इस बार 10 सितंबर 2021 से पूरे देशभर में गणेशोत्सव का पावन पर्व मनाया जा रहा है। इस त्योहार को लेकर पूरे देश में हर्षोल्लास का माहौल बना हुआ है। गणेश चतुर्थी का यह पर्व महाराष्ट्र से शुरु हुआ और आज देश के कोने-कोने में इसको धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इन 10 दिनों के त्योहार में लोग गणपति की मूर्ति घर में या पंडालों में स्थापित करते हैं और उनकी विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं। गणेश विसर्जन के दिन प्रतिमा को किसी कुंड या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है।
कहा जाता है कि भगवान गणेश प्रथम पूज्य हैं और उनकी पूजा जितनी सरल है उतनी ही कठिन है। विघ्नहर्ता की मूर्ति को स्थापित करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है लेकिन आप गणेश प्रतिमा खरीदते वक्त कुछ बातों का अवश्य ध्यान रखें। जैसे- गणपति की सूंड और उनके हाथ में एकदंत अंकुश और मोदक अवश्य होना चाहिेए। भगवान गणेश को वक्रतुण्ड कहा जाता है क्योंकि उनकी सूंड मुड़ी हुई है। वहीं भगवान गणेश के वक्रतुण्ड स्वरूप के भी कई प्रकार हैं। आपने बाजार में भगवान गणपति की कई प्रतिमाएं देखी होंगी और आपके मन में कौतूहल भी जागृत हुआ होगा कि विघ्नहर्ता की कौन सी मूर्ति शुभ होती है? तो चलिए हम आपको बताते हैं कि बाजार में कितनी तरह की मूर्तियां उपलब्ध हैं और कौन सी मूर्ति का क्या प्रभाव पड़ता है?
इस तरह की मूर्ति से मिलेगी श्री सिद्धि विनायक की कृपा! गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।
आजकल लोग पर्यावरण प्रदूषण को लेकर काफी जागरूक हो गए हैं। ऐसे में लोगों ने इको फ्रेंडली गणेश मूर्तियां स्थापित करनी शुरु कर दी है। आजकल बाजार में कई तरह के इको फ्रेंडली गणपति उपलब्ध हैं। जैसे- मिट्टी के गणपति, पौधे से बीज वाले गणपति, पेपर से बनी मूर्ति, गोबर से बनी प्रतिमा और इको फ्रेंडली मिश्रण से बने गणपति इत्यादि।
पहले गणेश चतुर्थी पर लोग POP वाले श्रीगणेश को स्थापित करते थे लेकिन अब बाजारों में मिट्टी की बनी मूर्तियां उपलब्ध हैं और लोग इसे अपने घरों में स्थापित भी करते हैं।
आजकल बाजार में ऐसी प्रतिमाएं बिक रही हैं जो मिट्टी से बनी हुई हैं। साथ ही इन मूर्तियों के अंदर किसी पौधे का बीज भी होता है। विसर्जन के लिए उन्हें गमले में लगाया जाता है और बीज मिट्टी के साथ मिल जाता है और थोड़े दिन बाद पौधा रोपित हो जाता है।
आजकल कई जगहों पर आपको गोबर और पेपर की मदद से बनी श्रीगणेश की मूर्ति मिल सकती है। इनकी कीमत भले ही थोड़ी ज्यादा हो लेकिन यह मूर्ति इको फ्रेंडली होती है।
गणेश जी की कई मूर्तियां अब प्राकृतिक चीजों से मिलकर बनने लगी है। इन्हें बनाने के लिए मिट्टी, पेपर, कुमकुम और प्राकृतिक रंगों से मिलकर मूर्ति का निर्माण किया जाता है।
संतान सुख से वंचित लोगों को संतान प्राप्ति के लिए अपने घर में बाल गणपति की मूर्ति और तस्वीर स्थापित करनी चाहिए और प्रतिदिन बालगणेश के स्वरूप की पूजा करनी चाहिए, जिससे संतान प्राप्ति में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं।
