पति-पत्नी के प्रेम का पर्व है करवाचौथ जो हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस तिथि एवं मुहूर्त पर करें करवाचौथ व्रत की पूजा।
करवा चौथ हिन्दू धर्म का प्रमुख त्यौहार है जो सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। पंचांग के अनुसार,हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का पर्व मनाया जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं। करवा चौथ का व्रत अत्यंत कठिन होता है जिसे निर्जल रहकर ही पूरा किया जाता है। इस व्रत के दिन सौभाग्यवती स्त्रियाँ सूर्योदय से चंद्रोदय तक व्रत का पालन करके अपने पति की हर अनिष्ट से रक्षा एवं स्वस्थ व दीर्धायु जीवन की प्रार्थना करती हैं। करवा चौथ को मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात आदि राज्यों में श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। राशिनुसार इस बार करें करवाचौथ पूजन, अधिक जानकारी के लिए विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य से अभी बात करें।
करवा चौथ के पावन व्रत को सुहागिन महिलाओं के साथ कुँवारी कन्याएं उत्तम वर की प्राप्ति के लिए रखती हैं। इस व्रत को पूरे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, लेकिन लगभग सभी स्थानो पर करवा चौथ के व्रत का महत्व, पालन करने के लिए नियम और परम्पराएं एक समान होती हैं। करवा चौथ के व्रत को कर्क चतुर्थी के नाम से भी पुकारा जाता है। कई बार करवा चौथ को संकष्ठी चतुर्थी के साथ मनाया जाता है और इस दिन भक्तजन भगवान गणेश का व्रत करते हैं। .
करवा चौथ का व्रत वर्ष 2021 में 24 अक्टूबर, रविवार को किया जाएगा।
करवा चौथ पूजा मुहूर्त
करवा चौथ पूजा मुहूर्त: शाम 17:38 से शाम 18:56
चंद्रोदय का समय - रात 20:11
चतुर्थी तिथि आरंभ- रात 03:01 (24 अक्टूबर)
चतुर्थी तिथि समाप्त- सुबह 05:42 (25 अक्टूबर)
इस वर्ष करवा चौथ पर एक विशेष संयोग बनने जा रहा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, रोहिणी नक्षत्र में करवा चौथ का चांद निकलेगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस नक्षत्र में करवा चौथ का व्रत रखना शुभ होता है। इस नक्षत्र में चंद्र दर्शन करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पूर्व आरम्भ होता है और चांद निकलने के बाद चन्द्रमा के दर्शन के पश्चात ही इस व्रत को तोड़ा जाता है।
संध्याकाल में चंद्रोदय से 1 घंटा पूर्व सम्पूर्ण शिव-परिवार (भगवान शिव, माँ पार्वती, नंदी जी, श्रीगणेश और भगवान कार्तिकेय) की पूजा करने की परंपरा है।
पूजा करते समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए ओर व्रती को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए।
करवाचौथ का व्रत रखने वाली सुहागिन महिलाओं को उनकी सास सरगी बनाकर देती है। एक थाली के अंदर खाने की चीजें रखी जाती है जो सास द्वारा उनकी बहू को दी जाती है। सूर्योदय से पहले सरगी को खाकर करवाचौथ के निर्जला व्रत की शुरुआत की जाती है और रात में चाँद देखने के बाद ही व्रत को तोड़ा जाता है।
सरगी की थाली में ऐसी चीजें रखी जाती है जिसे खाने से भूख-प्यास कम लगती है। यदि सास साथ में नहीं हैं, तो वो आपको पैसे भिजवा सकती है जिससे वो अपने लिए सरगी का सामान खरीद सकें। सरगी की थाली में मुख्य रूप से सुहाग की चीजें, कपडे, फेनिया, फल, सूखे मेवे, नारियल आदि शामिल होता है।
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करवा चौथ की पूजा करते समय आपको निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है जो इस प्रकार है: गंगाजल, पानी का लोटा, दीपक,चंदन, अगरबत्ती, रोली, फूल, कच्चा दूध,अक्षत, देसी घी, दही, चीनी, शहद, हल्दी, चावल, मिठाई, चीनी का बूरा, चुनरी, चूड़ी, मेहंदी, कंघा, बिंदी, महावर, सिंदूर, बिछुआ, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, आठ पुरियों की अठावरी, छलनी, हलवा और दक्षिणा आदि।
प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि कार्यों से निवृत होकर पूजा स्थान की साफ़-सफाई करें। इसके पश्चात सास द्वारा दी हुई सरगी का सेवन करें। अब भगवान का पूजन करने के बाद व्रती को निर्जला व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
इस व्रत को सदैव संध्या के समय सूरज अस्त होने के बाद चाँद के दर्शन करके ही तोड़ना चाहिए। इस दौरान जलपान नहीं करना चाहिए।
संध्या होने पर एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवी-देवताओं की स्थापना करनी चाहिए। इस पूजा में 10 से 13 करवे (मिट्टी से बने विशेष कलश) को रखें।
पूजा की सामग्री के रूप में दीप, धूप, चन्दन, सिन्दूर, रोली आदि को थाली में रखें। इस पूजा में प्रयोग होने वाले दीपक में पर्याप्त मात्रा में घी भरे, जिससे वह काफ़ी समय तक जलता रहे।
पूजा पूर्ण होने के बाद चन्द्रमा उदय से करीब एक घंटे पहले पूजा को आरम्भ करना चाहिए। बेहतर होगा, घर की सभी महिलाएँ एकसाथ पूजा सम्पन्न करें।
इस पूजा के दौरान प्रत्येक व्यक्ति को करवा चौथ व्रत कथा सुननी और सुनानी चाहिए।
इस दिन चन्द्रमा के दर्शन छलनी की मदद से करने चाहिए, साथ ही दर्शन के बाद अर्घ्य देते हुए चन्द्र पूजन करना चाहिए।
करवा चौथ के दिन चन्द्र-दर्शन के पश्चात बहू द्वारा अपनी सास को थाली में सजाकर मिठाई, फल, मेवे, रूपये, वस्त्र आदि देकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए।
शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे थे और करवा नाम की एक बेटी थी। एक समय की बात है, उनके घर में करवा चौथ के दिन व्रत रखा गया। रात को जब सभी भाई भोजन करने के लिए बैठे तो करवा के भाइयों ने अपनी बहन से भी भोजन करने का आग्रह किया। करवा ने यह कहकर भोजन से इंकार कर दिया कि अभी चांद नहीं निकला है और वह चन्द्रमा को देखकर व अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी। सुबह से भूखी-प्यासी अपनी प्यारी बहन की हालत भाइयों से नहीं देखी गयी। सभी भाइयों में सबसे छोटा भाई एक दीपक को दूर पीपल के पेड़ में प्रज्वलित करके आया और अपनी बहन से बोला, चांद निकल आया है, अपना व्रत खोल ले। करवा को अपने भाई की चतुराई समझ में नहीं आयी और उसने व्रत खोल लिया, जैसे ही उसने भोजन का पहला निवाला खाया। निवाला खाते ही उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला।
यह ख़बर सुनते ही वो शोक में डूब गई और एक वर्ष तक अपने पति के शव को लेकर बैठी रही, साथ ही उसके ऊपर उगने वाली घास को एकत्र करती रही। अगले वर्ष फिर से कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी आने पर उसने दोबारा पूरे विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत रखा, जिसके परिणामस्वरूप उसका पति को पुनः जीवनदान मिला। उस दिन से ही सुहागिन महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए हर साल करवा चौथ का व्रत करती आ रही हैं।