श्रावण शुक्ल एकादशी – पुत्रदा एकादशी व्रत कथा व पूजा विधि

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श्रावण शुक्ल एकादशी – पुत्रदा एकादशी व्रत कथा व पूजा विधि

हिंदू पंचांग की एकादशी तिथि चाहे वह कृष्ण पक्ष की या शुक्ल पक्ष की, हिंदू धर्म में उसका महत्व बहुत अधिक होता है। प्रत्येक माह की कृष्ण और शुक्ल एकादशियां अपने आप में खास होती हैं। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है और उपवास भी रखा जाता है। श्रावण और पौष मास की एकादशियों का महत्व एक समान माना जाता है। इन एकादशियों को संतान प्राप्ति के लिये श्रेष्ठ माना जाता है। श्रावण मास की एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। आइये जानते हैं श्रावण शुक्ल एकादशी की व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में।

 

2022 में श्रावण पुत्रदा एकादशी

साल 2022 में श्रावण पुत्रदा एकादशी 8 अगस्त दिन सोमवार को है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी – 8 अगस्त 2022

पारण का समय – प्रातः 05 बजकर 47 मिनट से 08 बजकर 27 मिनट (9 अगस्त 2022) तक

एकादशी तिथि आरंभ –  रात 23 बजकर 50 मिनट (07 अगस्त 2022) से

एकादशी तिथि समाप्त –  रात 21 बजकर 00 मिनट (08 अगस्त 2022) तक

 

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

सभी एकादशियों के महत्व को व्याख्यायित करने के लिये पौराणिक ग्रंथों में एकादशियों से जुड़ी कथा मिलती है। श्रावण पुत्रदा की व्रत कथा कुछ इस प्रकार है। बात उस समय की है जब युद्धिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से एकादशी व्रत के महत्व व इसकी कहानी के बारे में जान रहें थे। जिज्ञासावश उन्होंने श्रावण एकादशी के महत्व को बताने का आग्रह भगवान श्री कृष्ण किया। तब श्री कृष्ण अपने मुखारबिंद से श्रावण शुक्ल एकादशी की कथा कुछ यूं कहते हैं। हे राजन् श्रावण शुक्ल एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। अब मैं जो कथा तुम्हें सुनाने जा रहा हूं इसे सुनने के पश्चात तुम इसके महत्व को स्वयं ही समझ सकोगे। बात बहुत समय पहले की है कि है लगभग द्वापर के आरंभ की, माहिष्मति नाम की एक नगरी होती थी जिसमें बहुत ही नेमी-धर्मी राजा महीजित का राज्य था।

 

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राजा अपनी प्रजा को पुत्र की तरह प्रेम से रखता था, उनकी सुख-सुविधाओं का, न्याय का, ब्राह्मणों के सम्मान का, दान-पुण्य का उसे भली प्रकार से ज्ञान रहता। सब कुछ अच्छे से चल रहा था लेकिन विवाह के कई वर्ष बीत जाने के पश्चात भी उसकी अपनी कोई संतान नहीं थी यह बात राजा महीजित को अक्सर परेशान करती थी। जैसे-जैसे उम्र बीत रही थी राजा की चिंता और बड़ा रूप लेने लगी थी। फिर एक दिन उसने दरबार में ज्ञानवान ब्राह्मणों, पुजारी-पुरोहितों को बुलवाया, प्रजाजन भी उपस्थित थे। सभी के समक्ष राजा ने विनम्रता से कहा हे ज्ञानियों, प्रजाजनों, ब्राह्मण देवताओ मैंने जब से होश संभाला है तब से लेकर आज जबकि मुझे राज्य की बागडोर संभाले भी एक अरसा हो गया है। मैनें अधर्म का कोई कार्य नहीं किया है। धर्म कर्म दान पुण्य न्याय-अन्याय का पूरा विचार मुझे रहा है। यह भी सही है कि मेरी प्रजा मुझे पुत्र के समान ही प्रिय है लेकिन विधि ने मुझे संतानहीन कौनसे पाप की वजह से रखा है मैं समझ नहीं पाया हूं। प्रजा भी राजा के यहां संतान न होने से दुखी तो पहले से ही थी लेकिन राजा के इस प्रकार अपनी व्यथा प्रकट करने से तो वह और भी द्रवित हो गई। सभी की आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगी। राजा ने विद्वान ब्राह्मणों पुरोहितों से अनुरोध किया कि वे कोई उपाय बतायें कि किस प्रकार उन्हें संतान का सुख मिल सकता है।

