Magh Gupt Navratri 2024: हिन्दू धर्म में नवरात्रि पर्व का बहुत महत्व होता है। साल में चार बार नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इसमें दो बार चैत्र और शारदीय नवरात्रि के साथ-साथ दो गुप्त नवरात्रि भी शामिल होती है। पहली गुप्त नवरात्रि माघ मॉस में और दूसरी आषाढ़ में मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, माघ नवरात्रि की शुरूआत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है। इनमें मां दुर्गा की दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। तंत्र विद्या में विश्वास रखने वाले लोगों के लिये यह नवरात्र बहुत खास माने जाते हैं। इस दौरान मां की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिये इन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, साल 2024 में माघ गुप्त नवरात्रि 10 फरवरी 2024, से शुरू हो रहे हैं। माघ गुप्त नवरात्र पूजन का आरंभ घट स्थापना के साथ शुरू होगा।
माघ गुप्त नवरात्रि घटस्थापना तिथि: 10 फरवरी, 2024
घटस्थापना मुहूर्त - सुबह 08:45 से लेकर सुबह 10:00 बजे तक (अवधि - 01 घण्टे 25 मिनट)
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - दोपहर 12:13 से दोपहर 12:58 तक (अवधि - 44 मिनट)
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - 10 फरवरी, 2024 को प्रातः 04:38 से
प्रतिपदा तिथि समाप्त - 11 फरवरी, 2024 को प्रातः 12:47 तक
माघ गुप्त नवरात्रि 2024 तिथि अनुसार
Sr. No. | तिथि | गुप्त नवरात्रि |
1 | 10 फरवरी 2024, शनिवार | प्रतिपदा घटस्थापना, शैलपुत्री पूजा |
2 | 11 फरवरी 2024, रविवार | द्वितीया ब्रह्मचारिणी पूजा |
3 | 12 फरवरी 2024, सोमवार | तृतीया चन्द्रघण्टा पूजा |
4 | 13 फरवरी 2024,मंगलवार | चतुर्थी कूष्माण्डा पूजा |
5 | 14 फरवरी 2024, बुधवार | पञ्चमी स्कन्दमाता पूजा |
6 | 15 फरवरी 2024, गुरूवार | षष्ठी कात्यायनी पूजा |
7 | 16 फरवरी 2024, शुक्रवार | सप्तमी कालरात्रि पूजा |
8 | 17 फरवरी 2024, शनिवार | महागौरी पूजा |
9 | 18 फरवरी 2024, रविवार | नवमी सिद्धिदात्री पूजा |
गुप्त नवरात्रि कब-कब आती है
नवरात्रि का त्योहार साल में चार बार आता है। चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रि के बारे में तो सभी जानते ही हैं जिन्हें वासंती और शारदीय नवरात्रि भी कहा जाता है लेकिन गुप्त नवरात्र आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में मनाये जाते हैं। गुप्त नवरात्रि की जानकारी अधिकतर उन लोगों को होती है जो तंत्र साधना करते हैं।
गुप्त नवरात्र के महत्व को बताने वाली एक कथा भी पौराणिक ग्रंथों में मिलती है कथा के अनुसार एक समय की बात है कि ऋषि श्रंगी एक बार अपने भक्तों को प्रवचन दे रहे थे, कि भीड़ में से एक स्त्री हाथ जोड़कर ऋषि से बोली कि गुरुवर मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे हैं जिसके कारण मैं किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य व्रत उपवास अनुष्ठान आदि नहीं कर पाती। मैं मां दुर्गा की शरण लेना चाहती हूं लेकिन मेरे पति के पापाचारों से मां की कृपा नहीं हो पा रही मेरा मार्गदर्शन करें। तब ऋषि बोले वासंतिक और शारदीय नवरात्र में तो हर कोई पूजा करता है सभी इससे परिचित हैं। लेकिन इनके अलावा वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र भी आते हैं इनमें 9 देवियों की बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। यदि तुम विधिवत ऐसा कर सको तो मां दुर्गा की कृपा से तुम्हारा जीवन खुशियों से परिपूर्ण होगा। ऋषि के प्रवचनों को सुनकर स्त्री ने गुप्त नवरात्र में ऋषि के बताये अनुसार मां दुर्गा की कठोर साधना की स्त्री की श्रद्धा व भक्ति से मां प्रसन्न हुई और कुमार्ग पर चलने वाला उसका पति सुमार्ग की ओर अग्रसर हुआ उसका घर खुशियों से संपन्न हुआ।
गुप्त नवरात्रि पर लोग घटस्थापना के साथ त्योहार की शुरुआत करते हैं।
घटस्थापना में माता को लाल फूल और चुनरी भी भेंट की जाती है।
विधिपूर्वक घटस्थापना के बाद लोग सुबह शाम मां दुर्गा की उपासना करते हैं।
सुबह शाम की पूजा में दुर्गा चालीस और दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।
पूजा में लौंग और बताशे का भोग लगाया जाता है।
वहीं तंत्र साधना वाले साधक इन दिनों में माता के नवरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की साधना करते हैं। ये दस महाविद्याएं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं।
