शनि देव को न्याय का देवता माना गया है जो लोगों को उनके अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार फल देते है। साल 2022 में कब है शनि जयंती? शनि जयंती पर करना चाहते है शनि को प्रसन्न, तो करें ये उपाय? आइये जानते है।
Shani Jayanti 2022: शनि जयंती हिन्दुओं का प्रमुख एवं प्रसिद्ध त्योहार है जो कर्मफल दाता और नवग्रहों में से एक शनि देव को समर्पित होता है। शनि जयंती का त्यौहार भगवान शनि के जन्मदिन के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है क्योंकि इस दिन शनि देव का जन्म हुआ था। इस विशेष अवसर पर विभिन्न स्थानों पर स्त्रियों द्वारा वट सावित्री व्रत किया जाता हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, शनि देव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर हुआ था। यही वजह है कि शनि जयंती को प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है। यह दान-पुण्य, श्राद्ध-तर्पण पिंडदान आदि की अमावस्या है। ग्रेगोरियन कैलेंडर 2022 के अनुसार, शनि जयंती सामान्य रूप से मई या जून के महीने में आती है।
शनि जयंती 2022 की तिथि एवं पूजा मुहूर्त:
शनि जयंती की तिथि: 30 मई 2022, सोमवार
अमावस्या तिथि का आरंभ: 29 मई को दोपहर 02:54 बजे तक
अमावस्या तिथि की समाप्ति- मई 30 को दोपहर 04:59 बजे
ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को विशेष स्थान प्राप्त है। यह नवग्रहों में से एक है जिसे सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना जाता है। वैदिक ज्योतिष में शनि को क्रूर और पापी ग्रह कहा जाता है।
शनि देव भगवान सूर्य और छाया देवी के पुत्र हैं और इन्हें तीनों लोकों में न्यायाधीश का पद प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि शनि देव लोगों को उनके कर्मानुसार फल प्रदान करते हैं।
शनि देव को शुभ और अशुभ परिणाम प्रदान करने के लिए जाना जाता है। वे मित्र भी हैं और शत्रु भी। अगर आपके कर्म शुभ है तो ये मोक्ष प्रदाता हैं, लेकिन अशुभ कर्म है तो ये मारक, दुःख और कष्टों के कारण बनते है।
शनि देव किसी से प्रसन्न हो जाए तो उसे रंक से राजा और यदि किसी से कुपित हो जाए तो राजा से रंक बनाने की क्षमता रखते है।
शनि देव को पश्चिम का भगवान माना जाता है और इन्हें कई नामों जैसे सौरी, मंदा, नील, यम, कपिलक्ष और छटा सुनु आदि से जाना जाता हैं।
क्यों है शनि जयंती विशेष?
हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए शनि जयंती का पर्व बेहद खास होता हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शनि जनित दोषों के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजा-अर्चना करना अत्यंत फलदायी होता है।
यदि आप शनि की साढ़े सती और ढैया से पीड़ित है तो शनि जयंती पर शनि देव का पूजन अवश्य करना चाहिए। शनि जयंती पर कुपित शनि को शांत करने के लिए दान-पुण्य करना चाहिए।
शनि जयंती के शुभ अवसर पर भक्त विशेष पूजा, यज्ञ या हवन आदि संपन्न करते हैं जो अधिकतर शनि मंदिर या नवग्रह मंदिर में आयोजित किये जाते हैं।
इस दिन धार्मिक अनुष्ठान का आरंभ करने से पूर्व जातक पूजा स्थल और देवी-देवताओं की मूर्ति साफ करते हैं। ये कार्य पानी, तेल, पंचामृत और गंगाजल से किया जाता है।
पूजन में भगवान की प्रतिमा का गले के एक आभूषण से श्रृंगार किया जाता है जिसमें नौ कीमती रत्न शामिल होते हैं। इसे नवरत्न हार भी कहा जाता है, इसके उपरांत पूजा शुरू की जाती है।
भगवान शनि का आशीर्वाद एवं सानिध्य प्राप्त करने के लिए जातक शनि पथ या शनि स्तोत्र का पाठ करें।
शनि जयंती पर प्रातःकाल स्नानादि कार्य करके भगवान शनि की आराधना के बाद व्रत का संकल्प लें। ऐसा करने से आपको शनि देवता की कृपा प्राप्त होगी।
भगवान शनि को शनि जयंती के अवसर पर प्रसन्न करने के लिए शनि देव से जुड़ी चीज़ें सरसों का तेल, काला तिल, काली उड़द, काला वस्त्र, लोहा, काला कंबल, चमड़े के जूते, आदि का दान जरूरतमंदों को करना चाहिए।
शनि जयंती के दिन भगवान शिव या भगवान हनुमान जी की भी अवश्य पूजा करें। इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी शनि देवता के प्रकोप से छुटकारा मिलता है।
शनि जयंती पर रामायण के सुंदरकांड का पाठ करें। ऐसा करने से कुंडली में शनि देव संबंधित समस्याओं से राहत प्राप्त होती है।
शनि जयंती के दिन नदी में एक अखंड नारियल प्रवाहित करें। इससे आपको जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होगी।
एक बर्तन में तिल का तेल लें और उसमें अपना चेहरा देखें। इसके बाद उस तेल का कटोरी सहित शनि मंदिर में दान करना चाहिए।