हिंदूओं में एकादशी व्रत की बहुत मान्यता है। वर्ष के प्रत्येक मास की दोनों एकादशियों को बहुत ही शुभ माना जाता है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी भी अपना विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि इस एकादशी के उपवास से पिशाचों सा जीवन व्यतीत करने वाले पापी से पापी व्यक्ति भी मोक्ष को पा लेते हैं। माघ शुक्ल एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। आइये जानते हैं जया एकादशी की व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में।
जया एकादशी 2025 तिथि - 08 फरवरी 2025, मंगलवार
पारण का समय - 09 फरवरी 2025, को प्रात 07:04 से प्रातः 09:17 तक
एकादशी तिथि शुरु- 07 फरवरी, रात 09:26 बजे
एकादशी तिथि समाप्त- 08 फ़रवरी, रात 08:15 बजे
बात बहुत समय पहले की है नंदन वन में उत्सव का आयोजन हो रहा था। देवता, सिद्ध संत, दिव्य पुरूष सभी उत्सव में मौजूद थे। उस समय गंधर्व गा रहे थे, गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थी। इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था। जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही सुंदर रूप भी उसने पाया था। उधर गंधर्व कन्याओं में एक पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी। बहुत ही अच्छा समां बंधा हुआ था कि पुष्यवती की नज़र माल्यवान पर पड़ती है और फिर नज़र है कि वहां से हटने का नाम नहीं लेती। पुष्यवती के नृत्य को देखकर माल्यवान भी सुध बुध खो देता है और वह गाते-गाते लय सुर से भटक जाता है। उनके इस कृत्य से इंद्र नाराज़ हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगो। फिर क्या था श्राप का प्रभाव तुरंत पड़ा और दोनों धड़ाम से धरती पर आ गिरे वो भी हिमालय पर्वत के पास के जंगलों में। अब दोनों एक वृक्ष पर रहने लगे। पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था। दोनों बहुत दुखी थे।
एक बार माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था पूरे दिन में उन्होंने केवल एक बार ही फलाहार किया था। जैसे जैसे दिन ढलने की ओर बढ़ रहा था ठंड भी बढ़ती जा रही थी। देखते ही देखते रात घिर आयी और ठंड और भी बढ़ गई थी, ठंड के मारे दोनों रात्रि भर जागते रहे और भगवान से अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे। सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई। जैसे तैसे अंजाने में ही सही उन्होंनें एकादशी का उपवास किया था। भगवान के नाम का जागरण भी हो चुका था इसी का फल था कि मृत्युपर्यन्त उन्होंने पुन: खुद को स्वर्ग लोक में पाया। देवराज इंद्र उन्हें स्वर्ग में देखकर अचंभित हुए और पूछा कि वे श्राप से कैसे मुक्त हुए। तब उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु की उन पर कृपा हुई। हमसे अंजाने में माघ शुक्ल एकादशी यानि जया एकादशी का उपवास हो गया जिसके प्रताप से भगवान विष्णु ने हमें पिशाची जीवन से मुक्त किया। इस प्रकार सभी ने जया एकादशी के महत्व को जाना।
कुछ कथाओं में नंदन वनोत्सव के स्थान पर इंद्र सभा का जिक्र भी है जिनके अनुसार माल्यवान व पुष्यवती एकादशी का उपवास विधि विधान से करते हैं और उपवास संपन्न कर श्राप से मुक्त होते हैं।
जया एकादशी व्रत के लिये उपासक को पहले दिन यानि दशमी के दिन एक बार ही सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिये। अपनी मनोवृति को भी सात्विक ही रखना चाहिये। व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन भी करना चाहिये। एकादशी के दिन व्रत का संकल्प करके धूप, दीप, फल, पंचामृत आदि से भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिये। रात्रि में श्री हरि के नाम का ही भजन कीर्तन भी करना चाहिये। फिर द्वादशी के दिन किसी पात्र ब्राह्मण अथवा जरुरतमंद को भोजन कराकर और क्षमतानुसार दान दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिये।
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