पंडितजी का कहना है कि एकादशी व्रत का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। पौराणिक ग्रंथों में इसके महत्व के बारे में काफी कुछ लिखा मिलता है। प्रत्येक मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशियों को मिलाकर एक वर्ष में 24 एकादशी व्रत आते हैं। हर एकादशी का अलग महत्व है। कई बार व्यक्ति के जीवन में ऐसा होता है कि वह लगातार पापकर्म किये जाता है और जब उसकी मति फिरती है तो उसे लगता है कि वह पाप के शिखर कर पंहुच चुका है यहां से तो उसे पश्चाताप करने का भी अधिकार नहीं है। लेकिन अगर उसके अंदर पश्चाताप की सच्ची भावना है तो उसके लिये अश्विन मास की शुक्ल एकादशी बहुत ही पुण्य फलदायी हो सकती है। आइये जानते हैं पापकुंशा एकादशी की व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार पापकुंशा एकादशी दशहरे के अगले दिन होती है। इस वर्ष यह तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 06 अक्तूबर 2022 को है।
पापकुंशा एकादशी तिथि – 06 अक्तूबर 2022
पारण का समय – सुबह 06:17 बजे से सुबह 07:26 बजे तक (07 अक्तूबर 2022)
एकादशी तिथि आरंभ – दोपहर 12:00 बजे (05 अक्तूबर 2022) से
एकादशी तिथि समाप्त – रात 21:40 बजे (06अक्तूबर 2022) तक
बहुत समय पहले की बात है कि विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक शिकारी रहा करता था। जैसा उसका नाम वैसे ही उसके काम। उसने अपनी तमाम उम्र पापकर्म करते हुए गुजार दी। जब उसका अतं समय निकट आया और यम के दूतों ने उसे सूचित किया कि वे फलां दिन उसे लेकर जायेंगें। अब क्रोधन की हालत खस्ता। उसे अहसास हुआ कि उसने कितने बुरे कर्म किये हैं यमलोक में उसके साथ क्या बीतेगी। वह परेशान होकर पश्चाताप करने के लिये जंगल की ओर निकल पड़ा।
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वन में भटकते भटकते वह अंगिरा ऋषि के आश्रम पंहुच गया। ऋषि को प्रणाम किया उन्होंने आने का कारण पूछा। तब क्रोधन पश्चाताप में विलाप करते हुए अपनी पीड़ा बताने लगा। महर्षि बोले हालांकि तुमने बहुत देर करदी है लेकिन तुम सच्चे मन से पश्चाताप कर रहे हो इसलिये तुम्हें यह उपाय बता रहा हूं। अश्विन माह की शुक्ल एकादशी का विधि-विधान से उपवास रखो और भगवान विष्णु की पूजा करो। तब क्रोधन ने महर्षि के बताये अनुसार एकादशी का पूजन किया व उपवास रखा। इस प्रकार वह समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त हुआ।
एकादशी व्रत का पालन दशमी तिथि से ही आरंभ हो जाता है। दशमी तिथि को संभव हो तो एक समय ही भोजन करना चाहिये। भोजन भी सात्विक ग्रहण करना चाहिये। गेंहु, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल, मसूर दाल आदि का भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिये। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। एकादशी तिथि को प्रात:काल उठकर स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिये। सामर्थ्य अनुसार एक समय फलाहार या निराहार उपवास का संकल्प कर सकते हैं। संकल्प लेकर घट स्थापना करें। कलश पर भगवान विष्णु की प्रतिमा भी रखें। रात्रि में भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए जागरण करना चाहिये। द्वादशी तिथि को योग्य ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देने के पश्चात ही व्रत का पारण करना चाहिये।
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