हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार अधिकतर उत्तर भारत के राज्यों में विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड में उत्साह के साथ मनाया जाता है। करवा चौथ (Karwa ) पर सुहागिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर, स्नान करके सोलह श्रृंगार करते हुए व्रत का संकल्प लेती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखने के साथ ही भगवान शिव, माता पार्वती और चंद्रदेव की पूजा करती हैं।
आजकल कुछ कुंवारी लड़कियां, जिनकी शादी तय हो चुकी है या होने वाली है, इस व्रत को रखती हैं। इस साल करवा चौथ पर शुक्र अस्त होने का प्रभाव है। ऐसा माना जा रहा है कि पहली बार करवा चौथ रखने वाली महिलाओं को इस बार से शुरुआत नहीं करनी चाहिए। क्योंकि यह शुभ नहीं माना जा रहा है।
इस साल करवा चौथ पर काफी शुभ संयोग बन रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ सिद्धि योग बन रहा है। इसके साथ ही इस दिन कन्या राशि में शुक्र और बुध ग्रह की युति हो रही है, जिसके कारण लक्ष्मी नारायण योग भी बन रहा है। इसके अलावा बुध और सूर्य की युति होने से बुधादित्य योग भी बन रहा है। ऐसे में करवा चौथ रखने से सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन में खुशहाली आएगी।
साल 2023 में करवा चौथ पर पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार 1 नवंबर 2023 को करवा चौथ पर पूजा का सबसे अच्छा मुहूर्त शाम 05:36 से लेकर 06:54 मिनट तक रहेगा। यह मुहूर्त अमृतकाल है। इसके अलावा सुहागिन महिलाएं करवा चौथ की पूजा दिन के अभिजीत मुहूर्त काल में भी कर सकती हैं। मुहूर्त शास्त्र के अनुसार कोई भी शुभ कार्य या पूजा उस दिन के अभिजीत मुहू्र्त में की जानी चाहिए।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रोहिणी नक्षत्र में चंद्रमा की पूजा करना शुभ फलदायी माना गया है। वैदिक पंचाग के अनुसार करवाचौथ के दिन शाम में रोहिणी नक्षत्र 6 बजकर 41 मिनट पर आरंभ हो रहा है। इस कारण इस समय के बाद ही पूजा करना शुभ रहेगा। जिन लोगों की कुंडली में चंद्र दोष है या चंद्रमा नीच राशि में विराजमान हैं, वो लोग भी इस नक्षत्र में चंद्रमा की विशेष पूजा कर सकते हैं।
दिल्ली- सायं 08:07 बजे
चंडीगढ़- सायं 08:04 बजे
शिमला- सायं 08:01 बजे
लखनऊ- सायं 07:56 बजे
जयपुर- सायं 08:17 बजे
जम्मू- सायं 08:06 बजे
मुंबई- सायं 08:46 बजे
कोलकाता- सायं 07:35 बजे
चेन्नई- सायं 08:28 बजे
बेंगलुरु- सायं 08:39 बजे
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करवा चौथ के दिन सभी कार्यों से निवृत्त होकर स्नान आदि करके साथ वस्त्र धारण करें।
इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करके व्रत का संकल्प लें- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये'।
सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण कर लें। इसके बाद दिनभर निर्जला व्रत रखें। अब थोड़े से चावल भिगोकर पीस लें। इसी चावल से करवा को रंग लें। करवा में गेहूं, चावल और उसके ढक्कन में शक्कर या फिर बूरा भर दें। आप चाहे तो करवा में महावर से चित्र भी बना सकते हैं। इसके साथ ही आठ पूरियां बना लें। इसके साथ ही मीठे में हलवा या खीर बना लें।
अब पीली मिट्टी या फिर गोबर की मदद से मां पार्वती की प्रतिमा बना लें। इसके अलावा चाहें तो बाजार में मिलने वाली मूर्ति भी ला सकती हैं। अब मूर्ति को एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर रख दें। इसके बाद विधिवत पूजा करें। मां पार्वती को मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी और बिछुआ आदि चढ़ाएं। इसके साथ ही एक कलश में जल भरकर रख दें।
पति की लंबी आयु की कामना करते हुए इस मंत्र को बोले-''ऊॅ नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥''
इसके बाद करवा में 13 बिंदी रखें। घी का दीपक और धूप जला दें। इसके साथ ही हाथों में 13 दाने गेहूं या चावल के लेकर करवा चौथ की कथा सुन लें। अब एक लोटे में जल लें और 13 दाने भी अलग रख दें। इसके बाद दिनभर व्रत रखें।
शाम को चंद्रमा निकलने के बाद विधिवत पूजा करने के साथ जल से अर्घ्य दें। इसके बाद दीपक आदि जलाकर छलनी से चंद्रमा देखने के साथ पति की शक्ल भी देखें। इसके बाद जल ग्रहण कर लें।
करवा चौथ व्रत भगवान गणेश और करवा माता को समर्पित है. करवा माता की पूजा और उनकी कथा पढ़ें बिना ये व्रत अधूरा माना जाता है।
हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करने वाला त्योहार माना गया है। इस दिन व्रत में भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा की जाती है। रात को चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। चंद्रमा को सुख, शांति व आयु कारक माना गया है। मान्यता है कि इनकी पूजा करने से वैवाहिक जीवन सुखद होता है। इस दिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं।
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी व उनकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही खा सकती है। सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की हालत देखी नहीं गयी। इस कारण उसने दूर एक पेड़ पर दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख दिया। जो ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे चतुर्थी का चांद हो। उसे देख कर उसकी बहन करवा उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिल जाता है। वह बेहद दुखी हो जाती है।
उसकी भाभी सच्चाई बतातीं हैं कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जिवित करके रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर चौथ का दिन आता है, तो वह व्रत रखती है और शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' लेकिन हर कोई सुहागिन मना कर देती है। आखिर में एक सुहागिन उसकी बात मान लेती है। इस तरह से उसका व्रत पूरा होता है और उसके सुहाग को नये जीवन का आर्शीवाद मिलता है। इसी कथा को कुछ अलग तरह से सभी व्रत करने वाली महिलाएं पढ़ती और सुनती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में करवा देवी अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के निकट रहती थीं। एक दिन करवा के पति स्नान के लिए नदी में गए तो मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और अंदर की ओर खींचने लगा। रक्षा के लिए उसने अपनी पत्नी को पुकारा। पति को मृत्यु के मुंह में जाता देख करवा ने एक कच्चे धागे से मगरमच्छ को पेड़ से बांध दिया। पतिव्रता पत्नी करवा के जाल में मगरमच्छ ऐसा बंधा की हिलना भी मुश्किल हो गया। पति की हालात बहुत नाजुक थी, इसके बाद करवा देवी ने यमराज को पुकारा और पति की रक्षा कर जीवनदान और मगरमच्छ को मृत्यु देने का आग्रह किया। यमराज ने कहा अभी मगरमच्छ की आयु शेष है, लेकिन तुम्हारे पति के यमलोक जाने का समय आ चुका है, इस पर करवा क्रोधित हो गईं और ऐसा न करने पर यमराज को श्राप देने की चेतावनी दे दी। यमराज ने करवा देवी के सतीत्व से प्रभावित होकर उनके पति की आयु में वृद्धि कर दी और उसे जीवनदान दे दिया। वहीं, मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया। कहते हैं इस घटना के दिन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि थी। मान्यता है इस दिन जो सुहागिनें पत्नी धर्म निभाते हुए निर्जला व्रत कर सच्चे मन से करवा माता की पूजा करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्यवती का वरदान मिलता है. उसके बाद से ही करवा चौथ व्रत की परंपरा शुरू हो गई। मान्यता है कि करवा चौथ की पूजा में इस कथा को अवश्य पढ़ना चाहिए।