हिन्दुओं के पवित्र त्यौहार धनतेरस को धन त्रयोदशी या धन्वन्तरि त्रयोदशी भी कहा जाता है। धनतेरस शब्द की उत्पति दो शब्दों से मिलकर हुई है "धन" और "त्रयोदशी" जिसका अर्थ है "धन" और तेरस या "त्रयोदशी" का अर्थ है तेरह। हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की तेरहवी तिथि या त्रयोदशी को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है।
धनतेरस रोशनी, उमंग और खुशियों के पर्व दिवाली की शुरुआत का प्रतीक है जो हिन्दू धर्म का प्रमुख एवं प्रसिद्ध त्यौहार है। पांच दिवसीय पर्व दीपावली का प्रथम दिन होता है धनतेरस। यह दिन धन के कोषाध्यक्ष देव कुबेर और आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरि को समर्पित होता हैं और इस दिन इनका पूजन किया जाता है। सुख-समृद्धि एवं वैभवपूर्ण जीवन की कामना के लिए धनतेरस का दिन श्रेष्ठ होता है।
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 29, 2024 को 10:31 ए एम बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 30, 2024 को 01:15 पी एम बजे त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 18, 2025 को 12:18 पी एम बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 19, 2025 को 01:51 पी एम बजे त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 06, 2026 को 10:30 ए एम बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त - नवम्बर 07, 2026 को 10:47 ए एम बजे त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 27, 2027 को 01:03 ए एम बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 27, 2027 को 10:49 पी एम बजे त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 15, 2028 को 07:16 पी एम बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 16, 2028 को 03:45 पी एम बजे त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 03, 2029 को 08:57 पी एम बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त - नवम्बर 04, 2029 को 05:29 पी एम बजे त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 24, 2030 को 09:05 ए एम बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त - अक्टूबर 25, 2030 को 07:09 ए एम बजे त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 12, 2031 को 06:09 ए एम बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त - नवम्बर 13, 2031 को 05:36 ए एम बजे त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 31, 2032 को 06:45 ए एम बजे त्रयोदशी तिथि समाप्त - नवम्बर 01, 2032 को 08:42 ए एम बजे
प्रदोष काल - 05:50 पी एम से 08:22 पी एम
वृषभ काल - 06:46 पी एम से 08:45 पी एम
प्रदोष काल - 05:59 पी एम से 08:28 पी एम
वृषभ काल - 07:31 पी एम से 09:29 पी एम
प्रदोष काल - 05:46 पी एम से 08:20 पी एम
वृषभ काल - 06:17 पी एम से 08:15 पी एम
प्रदोष काल - 05:52 पी एम से 08:24 पी एम
वृषभ काल - 06:57 पी एम से 08:55 पी एम
प्रदोष काल - 06:01 पी एम से 08:30 पी एम
वृषभ काल - 07:42 पी एम से 09:40 पी एम
प्रदोष काल - 05:47 पी एम से 08:20 पी एम
वृषभ काल - 06:24 पी एम से 08:22 पी एम
त्रयोदशी तिथि प्रदोष मुहूर्त के साथ व्याप्त नहीं है।
प्रदोष काल - 05:54 पी एम से 08:25 पी एम
वृषभ काल - 07:08 पी एम से 09:06 पी एम
प्रदोष काल - 05:43 पी एम से 08:18 पी एम
वृषभ काल - 05:54 पी एम से 07:53 पी एम
प्रदोष काल - 05:49 पी एम से 08:22 पी एम
वृषभ काल - 06:39 पी एम से 08:37 पी एम
धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि, देवी लक्ष्मी एवं कुबेर देव की कृपा प्राप्त करने के लिए धनतेरस पूजा को इस प्रकार करें:
धनतेरस पर संध्या के समय शुभ मुहूर्त में उत्तर दिशा की तरफ देव कुबेर और भगवान धन्वंतरि की स्थापना करें।
इन्ही के साथ माता लक्ष्मी एवं श्री गणेश की भी मूर्ति या चित्र को स्थापित करना चाहिए।
इसके बाद दीपक प्रज्वलित करें और विधिवत पूजन प्रारंभ करें।
सभी देवी-देवताओं को तिलक करने के बाद पुष्प, फल आदि अर्पित करें।
अब कुबेर देवता को सफेद मिठाई और धन्वंतरि देव को पीली मिठाई का प्रसाद के रूप में भोग लगाएं।
इस पूजा के दौरान 'ऊं ह्रीं कुबेराय नमः' मंत्र का जाप करते रहें।
भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने के लिए धनतेरस पर धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
धनतेरस के अवसर पर सोना, चाँदी, पीतल आदि को खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है।
इसके अलावा धनतेरस पर धनिया और झाड़ू खरीदना भी काफी शुभ होता है।
इस दिन काले या गहरे रंग की वस्तुएं, चीनी मिट्टी से बने बर्तन, कांच, एल्युमीनियम और लोहे से बनी वस्तुओँ को खरीदने से बचना चाहिए।
हिन्दू धर्म में धनतेरस के विशेष महत्व का वर्णन किया गया है। ऐसा कहा जाता हैं कि धनतेरस के दिन धन-धान्य की देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने से घर-परिवार में सदैव धन, वैभव, सुख और समृद्धि का वास रहता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, धनतेरस पर पूजन करने से घर में धन के भंडार सदैव भरे रहते हैं और धन-संपदा में वृद्धि होती है।
माता लक्ष्मी के साथ धनतेरस पर धन के देवता कुबेर के पूजन का भी विधान हैं। यही वजह है कि धनतेरस तिथि पर आभूषण, चांदी का सिक्का, नए बर्तन, नए कपड़े और वस्तुओं आदि की खरीदारी को शुभ माना जाता है।
धनतेरस से जुड़ीं पौराणिक मान्यता है कि धन त्रयोदशी तिथि पर किसी भी प्रकार की "धातु" की खरीद को सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। इस दिन लोग नए कपड़ों की खरीदारी करते हैं, घर, दफ्तरों और कार्यालयों की साफ़-सफाई करते हैं, साथ ही रंग-बिरंगी लालटेन, रंगोली, दीया और माता लक्ष्मी के पैरों के चिन्ह से घर को सजाते हैं।
सनातन धर्म में कार्तिक माह की त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस को मनाया जाता है। धनतेरस के विषय में ऐसा कहा जाता है कि इस दिन आयुर्वेदिक उपचार पद्धति के देवता भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे। यही वजह है कि धनतेरस को धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है। जब समुद्र मंथन से धन्वंतरि देव प्रकट हुए थे उस समय उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था इसलिए धनतेरस के दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। पीतल को भगवान धन्वंतरी की धातु माना गया है और इसको खरीदने से घर-परिवार को आरोग्यता और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस पर्व से ही दीपावली उत्सव का आरम्भ होता है।
हिंदू धर्म के अतिरिक्त जैन धर्म में भी धनतेरस के पर्व का अपना विशिष्ट महत्व है। धनतेरस को आगम में ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहा जाता हैं। इस तिथि पर भगवान महावीर तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिए योग निरोध के लिए चले गए थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए दीपावली पर भगवान महावीर को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। उस समय से ही धनतेरस का दिन ‘धन्य तेरस’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
धनत्रयोदशी या धनतेरस तिथि पर 13 का विशेष महत्व होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन खरीदी गई प्रत्येक वस्तु से तेरह गुना फल की प्राप्ति होती है। इस दिन किसी भी कार्य को 13 की संख्या में किया जाए तो उसके फल में भी 13 गुना वृद्धि हो जाती है।
दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस तिथि पर दीप जलाने और पूजा-पाठ करने की परंपरा है। ऐसा कहा जाता है कि धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज को प्रसन्न करने और अकाल मृत्यु से बचने के लिए उनका पूजन किया जाता है और दक्षिण दिशा में दीपक जलाए जाते हैं, इसे ही यम दीप कहा जाता है। धनतेरस पर यम दीपक जलाने से यमदेव खुश होते है और समस्त परिवार को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।
पर्व को और खास बनाने के लिये गाइडेंस लें इंडिया के बेस्ट एस्ट्रोलॉजर्स से।
दिनाँक | Friday, 22 November 2024 |
तिथि | कृष्ण सप्तमी |
वार | शुक्रवार |
पक्ष | कृष्ण पक्ष |
सूर्योदय | 6:49:59 |
सूर्यास्त | 17:25:16 |
चन्द्रोदय | 23:42:13 |
नक्षत्र | अश्लेषा |
नक्षत्र समाप्ति समय | 17 : 11 : 9 |
योग | ब्रह्म |
योग समाप्ति समय | 11 : 33 : 47 |
करण I | विष्टि |
सूर्यराशि | वृश्चिक |
चन्द्रराशि | कर्क |
राहुकाल | 10:48:13 to 12:07:38 |