यदि आपके घर में कलह या अशांति बनी रहती है तो आपको नाचते हुए विघ्नहर्ता की तस्वीर लगानी चाहिए। इस प्रतिमा की रोजाना पूजा करने से सद्बु्द्धि प्राप्ति होती है और छात्रों को अच्छे अंक प्राप्त होते हैं। वहीं कला जगत से जुड़े लोग इस तरह की मूर्ति को स्थापित करते हैं और इससे विशेष लाभ मिलता है।
अगर आप लेटे हुए गणपति की प्रतिमा को अपने घर में विराजित करते हैं तो घर में धन और आनंद बना रहता है। इससे घर में सुख- समृद्धि का स्थायित्व बना रहता है।
लालरक्त वर्णित स्वरूप वाले गणपति विघ्नबाधाओं का हरण करने वाले, तेजस्वी माने गए हैं। इस तरह की प्रतिमा को स्थापित करने से व्यापार में लाभ मिलता है। सिंदूरी लाल रंग वाले गणपति को समृद्धिदायक माना गया है।
ज्योतिष की माने तो मूर्ति खरीदते वक्त हमेशा बाईं ओर मुड़ी हुई सुूंड वाले गणपति ही लेने चाहिए। बाईं तरफ मुड़ी हुई सूंड भगवान की बाईं भुजा को स्पर्श करता हो, तो उसे “वाममुखी” कहते हैं। वाममुखी वाली मूर्ति सबसे शुभ मानी जाती है। बाईं ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी को “विघ्नविनाशक” कहा जाता है। इस तरह की मूर्ति को घर के अंदर स्थापित करने से सभी नकारात्मक ऊर्जी रुक जाती है और रचनात्मक कार्यों के प्रति लगाव बना रहता है।
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दाईं तरफ सूंड वाले गणपति को घर मे स्थापित करना काफी दुर्लभ होता है क्योंकि इस तरह की प्रतिमा के लिए विशेष पूजा की आवश्यकता होती हैं इस तरह की मूर्ति को “सिद्धि विनायक” कहा जाता है। इसलिए इस तरह की गणपति प्रतिमा को घर के बजाय मंदिरों में स्थापित करना उचित है। यदि इस प्रतिमा की नियमानुसार पूजा नहीं की गई तो इसका गलत प्रभाव पड़ने लगता है। आपकी मनोकामना पूर्ण होने में काफी देर लगती है क्योंकि इस तरह की सूंड वाले विघ्नहर्ता देर से प्रसन्न होते हैं।
यदि आप सीधी सूंड वाले गणपति को स्थापित करते हैं तो यह सुष्मना नाड़ी पर प्रभाव रखने वाला माना जाता है। सीधी सूंड वाले विघ्नविनाशक के मूर्त रूप को सुषुमा स्वर कहा जाता है। इस तरह की मूर्ति आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण, मोक्ष, समाधि आदि के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। इस तरह की मूर्ति का पूजन संत समाज मोक्ष प्राप्ति के लिए करता है।
गणपति मूर्ति के चयन के अलावा गणपति की स्थापना का भी अपना एक विशेष महत्व है। हमेशा गणेश प्रतिमा को घर के ब्रह्म स्थान यानि कि केंद्र में और पूर्व दिशा में ईशान कोण में स्थापित करना शुभ और फलदायी माना जाता है और ध्यान रखें कि गणेश जी की सूंड उत्तर दिशा की ओर हो। एक ध्यान रखने योग्य बात यह है कि घऱ में जहां पहले से ही गणपति की कोई प्रतिमा विराजित हो वहां पर दूसरी मूर्ति को स्थापित नहीं करना चाहिए क्योंकि एक ही स्थान पर दो गणेश प्रतिमा को स्थापित करने से घर में अमंगलकारी कार्य होने लगते हैं।
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