हैं और उन्हें धन-धान्य का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने दैत्यराज बलि की कैद से देवताओं को छुड़वाया था। इसके साथ ही उनका सारा धन-धान्य, राजपाठ वैभव लक्ष्मी जी की कृपा से पुन: परिपूर्ण हुआ था। इस कारण दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है। मां लक्ष्मी भोग की अधिष्ठात्री देवी हैं, इनके प्रसन्न होने से जीवन में भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।
दीपावली के दिन माता लक्ष्मी की यह कथा काफी प्रचलित है। एक बार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को माता लक्ष्मी विचरण कर रहीं थीं, तभी वह रास्ता भूल गईं। हर ओर घोर अंधेरा था। पृथ्वी लोक पर हर कोई सो रहा था, सभी के घर के दरवाजे बंद थे। माता लक्ष्मी जी भ्रमण करते हुए एक वृद्ध महिला के घर पहुंचीं, जो चरखा चला रही थी। उन्होंने माता लक्ष्मी को विश्राम करने के लिए बिस्तर आदि की व्यवस्था की, जहां पर माता लक्ष्मी ने विश्राम किया। इस दौरान वह वृदा अपने काम में व्यस्त रही। काम करते-करते वह सो गईं। जब उनकी आंख खुली तो उनकी कुटिया की जगह महल बन गया था। उनके घर में धन-धान्य के अलावा और भी सभी चीजें मौजूद थीं। किसी चीज की कमी नहीं थी। माता लक्ष्मी वहां से कब चली गई थीं, यह उस वृद्ध महिला को पता ही नहीं चल पाया था। माता लक्ष्मी जी ने उस महिला की सेवा से प्रसन्न होकर उस पर कृपा की थी। उसके बाद से हर वर्ष कार्तिक अमावस्या को रात्रि में प्रकाशोत्सव करने की परंपरा शुरू हो गई। इस दिन माता लक्ष्मी के आगमन के लिए लोग अपने घरों के द्वार खोलकर रखने लगे।
पौराणिक कथा के अनुसार बैकुंठ में मां लक्ष्मी और विष्णु जी आपस में बात कर रहे थे, तभी माता लक्ष्मी ने कहा कि मैं धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य, सौहाद्र देती हूं, मेरी कृपा से भक्त को सर्व सुख प्राप्त होता है। ऐसे में मेरी ही पूजा सर्वश्रेष्ठ है। मां लक्ष्मी के इस अहंकार को भगवान विष्णु ने तोड़ने का फैसला किया। विष्णु जी ने कहा कि देवी आप श्रेष्ठ हैं, लेकिन संपूर्ण नारीत्व आपके पास नहीं है, क्योंकि जब तक किसी स्त्री को मातृत्व का सुख न मिले वो उसका नारीत्व अधूरा रहता है। मां लक्ष्मी श्रीहरि की बात सुनकर निराश हो गईं। इसके लिए वे देवी मां पार्वती के पास पहुंचीं और उन्हें सारी बात बतायी। जगत जननी मां पार्वती ने लक्ष्मी जी की पीड़ा देखते हुए अपने एक पुत्र गणेश को उन्हें दत्तक पुत्र के रूप में सौंप दिया। देवी लक्ष्मी अति प्रसन्न हुईं और उन्होंने भगवान गणेश को अपनी सिद्धियां, धन, संपत्ति, सुख, प्रदान करने की बात कही। देवी ने कहा कि साधक को धन, दौलत, ऐश्वर्य की प्राप्ति तभी होगी लक्ष्मी के साथ गणेश जी की उपासना की जाएगी, तब से ही दिवाली पर भगवान गणेश की आराधना की जाती है। गणपति हमेशा लक्ष्मी जी के बाईं ओर विराजमान होते हैं, ऐसे में देवी की मूर्ति या तस्वीर लेते वक्त इस बात का ध्यान जरूर रखें।
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✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी