
जब कोई बच्चा पढ़ाई में पिछड़ने लगे, उसका मन किताबों में न लगे या वह बार-बार विषय बदलता रहे, तो माता-पिता सबसे पहले शिक्षा प्रणाली, टीचर्स या बच्चे की आदतों को जिम्मेदार मानते हैं। लेकिन भारतीय ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से देखें तो ऐसे मामलों में जन्मकुंडली का पंचम भाव (5वां भाव) मुख्य भूमिका निभाता है। अगर इस भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो या इसके स्वामी की स्थिति दुर्बल हो, तो बच्चा पढ़ाई में रुचि नहीं ले पाता और उसका करियर भी दांव पर लग जाता है।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में कुंडली का पंचम भाव शिक्षा का भाव माना गया है। यह भाव यह बताता है कि बच्चा कितनी शिक्षा प्राप्त करेगा, पढ़ाई में उसकी रुचि कितनी होगी, और वह कितनी ऊंची शिक्षा तक जाएगा। इस भाव के साथ यदि बुध, गुरु और चंद्रमा जैसे शुभ ग्रह अच्छी स्थिति में हों, तो बच्चा बुद्धिमान, समझदार और पढ़ाई में उत्कृष्ट होता है। परंतु यदि इसी भाव पर राहु, केतु या शनि का अशुभ प्रभाव हो या इसका स्वामी पाप ग्रहों के साथ स्थित हो, तो पढ़ाई में रुकावटें आती हैं।
मान लीजिए किसी बच्चे की कुंडली मिथुन लग्न की है और पंचम भाव का स्वामी शुक्र है। अगर यह शुक्र राहु के साथ स्थित हो या पंचम भाव पर राहु की दृष्टि पड़ रही हो, और साथ ही चंद्रमा व गुरु राहु, केतु या शनि से पीड़ित हों, तो ऐसी स्थिति में बच्चा पढ़ाई से विमुख हो सकता है। कई बार पढ़ाई अधूरी रह जाती है, तो कभी करियर की दिशा ही गड़बड़ा जाती है।
लेकिन, यदि यही शुक्र केंद्र या त्रिकोण में शुभ स्थिति में हो, तो ज्योतिषीय उपायों से इस बाधा को दूर किया जा सकता है और बच्चा पढ़ाई में आगे बढ़ सकता है।
यदि किसी बालक की कुंडली कर्क लग्न की है, तो पंचम भाव का स्वामी मंगल होता है। यदि मंगल अस्त हो जाए, शनि से पीड़ित हो या पंचम भाव में राहु की उपस्थिति हो और चंद्रमा भी राहु, केतु या शनि से प्रभावित हो, तो बच्चा पढ़ाई में कमजोर साबित हो सकता है।
परंतु यदि पंचम भाव में नवम भाव (उच्च शिक्षा का भाव) का स्वामी गुरु स्थित हो या पंचम भाव का स्वामी नवम भाव में बैठे, तो यह शुभ योग बनाता है और अशुभ ग्रहों के असर को कम कर सकता है। ऐसी स्थिति में भी यदि उपाय सही समय पर किए जाएं, तो बच्चा अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
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पंचम भाव का स्वामी बलवान हो और शुभ ग्रहों के साथ हो – यदि पंचम भाव का स्वामी गुरु, शुक्र या बुध जैसे ग्रहों के साथ उच्च स्थिति में हो, तो बच्चा उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
पंचम भाव और नवम भाव में संबंध हो – पंचम और नवम भाव के स्वामियों के बीच संबंध या दोनों के बीच शुभ दृष्टि हो, तो बच्चा पढ़ाई में आगे बढ़ता है।
पंचम भाव का 10वें भाव से संबंध – पंचम भाव का संबंध 10वें भाव (करियर) से हो तो पढ़ाई सीधा करियर में सफलता दिलाती है।
शुभ ग्रहों का प्रभाव पंचम भाव पर हो – बुध, गुरु, चंद्रमा जैसे ग्रह पंचम भाव में हों या उस पर दृष्टि डालें तो शिक्षा में लाभ होता है।
राहु, केतु, शनि का पंचम भाव पर असर – पढ़ाई में रुचि खत्म होना, विषय बदलना, बार-बार फेल होना जैसे परिणाम होते हैं।
पंचम भाव का स्वामी 6, 8 या 12वें भाव में हो – ऐसे बच्चों को शिक्षा में बार-बार ब्रेक लगता है। वे लक्ष्य तय नहीं कर पाते।
बुद्ध और गुरु की स्थिति कमजोर हो – ये ग्रह ज्ञान और विवेक के प्रतीक हैं। यदि ये पीड़ित हों, तो बच्चा निर्णय नहीं ले पाता।
चंद्रमा की पीड़ित स्थिति – चंद्रमा मन का कारक है। इसकी दुर्बलता पढ़ाई से मन हटाने का कारण बनती है।
अगर बच्चे की कुंडली में शिक्षा में रुकावट के योग हों, तो घबराने की जरूरत नहीं है। कुछ विशेष उपायों से इन बाधाओं को कम किया जा सकता है और पढ़ाई में सफलता प्राप्त की जा सकती है।
गुरु ग्रह शिक्षा का कारक होता है। इसके मजबूत होने से बच्चा ज्ञानी और बुद्धिमान बनता है। गुरुवार को व्रत रखना, पीले वस्त्र पहनना और विष्णु सहस्रनाम का पाठ लाभकारी रहता है।
बुध ग्रह पढ़ाई और बुद्धि का कारक होता है। गणेश जी बुद्धि के देवता हैं। बुधवार को उन्हें दूर्वा और मोदक अर्पित करने से बुद्धि में वृद्धि होती है।
यदि चंद्रमा कमजोर है, तो सोमवार को व्रत रखें, जल में दूध मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करें। इससे मन स्थिर होता है और पढ़ाई में मन लगता है।
राहु-केतु शिक्षा में भ्रम और विघ्न लाते हैं। इनसे मुक्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप प्रतिदिन करें।
गुरु के लिए पुखराज, बुध के लिए पन्ना, चंद्र के लिए मोती जैसे रत्न अगर उपयुक्त हों, तो इन्हें धारण करने से ग्रहों का सकारात्मक प्रभाव बढ़ता है।
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बच्चे पर दबाव डालने की बजाय उसकी कुंडली की जांच कराएं।
यदि उसमें अशुभ योग हों, तो ज्योतिषीय उपाय करें।
हर शनिवार को शनि देव को तेल चढ़ाएं और गरीबों को दान दें।
बच्चों को रोज सुबह सूर्य को जल चढ़ाना सिखाएं, यह मन, आत्मविश्वास और निर्णय शक्ति को बढ़ाता है।
ज्योतिष के अनुसार बच्चे की शिक्षा का स्तर और उसका करियर पूरी तरह उसकी कुंडली में मौजूद ग्रहों और भावों पर निर्भर करता है। पंचम भाव की भूमिका यहां सबसे अहम होती है। यदि इस भाव और इससे जुड़े ग्रह शुभ हों, तो बच्चा शिक्षा के क्षेत्र में ऊंचाइयों को छू सकता है। लेकिन अगर अशुभ योग हों, तो समय रहते उपाय करने से नुकसान को टाला जा सकता है। इसलिए जब भी किसी बच्चे के अध्ययन में बाधा आए, तो उसकी कुंडली की जांच अवश्य करानी चाहिए और उचित उपायों को अपनाना चाहिए।