मोहिनी एकादशी 2022: जानें मोहिनी एकादशी की व्रत कथा व पूजा विधि

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मोहिनी एकादशी 2022: जानें मोहिनी एकादशी की व्रत कथा व पूजा विधि

Mohini Ekadashi 2025 : वैशाख मास को भी पुराणों में कार्तिक माह की तरह ही पावन बताया जाता है इसी कारण इस माह में पड़ने वाली एकादशी भी बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है। वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत से व्रती मोह माया से ऊपर उठ जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइये जानते हैं वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी क्यों कहा जाता है और इस एकादशी की व्रत कथा व पूजा विधि क्या है? 

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मोहिनी एकादशी 2025 तिथि व मुहूर्त: 

वर्ष 2025 में मोहिनी एकादशी 08 मई को है।

एकादशी तिथि का प्रारंभ:  07 मई 2022, सुबह 10 बजकर 19 मिनट से 
एकादशी तिथि की समाप्ति: 08 मई 2025, शाम 12 बजकर 29 मिनट तक

ज्योतिषी के अनुसार, एकादशी की उदया तिथि 07 मई को मिल रही है, इसलिए व्रती लोग 08 मई को व्रत रखेंगे और अगले दिन यानी 09 मई सुबह 05 बजकर 34 मिनट से सुबह 08 बजकर 16 मिनट के बीच में पारण कर सकते हैं। 

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वैशाख शुक्ल एकादशी का नाम कैसे पड़ा मोहिनी एकादशी? 

मान्यता है कि वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था। भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए अमृत को देवताओं में वितरित करने के लिये मोहिनी का रूप धारण किया था। कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन हुआ तो अमृत प्राप्ति के बाद देवताओं व असुरों में आपाधापी मच गई थी। चूंकि ताकत के बल पर देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे इसलिये चालाकि से भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोहपाश में बांध लिया और सारे अमृत का पान देवताओं को करवा दिया जिससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया। वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन चूंकि यह सारा घटनाक्रम हुआ इस कारण इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा गया।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा:

मोहिनी एकादशी की व्रत कथा इस प्रकार है। कहते हैं किसी समय में भद्रावती नामक एक बहुत ही सुंदर नगर हुआ करता था जहां धृतिमान नामक राजा राज किया करते थे। राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे। उनके राज में प्रजा भी धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर भाग लेती। इसी नगर में धनपाल नाम का एक वैश्य भी रहता था। धनपाल भगवान विष्णु के परम भक्त और एक पुण्यकारी सेठ थे। भगवान विष्णु की कृपा से ही इनकी पांच संतान थी। इनके सबसे छोटे पुत्र का नाम था धृष्टबुद्धि। उसका यह नाम उसके धृष्ट कर्मों के कारण ही पड़ा। बाकि चार पुत्र पिता की तरह बहुत ही नेक थे। लेकिन धृष्ट बुद्धि ने कोई ऐसा पाप कर्म नहीं छोड़ा जो उसने न किया हो। तंग आकर पिता ने उसे बेदखल कर दिया।

भाईयों ने भी ऐसे पापी भाई से नाता तोड़ लिया। जो धृष्ट बुद्धि पिता व भाइयों की मेहनत पर ऐश करता था अब वह दर-दर की ठोकरें खाने लगा। ऐशो आराम तो दूर खाने के लाले पड़ गये। किसी पूर्व जन्म के पुण्य कर्म ही होंगे कि वह भटकते-भटकते कौंडिल्य ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। जाकर महर्षि के चरणों में गिर पड़ा। पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए वह कुछ-कुछ पवित्र भी होने लगा था। महर्षि को अपनी पूरी व्यथा बताई और पश्चाताप का उपाय जानना चाहा। उस समय ऋषि मुनि शरणागत का मार्गदर्शन अवश्य किया करते और पातक को भी मोक्ष प्राप्ति के उपाय बता दिया करते। ऋषि ने कहा कि वैशाख शुक्ल की एकादशी बहुत ही पुण्य फलदायी होती है। इसका उपवास करो तुम्हें मुक्ति मिल जायेगी। धृष्ट बुद्धि ने महर्षि की बताई विधि अनुसार वैशाख शुक्ल एकादशी यानी मोहिनी एकादशी का उपवास किया। इसके बाद उसे पाप कर्मों से छुटकारा मिला और मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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मोहिनी एकादशी व्रत महत्व व पूजा विधि:

  1. मोहिनी एकादशी का महात्म्य बहुत अधिक माना जाता है।
  2. मान्यता है कि माता सीता के विरह से पीड़ित भगवान श्री राम ने, और महाभारत काल में युधिष्ठिर ने भी अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिये इस एकादशी का व्रत विधि विधान से किया था।
  3. एकादशी व्रत के लिये व्रती को दशमी तिथि से ही नियमों का पालन करना चाहिये।
  4. दशमी तिथि को एक समय ही सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिये।
  5. ब्रह्मचर्य का पूर्णत: पालन करना चाहिये।एकादशी से दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिये।
  6. इसके पश्चात लाल वस्त्र से सजाकर कलश स्थापना कर भगवान विष्णु को चंदन, अक्षत, पंचामृत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और फल अर्पित करना चाहिए।
  7. तत्पश्चात विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके भगवान विष्णु की आरती करनी चाहिए।
  8. दिन में व्रती को मोहिनी एकादशी की व्रत कथा का सुननी या पढ़नी चाहिये।
  9. रात्रि के समय श्री हरि का स्मरण करते हुए, भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिये।
  10. द्वादशी के दिन एकादशी व्रत का पारण किया जाना चाहिए।सर्वप्रथम भगवान की पूजा कर किसी योग्य ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजनादि करवाकर दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिये।
  11. इसके पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिये।

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एकादशी में वर्जित हैं ये कार्य:

  • एकादशी के दिन तुलसी की पत्ती नहीं तोड़नी चाहिए बल्कि तुलसी के नीचे दीपक जलाना चाहिए।
  • इस दिन चावल का सेवन करना वर्जित है, जो लोग सेवन करते हैं वे अगले जन्म में रेंगने वाले जीव बनते हैं।
  • एकादशी के दिन, दिन में सोना वर्जित माना गया है।इसके अलावा अपने बुजुर्गो का अनादर करने से बचना चाहिए।
  • हो सके तो एकादशी के दिन मसूर, उड़द, चने, गोभी, गाजर, शलजम, पालक का साग इत्यादि के सेवन से बचें। 

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✍️ By- टीम एस्ट्रोयोगी

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