एकादशी व्रत का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है। पौराणिक ग्रंथों में इसके महत्व के बारे में काफी कुछ लिखा मिलता है। प्रत्येक मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशियों को मिलाकर एक वर्ष में 24 एकादशी व्रत आते हैं। हर एकादशी का अलग महत्व है। कई बार व्यक्ति के जीवन में ऐसा होता है कि वह लगातार पापकर्म किये जाता है और जब उसकी मति फिरती है तो उसे लगता है कि वह पाप के शिखर कर पंहुच चुका है यहां से तो उसे पश्चाताप करने का भी अधिकार नहीं है। लेकिन अगर उसके अंदर पश्चाताप की सच्ची भावना है तो उसके लिये अश्विन मास की शुक्ल एकादशी बहुत ही पुण्य फलदायी हो सकती है। आइये जानते हैं पापकुंशा एकादशी की व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार पापकुंशा एकादशी दशहरे के अगले दिन होती है। इस वर्ष यह तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 06 अक्तूबर 2024 को है।
पापकुंशा एकादशी तिथि – 6 अक्तूबर 2024
पारण का समय – सुबह 06:17 बजे से सुबह 07:26 बजे तक (07 अक्तूबर 2024)
एकादशी तिथि आरंभ – दोपहर 12:00 बजे (06 अक्तूबर 2024) से
एकादशी तिथि समाप्त – सुबह 09:40 बजे (07 अक्तूबर 2024) तक
पापकुंशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन भक्तों को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए और पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करना चाहिए। एकादशी व्रत का पालन दशमी तिथि से ही आरंभ हो जाता है। दशमी तिथि को संभव हो तो एक समय ही भोजन करना चाहिये। भोजन भी सात्विक ग्रहण करना चाहिये। गेंहु, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल, मसूर दाल आदि का भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिये। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। एकादशी तिथि को प्रात:काल उठकर स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिये। सामर्थ्य अनुसार एक समय फलाहार या निराहार उपवास का संकल्प कर सकते हैं। संकल्प लेकर घट स्थापना करें। कलश पर भगवान विष्णु की प्रतिमा भी रखें। रात्रि में भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए जागरण करना चाहिये। द्वादशी तिथि को योग्य ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देने के पश्चात ही व्रत का पारण करना चाहिये।
स्नान और शुद्धिकरण: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और मन को शांत करें।
मंत्र जाप: भगवान विष्णु के समक्ष घी का दीपक जलाकर "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।
भगवान विष्णु का ध्यान: भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को साफ करके, उन्हें चंदन, रोली, अक्षत, और पुष्प अर्पित करें।
तुलसी पत्र अर्पण: पूजा के दौरान तुलसी पत्र अर्पित करें क्योंकि यह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
व्रत का संकल्प: इस दिन व्रत का संकल्प लेकर पूरे दिन बिना अन्न का सेवन करें। केवल फलाहार कर सकते हैं।
एकादशी कथा का श्रवण: पापकुंशा एकादशी की व्रत कथा का श्रवण करें और कथा पूरी होने पर आरती करें।
भगवान विष्णु को भोग: भगवान को फलों, मिष्ठान्न और पंचामृत का भोग लगाएं।
भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र
चंदन या रोली
अक्षत (चावल)
पुष्प और माला
धूप, दीपक और घी
तुलसी पत्र
पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, और शक्कर)
फल, नारियल, मिठाई
गंगाजल
पवित्र वस्त्र (सफेद या पीले रंग के)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार महादानी राजा हरिशचंद्र ने अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए अनेक प्रकार के यज्ञ और दान किए, परंतु उन्हें संतोष नहीं मिला। वह अत्यंत दुखी और चिंतित हो गए। तब उन्हें एक ऋषि ने पापकुंशा एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी।
राजा ने विधिपूर्वक पापकुंशा एकादशी का व्रत किया, और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की। इससे उनके सभी पाप नष्ट हो गए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसी कारण इस एकादशी को "पापकुंशा" कहा जाता है, जो पापों के कुंज (गुच्छ) को समाप्त करने वाली है।
यह कथा बताती है कि इस व्रत के प्रभाव से बड़े से बड़े पापों का भी नाश हो सकता है और व्यक्ति जीवन के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
बहुत समय पहले की बात है कि विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक शिकारी रहा करता था। जैसा उसका नाम वैसे ही उसके काम। उसने अपनी तमाम उम्र पापकर्म करते हुए गुजार दी। जब उसका अतं समय निकट आया और यम के दूतों ने उसे सूचित किया कि वे फलां दिन उसे लेकर जायेंगें। अब क्रोधन की हालत खस्ता। उसे अहसास हुआ कि उसने कितने बुरे कर्म किये हैं यमलोक में उसके साथ क्या बीतेगी। वह परेशान होकर पश्चाताप करने के लिये जंगल की ओर निकल पड़ा।
वन में भटकते भटकते वह अंगिरा ऋषि के आश्रम पंहुच गया। ऋषि को प्रणाम किया उन्होंने आने का कारण पूछा। तब क्रोधन पश्चाताप में विलाप करते हुए अपनी पीड़ा बताने लगा। महर्षि बोले हालांकि तुमने बहुत देर करदी है लेकिन तुम सच्चे मन से पश्चाताप कर रहे हो इसलिये तुम्हें यह उपाय बता रहा हूं। अश्विन माह की शुक्ल एकादशी का विधि-विधान से उपवास रखो और भगवान विष्णु की पूजा करो। तब क्रोधन ने महर्षि के बताये अनुसार एकादशी का पूजन किया व उपवास रखा। इस प्रकार वह समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को प्राप्त हुआ।
सभी प्रकार के पापों का नाश होता है।
जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
मोक्ष की प्राप्ति होती है।
स्वास्थ्य और धन में वृद्धि होती है।
भगवान विष्णु की कृपा से परिवार में खुशहाली बनी रहती है।
पापकुंशा एकादशी व्रत से न केवल पापों का प्रायश्चित होता है बल्कि भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है। यह व्रत विशेष रूप से मोक्ष की कामना करने वालों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। श्रद्धालुओं को इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए, ताकि जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति हो सके।
इस पवित्र दिन पर भगवान विष्णु की आराधना करके भक्तों को अपने समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और वह भगवान के परमधाम में स्थान प्राप्त करते हैं।
पापकुंशा एकादशी व्रत को पूर्ण निष्ठा और भक्ति भाव से मनाएं और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करें।
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