क्या है दीपावली का पौराणिक इतिहास

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क्या है दीपावली का पौराणिक इतिहास

दीपावली रोशनी का त्योहार हैं। जगमगाते दीपो के बीच माँ लक्ष्मी की प्रतिमा और माँ की पूजा करते आशीर्वाद के प्रार्थी भक्त, कुछ ऐसा समा होता है, दीपावली के त्योहार का। इस दिन लक्ष्मी, गणेश और धन के राजा कुबेर की पूजा होती हैं, और भक्त लोग ईश्वर से धन-धान्य से सम्पन्न होने की प्रार्थना करते हैं। वर्ष 2021 में दीपावली का पर्व 07 नवंबर, बृहस्पतिवार के दिन मनाई जाएगी। 

 

दीपावली के देवी-देवता

 

धन की देवी, लक्ष्मी

 

धन, सुख-समृद्धि, विलासिता, रोशनी और सम्पन्नता की देवी लक्ष्मी, प्रभु विष्णु की अर्धांगिनी है। पुराणो के अनुसार दया की देवी लक्ष्मी त्रेता युग में सीता का अवतार लेकर श्री राम की संगिनी बनी और दवापर युग मे राधा और रुकमणि का रुप धारण कर श्री कृष्ण की धर्मपत्नी बनी। देवी लक्ष्मी अपने रुप, सौंदर्य और आकर्षण के लिए भी प्रख्यात हैं। महा लक्ष्मी अपने भक्तो को कभी निराश नही करती, और उनकी मुरादे पूरी कर उन्हे धन और समृद्धि से भरपूर करती हैं। वेदों मे लक्ष्मी को “लक्ष्यविधि लक्षमिहि” के नाम से संबोधित किया गया हैं, जिसका अर्थ होता हैं, जो लक्ष्य प्राप्ति मे मदद करें।

 

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गणपति देव

 

हिन्दुओ द्वारा सबसे ज़्यादा पूजे जाने वाले भगवानों मे सबसे प्रमुख हैं, गणेश भगवान। जिन्हे, गणपति, विनायक, लंबोदर आदि नामों से जाना और पूजा जाता हैं। सिर्फ भारत देश मे ही नही, गणेश जी की प्रतिमा की पूजा विश्व के दुसरे भागों मे भी की जाती हैं। गणेश जी का हाथी का सिर परेशानियों को दूर करता हैं, इसलिए उन्हे विघ्नहर्ता भी कहा जाता हैं। हिन्दु धर्म में कोई भी रस्म या विधि बिना गणेश जी पूजा किए संपन्न नही मानी जाती हैं। गणेश हर समारोह को शुभ बना देते हैं।


धन के राजा कुबेर 

 

पंडितजी का कहना है कि धन के राजा कुबेर को हिन्दु धर्म में प्रमुख यक्षों मे से एक माना जाता हैं, उन्हे उत्तर दिशा (दिक-पाला) का स्वामी माना जाता हैं, कई मान्यताओ के अनुसार कुबेर को धरती का रक्षक (लोकपाला) के नाम से भी जाना जाता हैं। कुबेर को इस पूरे विश्व की धन-दौलत और सम्पत्ति का स्वामी माना जाता हैं। वेदों और पुराणों में कुबेर को बुरी शक्तियों का स्वामी माना जाता हैं।

 

दीवाली और पौराणिक कथाएं

 

दीपावली रोशनी का त्योहार है। पूरे भारत मे इसे बडे धूम-धाम से मनाया जाता है। दीयो की जगमगाहट के बीच हर कोई ईश्वर से सुख-समृद्धि की प्रार्थना करता है। पटाखो की आवाज़, मोम्बत्ती का प्रकाश, यह सब दीवाली की शान है। दीवाली हिन्दुओ का प्रमुख त्योहार है। यह पर्व अक्तूबर और नवम्बर में मनाया जाता है। भारत के लोगो के लिए दीवाली के दिन से ही नया साल शुरु हो जाता है। अब यह पर्व भारत मे न सिमटकर पूरी दुनिया मे बडे़ अत्साह के साथ मनाया जाता है।

 

राम की अयोध्या वापसी                        

 

रामायण की कथा के अनुसार, भगवान श्री राम, रावण को युद्ध मे पराजित कर सीता और लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटे थे। चौदह साल का वनवास भोगने के बाद जब श्री राम अयोध्या वापस आए थे तो, अयोध्या के लोगो ने अपने राजा के स्वागत के लिए घी के दिए जलाए थे। पटाखे जला कर, नाच-गा कर लोगो ने अपनी खुथियां व्यक्त करी थी। उस दिन से लेकर आज तक हर साल यह दीवाली के नाम से मनता आ रहा है। और आज भी इस त्योहार को रोशनी का प्रतीक मानते है।


कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध                                  

 

पंडितजी का कहना है कि एक दुसरी कथा है जिसके अनुसार भगवान कृष्ण ने इस दिन दानव नरकासुर का वध किया था। उनकी जीत की खुशियां मनाने के लिए गोकुल के लोगो ने दीए जलाए। हिन्दू धर्म के लोगो के लिए राम और कृष्ण दोनो ही प्रमुख भगवान है तो इस कारण दीवाली भी हिन्दु धर्म मे बहुत खास महत्व रखती है।  

 

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