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गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की पूजा का महत्व हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। ये महाविद्याएं देवी दुर्गा के दस रूपों को प्रतिष्ठित करती हैं और भक्तों को विभिन्न आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इन महाविद्याओं की पूजा और साधना से आध्यात्मिक उन्नति, सामरिक विजय, धन, सुख, संतान, समृद्धि, शक्ति और मुक्ति जैसे विभिन्न आरोग्य और अभिवृद्धि प्राप्त होती हैं।
गुप्त नवरात्रि के पहले दिन, पहली महाविद्या के रूप में माता काली की साधना की जाती है। इनको 10 महाविद्याओं में सबसे प्रथम माना गया है। माता काली की साधना से साधक को विरोधियों और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'ॐ हृीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा' है।
नवरात्रि के दूसरे दिन, दूसरी महाविद्या के रूप में माता तारा की साधना की जाती है। मान्यता है कि सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने महाविद्या तारा की उपासना की थी। इन्हें तांत्रिकों की देवी माना गया है। तारा की आराधना से आर्थिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति होती है। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'ऊँ हृीं स्त्रीं हुम फट्' है।
तीसरे दिन, तीसरी महाविद्या के रूप में माता त्रिपुरा सुंदरी की साधना होती है। ये महाविद्या ललिता या राज राजेश्वरी के रूप में भी जानी जाती हैं। त्रिपुरा सुंदरी की साधना से आप आनंदमय और सुखी जीवन प्राप्त कर सकते हैं। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'ऐं हृीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः' है।
गुप्त नवरात्रि के चौथे दिन, चौथी महाविद्या के रूप में माता भुवनेश्वरी की साधना होती है। माता भुवनेश्वरी की साधना से संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'हृीं भुवनेश्वरीयै हृीं नमः' है।
पांचवे दिन, पांचवी महाविद्या के रूप में माता छिन्नमस्ता की साधना होती है। यदि आप शांत मन से इस महाविद्या की साधना करते हैं, तो माता शांत स्वरूप में प्रकट होती हैं, जबकि उग्र रूप से की गई साधना से आप माता के उग्र रूप को देख सकते हैं। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'श्रीं हृीं ऐं वज्र वैरोचानियै हृीं फट स्वाहा' है।
गुप्त नवरात्रि में छठे दिन, छठी महाविद्या के रूप में माता त्रिपुरा भैरवी हैं। इनकी साधना से जीवन के सभी बंधनों से मुक्ति मिलती है। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहाः' है।
गुप्त नवरात्रि के सातवें दिन, सातवीं महाविद्या के रूप में माता धूमावती की साधना होती है। इनकी साधना से सभी संकट दूर हो जाते हैं। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहाः' है। साधना करने वाला इस महाविद्या के जाप के लिए महाप्रतापी और सिद्ध पुरुष कहलाता है।
गुप्त नवरात्रि में आठवें दिन, आठवीं महाविद्या के रूप में माता बगलामुखी हैं। इनकी साधना से भय से मुक्ति मिलती है और वाक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'ऊँ हृीं बगुलामुखी देव्यै हृीं ओम नमः' है।
गुप्त नवरात्रि में नौवें दिन, मातंगी नौवीं महाविद्या हैं। इनकी साधना से गृहस्थ जीवन में खुशहाली आती है। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा' है।
गुप्त नवरात्रि में दसवें दिन, माता कमला को दसवीं महाविद्या कहा गया है। इनकी साधना से धन, नारी और पुत्र की प्राप्ति होती है। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'ऊँ ऐं ह्लीं क्लीं कमले जगत्प्रसूत्यै नमः' है।
गुप्त नवरात्रि के अंतिम दिन, ग्यारहवीं महाविद्या के रूप में माता मातंगी की साधना होती है। इनकी साधना से सभी आरोग्य संबंधी समस्याओं का समाधान होता है। इस महाविद्या के मंत्र का जाप, 'ऐं ह्लीं क्लीं सौः मातंगी महालक्ष्म्यै नमः' है।
ये सभी महाविद्याएं गुप्त नवरात्रि में साधकों के लिए प्रमुख हैं, और इनकी साधना से विभिन्न आराध्याओं की कृपा प्राप्त होती है। साधना करने से पहले, ध्यान और श्रद्धा के साथ माता की कृपा की प्रार्थना करें और उनके मंत्रों का जाप करें। इन महाविद्याओं की साधना आपके जीवन में आनंद, समृद्धि, और सुख का संचार कर सकती है।
एस्ट्रोयोगी की सभी साधकों से अपील है कि तंत्र साधना किसी प्रशिक्षित व सधे हुए साधक के मार्गदर्शन अथवा अपने गुरु के निर्देशन में ही करें। यदि साधना सही विधि से न की जाये तो इसके प्रतिकूल प्रभाव भी साधक पर पड़ सकते हैं।
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