 

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राजा इतने धर्मात्मा थे कि उनमें कोई पाप नज़र ही नहीं आ रहा था तो वे उन्हें क्या बतायें समझ नहीं आ रहा था। तभी किसी ने कहा कि इसके लिये हमें मुनि लोमेश की सहायता लेनी चाहिये। वहीं इस समय सर्वश्रेष्ठ मुनि हैं, सनातन धर्म की गूढ़ गुत्थियों को सुलझाने में वे ही सबके सहायक हैं। उनके तपोबल से ही एक कल्प बीतने पर उनका मात्र एक रोम मात्र गिरता है। फिर क्या था सभी जाकर मुनि लोमेश को प्रणाम किया। अब ऋषि तो अंतर्यामी होते हैं फिर भी पूछ लिया कि कहिये क्या कष्ट है मैं आपकी अवश्य सहायता करूंगा, मेरा उद्देश्य ही परोपकार है। सभी विद्वानों प्रजाजनों ने अपनी व्यथा प्रकट की कि उनके धर्मात्मा राजा पर यह कैसा संकट है और कैसे वे इससे ऊभर सकते हैं। मुनि ने क्षण भर के लिये अपने नेत्र बंद किये और अगला पिछला सबकुछ जान लिया। तब उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में राजा एक बहुत ही गरीब व्यापारी होता था, छल और पापकर्मों से उसने संपत्ति एकत्रित की, लेकिन ज्येष्ठ माह में द्वादशी को मध्याह्न के समय जबकि उस समय वह दो दिन से भूखा प्यासा था, उसे एक जलाशय दिखाई दिया, वहीं पर एक गाय भी पानी पी रही थी, तब उसे गौ को वहां से हटाकर स्वयं की प्यास बुझाई।

 

अंजाने ही एकादशी उपवास संपन्न करने से वह राजा बना और प्यासी गाय को जल पीने से रोकने के लिये उसे संतानहीन होना पड़ा। यह जानकर सब बहुत दुखी हुए और कहा हे मुनिवर हर पाप के प्रायश्चित का रास्ता भी आप जैसे पंहुचे मुनि को मालूम होता है हमें भी कोई उपाय बतायें जिससे हमारे राजा का संकट दूर हो। तब उन्होंने कहा कि एक रास्ता है यदि सभी प्रजाजन मिलकर श्रावण शुक्ल एकादशी जो कि पुत्रदा एकादशी भी होती है को उपवास रखकर रात्रि में जागरण करें अगले दिन पारण कर इसका पुण्य राजा को दें तो बात बन सकती है। मुनि का आशीर्वाद लेकर सभी वापस लौट आये। कुछ समय पश्चात ही श्रावण शुक्ल एकादशी का दिन आया सभी ने विधिनुसार उपवास रखा और मुनि के बताये अनुसार ही व्रत का पुण्य राजा को दे दिया। जल्द ही रानी उम्मीद से हो गई और उन्हें एक तेजस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

मान्यता है कि श्रावण शुक्ल एकादशी माहात्म्य को सुनने, जानने मात्र से ही समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। इहलोक में भौतिक सुख-सुविधाएं तो मिलती ही हैं परलोक भी सुधर जाता है।

 

श्रावण शुक्ल एकादशी व्रत विधि

  • एकादशी व्रत की तैयारी दशमी तिथि से ही की जाती है।
  • दशमी के दिन व्रती को सात्विक आहार लेना चाहिये।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से स्वच्छ होकर व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु के बाल गोपाल रूप की पूजा करनी चाहिये।
  • इस कथा का पाठ करना चाहिये, सुनना चाहिये। रात्रि में भजन कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिये।
  • तत्पश्चात द्वादशी के दिन के सूर्योदय के साथ पूजा संपन्न की जानी चाहिये।
  • इसके पश्चात व्रत का पारण किसी भूखे जरूरतमंद या फिर पात्र ब्राह्मण को भोजन करवाकर, दान-दक्षिणा से उन्हें संतुष्ट करके करना चाहिये।

 

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