Tulsi Vivah: तुलसी विवाह को प्रति वर्ष अत्यंत श्रद्धा एवं उत्साह के साथ किया जाता है। कब है तुलसी विवाह? किस मुहूर्त में करें तुलसी विवाह? क्या है तुलसी विवाह की पूजा विधि? जानें।
हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को अत्यंत पवित्र माना गया है जो प्रत्येक घर में देखने को मिलता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु को तुलसी अतिप्रिय है इसलिए विष्णु जी के पूजन में तुलसी का प्रयोग शुभ माना गया है। धार्मिक ग्रंथों में तुलसी को विष्णु प्रिय एवं हरि प्रिय भी कहा गया है। तुलसी विवाह सम्पन्न कराने को कल्याणकारी एवं पुण्यकारी माना गया है।
तुलसी विवाह से सम्बंधित किसी भी जानकारी के लिए अभी परामर्श करें देश के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों से।
पंचांग के अनुसार, प्रतिवर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादाशी तिथि को भगवान विष्णु के विग्रह स्वरुप शालीग्राम और देवी तुलसी का विवाह सम्पन्न करने की परंपरा है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महा की योगनिद्रा के बाद जगाते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, चार्तुमास में कोई भी शुभ एवं मांगलिक कार्य करना निषेध होता है। देवउठनी एकादशी से ही मांगलिक कार्यों का आरम्भ होता हैं।
इस वर्ष तुलसी विवाह 5 नवम्बर, शनिवार को किया जाएगा।
ये भी देखे 👉 ➔ आज का पंचांग ➔ आज की तिथि ➔ आज का चौघड़िया ➔ आज का राहु काल ➔ आज का शुभ योग
तुलसी विवाह को मुख्य रूप से देवउठनी एकादशी के दिन किया जाता है। इस एकादशी से चतुर्मास की समाप्ति होती हैं और तुलसी विवाह के साथ ही सभी शुभ कार्य और विवाह आरंभ हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन जो लोग तुलसी विवाह संपन्न करवाते हैं उन्हें भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन की समस्त विघ्न-बाधाओं का समाधान होता हैं।
तुलसी विवाह करने से कन्यादान तुल्य पुण्य फल प्राप्त होता है। माँ तुलसी के आशीर्वाद से घर-परिवार में सदैव सुख-समृद्धि बनी रहती है। देवउठनी एकादशी के दिन शालीग्राम और तुलसी का विवाह कराया जाता है और स्त्रियाँ सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत व पूजन करती हैं।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे। हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।
इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता। त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो। न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।
ये भी देखे 👉 ➔ श्री तुलसी जी की आरती | श्री तुलसी चालीसा
शास्त्रों के अनुसार, जालंधर नामक राक्षस ने संसार में उत्पात मचाया हुआ था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पतिव्रता पत्नी वृंदा जिसके प्रभाव से उसे कोई पराजित नहीं कर पा रहा था। जालंधर के अत्याचारों से परेशान देवताओं ने श्रीहरि विष्णु से रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का फैसला किया। उन्होंने जालंधर का रूप धारण करके छल से वृंदा का स्पर्श किया।
वृंदा का पति जालंधर देवताओं के साथ युद्ध कर रहा था परंतु वृंदा का सतीत्व भंग होते ही वो युद्ध में मारा गया। वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही जलंधर का मस्तक उसके आंगन में आ गिरा। जब वृंदा ने अपने पति का सिर देखा तो क्रोधित होकर ये जानना चाहा कि किसने उसे स्पर्श किया। उसने सामने साक्षात भगवान विष्णु खड़े थे, तब वृंदा ने भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला बनने का श्राप दे दिया। श्रीविष्णु ने अपने भक्त के श्राप को स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गये।
सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बनने की स्थिति के कारण ब्रम्हांड में असंतुलन पैदा हो गया। इसके बाद, समस्त देवी देवताओ ने वृंदा से भगवान विष्णु को श्राप मुक्त करने की प्रार्थना की। वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। श्रीहरि विष्णु ने वृंदा से कहा: हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। उस दिन के बाद से ही देवउठनी एकादशी पर तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ संपन्न किया जाने लगा।
आगामी पर्व व उत्सव: देवउठनी एकादशी➡️ गुरु नानक जयंती➡️ क्रिसमस➡️ नववर्ष 2022
✍️ By- Team Astroyogi