हिंदू धर्म में भक्ति करने के कई माध्यम हैं। कोई यहां साकार ईश्वर को मानता है तो कोई निराकार को जो अपने ईष्ट की साकार रूप या कहें मूर्ति की उपासना करते हैं वे पूजा के लिये कुछ विशेष सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं। पूजा ही नहीं बल्कि मांगलिक कार्यक्रमों भी इस सामग्री का इस्तेमाल होता है लेकिन उसका उद्देश्य देवताओं का आशीर्वाद पाना ही होता है। पूजा की इस सामग्री में मुख्य रूप से मौली, नारियल, कपूर, तिलक लगाना आदि आते हैं। क्या आप जानते हैं कि सामग्री में इनका इस्तेमाल क्यों होता है। आखिर क्यों माथे पर तिलक लगाया जाता है या फिर मौली का धागा क्यों बांधा जाता है। क्यों धूप-कपूर आदि जलाये जाते हैं या फिर नारियल फोड़ने के पिछे क्या कारण हैं। तो आइये जानते हैं इन्हीं कर्म-कांडों के बारे में।
क्यों लगाते हैं मस्तक पर तिलक?
मस्तक पर तिलक लगाने पिछे एक अहम कारण यह माना जाता है कि मस्तक के ठीक बीच का स्थान जहां पर तिलक लगाया जाता है आज्ञाचक्र का स्थान होता है। अतीन्द्रिय ज्ञान और चमत्कारिक क्षमताओं का नियंत्रण भी यहीं से होता है। इसी स्थान को तीसरी आंख का स्थान भी कहा जाता है। ध्यान साधना के लिये भी इसी स्थान पर फोकस करना होता है ताकि यह स्थान सक्रिय हो जाये क्योंकि आमतौर पर यह निष्क्रिय रहता है। इसी कारण इस स्थान पर तिलक लगाने से इस स्थान को सक्रिय करने का प्रयास किया जाता है। स्त्रियां विशेषकर सुहागिन स्त्रियां तिलक के स्थान पर बिंदी लगाती हैं।
क्यों बांधते हैं मौली?
शास्त्रों की मानें तो त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश सहित तीनों देवियों विष्णुप्रिया मां लक्ष्मी तो शिव की प्यारी पार्वती सहित माता सरस्वती की कृपा पाने के लिये मौली बांधी जाती है। ब्रह्मा कीर्ति दिलाते हैं तो विष्णु रक्षक बनते हैं इसी प्रकार शिव दुर्गुणों का विनाश करते हैं। मां लक्ष्मी समृद्धि देती हैं मां दुर्गा (पार्वती) शक्ति देती हैं, माता सरस्वती बुद्धि यानि हमें ज्ञान का प्रकाश प्रदान करती हैं। यदि मौली बांधने की परंपरा की बात की जाये तो यह परपंरा उस समय से आरंभ हुई मानी जाती है जब दानवीर राजा बलि ने भगवान विष्णु को वचनों में बांधकर पाताल लोक में रहने पर विवश किया था। तभी मां लक्ष्मी ने बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध कर भगवान विष्णु को मुक्त करवाया था।
क्यों फोड़ते हैं नारियल?
नारियल फोड़ने के पिछे भी एक रोमांचक कहानी है जो हिंदू पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। हुआ यूं कि एक बार महर्षि विश्वामित्र इंद्र से नाराज हो गये और अपने लिये दूसरे स्वर्ग की रचना कर डाली। लेकिन दूसरा स्वर्ग बनाकर भी वे संतुष्ट नहीं हुए अब उन्होंनें सृष्टि ही दूसरी बनाने की ठान ली। मान्यता है कि अपनी सृष्टि में उन्होंनें मनुष्य के स्थान पर प्रतीक रूप में नारियल बनाया। आपने देखा भी होगा जब हम नारियल का ऊपरी छिलका उतारते हैं तो उसमें तीन सुराख दिखाई देते हैं जो आंख और मुंह के जैसे लगते हैं। इसी कारण जब हम भगवान को नारियल चढ़ाते हैं तो वह नारियल स्वयं को ही अर्पित करने का प्रतीक होता है। इसका अर्थ यही होता है कि उपासक ने अपने ईष्ट के चरणों में खुद को समर्पित कर दिया।
क्यों जलाते हैं कपूर?
कपूर एक सुंगधित पदार्थ माना जाता है। मान्यता है कि पूजा में कर्पूर को जलाने से समस्त दोषों नष्ट हो जाते हैं विशेषकर देव और पितरों से संबंधी दोष इससे दूर हो जाते हैं। वहीं इसे जलाने से रोगाणु भी नष्ट होते हैं जिससे बिमारी फैलने के भय भी नहीं रहता। इसी कारण धार्मिक क्रिया कलापों में कर्पूर जलाने का खास महत्व माना जाता है।
क्यों जलाते हैं धूप या अगरबत्ती?
धूप या अगरबत्ती में भी औषधीय गुण माने जाते हैं क्योंकि इन्हें विशेष जड़ी बूटियों के मिश्रण से बनाया जाता है। धूप या अगरबत्ती जलाने से वातावरण में सुगंध तो रहती ही है साथ ही मक्खी, मच्छर सहित बैक्टीरिया भी दूर हो जाते हैं। इस कारण पूजा पाठ के समय अगरबत्ती भी जलाई जाती है।
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