हमारा देश इस वर्ष 73वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। ऐसे में यह हम सब के लिए गर्व की बाात है। आप सभी को पता है कि इस महापर्व पर देश के वीर अपना शौर्य राजपथ पर प्रदर्शित करते हैं जिसमें देश की सेना सहित सभी बल शामिल होते हैं। क्या आपको पता है कि सबसे पहले गणतंत्र दिवस की स्थापना किसने की थी? नहीं?, पंडित मनोज कुमार द्विवेदी बताने जा रहे हैं कि वो कौन थे।
आइये आपको ले चलते हैं द्वापर युग के चक्रवर्ती सम्राट भरत के हस्तिनापुर राजदरबार, जहाँ दुनिया में पहली बार प्रजातंत्र जन्म ले रहा है। वही भरत, जो महर्षि कण्व की मुँहबोली पुत्री शकुंतला व महाराज दुष्यंत के पुत्र हैं और जो बचपन में शेरों के दाँत गिना करते थे। आज वे अपने बाहुबल से हस्तिनापुर की सीमाएँ पूरे आर्यावर्त में फैलाकर एक राष्ट्र के रूप में भारतवर्ष की स्थापना कर वापिस लौटे हैं। उनके सम्मुख चुनौती है युवराज घोषित करने की।
राजा भरत के नौ पुत्र हैं, परन्तु वे उनमें से किसी को युवराज पद के योग्य नहीं मानते और भारद्वाज पुत्र भुमन्यु को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते हुये वे घोषणा करते हैं कि "कोई राजा अपने देश व अपनी प्रजा से बड़ा नहीं होता। प्रत्येक राजा के तीन कर्तव्य होते हैं देश व जनसमुदाय की रक्षा करना, उन्हें न्याय देना और उसे युवराज के रूप में भविष्य का ऐसा राजा देना जो इन्हीं कामों को करने की योग्यता रखता हो "इसीलिए उन्होंने अपने पुत्रों की बजाय भूमन्यु को भविष्य का नरेश घोषित किया और इस तरह भूमन्यु के रूप में इस पृथ्वी पर अंकुरित हुआ प्रजातन्त्र अर्थात गणतंत्र जो आधुनिकतम व सर्वप्रिय शासन प्रणाली बना हुआ है।
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भारत में इसी प्रजातंत्र को संविधान का रूप देकर 26 जनवरी 1950 को हमारे देश में लागू किया गया। गणतंत्र की सबसे सार्थक परिभाषा उस समय मुखरित हुई जब शंकुतला भरत से पूछती हैं कि "तुम कैसे पिता हो, जो अपने पुत्रों का अधिकार दूसरे को दे रहे हो" तो भरत उत्तर देते हैं "माते, मैं जन्म के नौ पुत्रों का पिता होने के साथ एक राजा भी हूँ पूरा जनसमुदाय ही मेरा परिवार है योग्यता की अनदेखी कर उस पुत्र को राज्य देना जो केवल जन्म से मेरा है, यह तो प्रजा से अन्याय हुआ माते "। इसी तरह भरत ने जन्म और कर्म के बीच एक बिभाजन रेखा खींची उन्होंने व्यवस्था दी कि जन्म से न तो कोई उच्च न ही कोई हीन।
इससे इस देश में कर्म को प्रधानता मिली, राजा भरत ने केवल प्रजातन्त्र की नींव ही नहीं डाली बल्कि उसके लिए वातावरण भी जुटाया। उन्होंने एक बार फिर उत्तर के हिमालय से लेकर दक्षिण में सागर तक अपनी सीमाओं का विस्तार कर एक विशाल राष्ट्र की स्थापना की।
उत्तर यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम ।
वर्ष तद् भारत नाम भारती यत्र संतति।।
अर्थात हिमालय से लेकर सागर तक भूभाग का नाम भारत और यहाँ रहने वाले भारतीय हैं। भरत ने इस राष्ट्र के लोगों को भौगोलिक रूप से एकजुट और सुरक्षित किया। प्रजापालन व धर्मपालन में उनका कोई सानी न था।
युग बदला और दुर्योग से कुछ समय बाद इस परम्परा पर विराम लगा और भारतवर्ष में फिर से राजतंत्र व्यवस्था शुरू हुयी फिर देश ने एक दौर ऐसा भी देखा जब राजदरबार षड्यंत्र के अड्डे बन गये मुगल काल में तो पुत्र ने पिता को करावास में डलवाया, भाई ने भाई की हत्या की और इसके बाद आया अग्रेजों का दमनकारी शासन और फिर शरू हुआ भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने का हमारे क्रांतिकारियों की जंग की अद्भुत गाथा जिसे हम सब आज भी याद करते हैं। जहाँ एक ओर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने अहिंसात्मक असहयोग आंदोलन चला़या तो दूसरी ओर हमारे क्रांतिकारी नव जवानों नें अपना बलिदान देकर अंग्रजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया, समय बीता देश में आजादी आई, आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को अपना संविधान लागू हुआ इस तरह देश में सदियों पुरानी कर्म आधारित व्यवस्था को पुनः स्थापित किया गया। आज अपना गणतंत्र बड़ी तेजी से परिवक्वता की ओर बढ़ रहा है।
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यह इस देश की सुन्दरता है कि बचपन में अखबार बेचने वाले एपीजे अब्दुल कलाम अपनी योग्यता के बल पर राष्ट्रपति बन जाते हैं और यह लोकतंत्र के लिए शुभ समाचार है कि साधारण घरों के बच्चे अपनी योग्यता के बल पर बड़े-बड़े पद प्राप्त कर रहे हैं आज बेटियाँ हर क्षेत्र में अपनी योग्यता का लोहा मनवा रही हैं। देश में जनतंत्र का भविष्य उज्जवल है महाराजा भरत द्वारा रोपा गया लोकतंत्र का पौधा आज संविधान की उर्जा से वट वृक्ष का रूप धारण करता जा रहा है और आने वाले समय भारत विश्वगुरु के रूप में स्थापित होगा और पूरा विश्व अनुसरण करेगा।
सभी देशवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!