हर धर्म में त्योहार, उत्सव या फिर आयोजन खुशियां लेकर आते हैं। हम उन्हें मनाते भी खुशियों के लिए हैं। साथ ही हर धर्म में मनाए जाने वाले त्योहार ईश्वर से जुड़े रहने का संदेश जरूर देते हैं। ऐसा ही एक उत्सव है रोहिणी व्रत का, जो जैन समुदाय में प्रमुखता से मनाया जाता है। रोहिणी व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं के लिए होता है और इसे महिलाएं वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाए रखने और पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। इस दिन महिलाएं एकदम करवाचौथ व्रत की तरह सजती और संवरती हैं। हालांकि सिर्फ महिलाएं ही इस व्रत को नहीं रखती हैं, बल्कि पुरुष भी इस व्रत को रख सकते हैं। रोहिणी जैन और हिंदू कैलेंडर में 27 नक्षत्रों में से एक नक्षत्र है, जिस दिन यह नक्षत्र पड़ता है उस दिन अत्ति शुभ भी माना जाता है कहा जाता है की यदि कोई भी व्यक्ति इस दिन कुछ नया कार्य शुरू करे तो काफी शुभ माना जाता है।
रोहिणी व्रत का महत्व
जैन समुदाय में इस रोहिणी का काफी महत्व है। हालांकि अब इस व्रत को बाकि धर्मों में भी मनाया जाता है। इस दिन को किसी त्योहार से कम नहीं मान जाता है। ऐसे में इस व्रत को काफी विशेष तरीके से और विधि विधान के साथ पूजा करके मनाया जाता है। इस व्रत का अनुष्ठान तब शुरू होता है जब रोहिणी नक्षत्र सूर्योदय के बाद आकाश में उगता है और यह बहुत ही अद्भुत नजारा लगता है। यह आपके प्रकृति के करीब भी ले जाता है।
कहते हैं कि इस दिन अनुष्ठान करने से व्यक्ति को जीवन में दुख, गरीबी और अन्य बाधाओं से छुटकारा मिल जाता है और इसीलिये इस व्रत को पूरे मन और विश्वास के साथ रखना चाहिये। रोहिणी नक्षत्र का व्रत मार्गशीर्ष नक्षत्र के उदय के साथ समाप्त होता है, जो रोहिणी नक्षत्र के अंत का संकेत है। कुल मिलाकर, साल में कुल बारह रोहिणी व्रत आते हैं।
रोहिणी व्रत को रखने की प्रथा न केवल उपवास का पालन करने वाले व्यक्ति को, बल्कि परिवार के सदस्यों के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इस दिन उपवास समृद्धि, खुशी और परिवार में एकता बनाए रखने के लिए रखते है। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सलामती के लिए व्रत भी रखती हैं। जैन घरों में कई महिलाएं अपने घर में राज करने के लिए शांति और शांति के लिए उपवास रखती हैं।
पंचांग के अनुसार इस वर्ष रोहिणी व्रत 13 पड़ेंगे। 21 जनवरी को पहला तथा 14 दिसंबर को वर्ष का आखिरी व्रत पड़ेगा। इस वर्ष जुलाई में दो व्रत होंगे पहला 3 जुलाई और दूसरा 31 जुलाई को है।
मई रोहिणी व्रत का शुभ मुहूर्त: 10 मई 2024, शुक्रवार
रोहिणी नक्षत्र : 09 मई सुबह 11:55 से 10 मई, सुबह 10:47 तक
राहुकाल: सुबह 10 बजकर 20 मिनट से दोपहर 12 बजकर 00 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त : सुबह 11 बजकर 34 मिनट से दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक
अगला रोहिणी व्रत:6 जून 2024, गुरुवार
2024 में सभी रोहिणी व्रत की तारीखें और रोहिणी नक्षत्र का समय
जनवरी रोहिणी व्रत: 21 जनवरी 2024, रविवार
फ़रवरी रोहिणी व्रत: 18 फ़रवरी 2024, रविवार
मार्च रोहिणी व्रत: 16 मार्च 2024, शनिवार
अप्रैल रोहिणी व्रत: 12 अप्रैल 2024, शुक्रवार
मई रोहिणी व्रत: 10 मई 2024, शुक्रवार
जून रोहिणी व्रत: 6 जून 2024, गुरुवार
जुलाई रोहिणी व्रत: 3 जुलाई 2024, बुधवार और 31 जुलाई 2024, बुधवार
अगस्त रोहिणी व्रत: 27 अगस्त 2024, मंगलवार
सितम्बर रोहिणी व्रत: 23 सितम्बर 2024, सोमवार
अक्टूबर रोहिणी व्रत: 21 अक्टूबर 2024, सोमवार
नवंबर रोहिणी व्रत: 17 नवंबर 2024, रविवार
दिसंबर रोहिणी व्रत: 14 दिसंबर 2024, शनिवार
रोहिणी व्रत को करने की विधि
इस व्रत को रखने वाली महिलाएं या फिर पुरुष एक सही विधि का पालन करके ही इसके लाभ अर्जित कर सकते हैं।
महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करके पवित्र होकर पूजा करें।
इस व्रत में भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है।
पूजा के लिए वासुपूज्य भगवान की पांचरत्न, ताम्र या स्वर्ण प्रतिमा की स्थापना की जाती है। उनकी आराधना करके दो वस्त्रों, फूल, फल और नैवेध्य का भोग लगाया जाता है।
इस दिन गरीबों को दान देने का भी महत्व होता है।
ये व्रत अगले मार्गशीर्ष नक्षत्र के उदय होने के बाद समाप्त होता है।
इस व्रत को रखने के पीछे एक कथा भी है। वो कथा कुछ इस तरह है कि चंपापुरी नामक नगर में एक राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्मीपति, 7 पुत्रों और एक पुत्री रोहिणी के साथ रहते थे। एक बार राजा ने एक ज्योतिषी से पूछा कि उनकी पुत्री का विवाह किसके साथ होगा? इसके जवाब में ज्योतिषी ने कहा कि उनकी पुत्री का विवाह हस्तिानपुर के राजकुमार अशोक के साथ होगा। ये सुनकर राजा ने रोहिणी के स्वयंवर का आयोजन किया, जिसमें अशोक ही रोहिणी के पति के रूप में सामने आए।
एक समय हस्तिनापुर के वन में श्रीचारण नामक मुनिराज से मिलने अशोक अपने परिवार संग गए। उन्होंने मुनिराज से कहा कि उनकी पत्नी काफी शांत रहती है इसका कारण क्या है? इस पर मुनिराज ने बताया कि पौराणिक काल में हस्तिनापुर नगर में वस्तुपाल नाम का राजा रहता था और उसका धनमित्र नाम का दोस्त था। धनमित्र के घर एक कन्या का जन्म हुआ, जिसके शरीर से हमेशा दुर्गंध आती थी। इसलिए उसका नाम दुर्गंधा रख दिया गया। धनमित्र अपनी पुत्री को लेकर हमेशा चिंतित रहता था। एक दिन उसके नगर में अमृतसेन मुनिराज आए। धनमित्र अपनी पुत्री को लेकर मुनिराज के पास गया और पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा।
मुनिराज ने बताया कि राजा भूपाल गिरनार पर्वत के निकट एक नगर में राज्य करते थे। उनकी पत्नी सिंधुमती थी जिसको अपनी सुंदरता पर काफी घंमड था। एक बार राजा-रानी वन भ्रमण करने के लिए निकले, तभी वहां राजा ने मुनिराज को देखा और पत्नी के पास जाकर मुनिराज के भोजन की व्यवस्था करने को कहा। इस पर सिंधुमती ने पति की आज्ञा को मानते हुए हामीभर दी लेकिन मन में काफी क्रोधित हुई और क्रोधवश उसने मुनिराज को कड़वी तुम्बिका भोजन में परोस दी, जिसे खाकर मुनिराज की मृत्यु हो गई। जब राजा को यह बात पता चली तो उन्होने रानी को महल से निष्कासित कर दिया। इस पाप की वजह से रानी के कोढ़ उत्पन्न हो गया और रानी काफी वेदना का सामना करते हुए मृत्युलोक को प्राप्त हो गई। रानी सिंधुमती मरणोपरान्त नर्क में पहुंची और उसने अत्यंत दुख भोगा और पशु योनि में जन्मी और फिर तेरे घर में दुर्गंधा कन्या बनकर पैदा हुई।
मुनिराज की पूरी बात सुनकर धनमित्र ने पूछा कि इस पातक को दूर करने के लिए कोई उपाय बताएं। तब मुनिराज ने बताया कि सम्यग्दर्शन सहित रोहिणी व्रत का पालन करों यानि की प्रत्येक माह की रोहिणी नक्षत्र वाले दिन रोहिणी देवी का व्रत रखो और आहार त्यागकर, धर्म, पूजा औऱ दान में समय बिताओ, लेकिन इस व्रत को 5 वर्ष और 5 मास तक ही करें।
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