एक नहीं, दो नहीं, सात! इस बार टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए नया इतिहास रच दिया है। इस बार भारत ने कुल 7 पदक अपने नाम किए हैं, जिसमें 1 गोल्ड, 2 रजत और 4 कांस्य पदक शामिल हैं। इसके साथ ही भारत पदक तालिका में 48वें स्थान पर रहा था। इससे पहले 2012 लंदन ओलंपिक में भी भारत ने 6 पदक अपने नाम किए थे। लेकिन इस बार टोक्यो ओलंपिक में भारत ने एक नया इतिहास भी रचा है। दरअसल 121 साल के सूखे के बाद एथलीट नीरज चोपड़ा ने भारत को गोल्ड मेडल दिलाया है। वहीं दूसरी तरफ भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने कांस्य जीतकर 41 साल बाद भारत का मान बढ़ाया है।
अगर भारतीय बेटियों की बात करें तो महिला वेटलिफ्टर मीराबाई चानू, स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधू, बॉक्सिंग में लवलीना बोरगोहेन और महिला हॉकी टीम ने भी देश का मान बढ़ाया है। वहीं स्टार पहलवान बजरंग पूनिया ने कुश्ती में कांस्य पदक जीता है और रवि दहिया ने भी कुश्ती में रजत पदक प्राप्त किया है। ऐसे में आज एस्ट्रोयोगी के ज्योतिषी आपको भारत के 7 पदक जीलने के पीछे किन विशेष ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति थी, इसके बारे में विस्तार से बताएंगे।
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दरअसल भारत की कुंडली का वृषभ लग्न है और 23 जुलाई 2021 को बुध मिथुन राशि में होना, शुक्र का चौथे भाव में दिग्बली होना, सूर्य का कर्क राशि में तृतीय भाव में होना, शनि का अपनी राशि यानि मकर में वक्री होना भारत के हित में था।
खेल और प्रतिस्पर्धा से जुड़ा क्षेत्र बुध और मंगल के अंतर्गत आता है।
बुध का अपनी राशि में होना उससे जुड़ी विषय वस्तु को बहुत अच्छे से फलीभूत करता है।
उसी प्रकार मंगल का सिंह राशि में होना और चौथे भाव में दसवें और एकादश भाव को तीव्रता से देखना कर्मफल को अत्यंत प्रचंड बनाता है।
सूर्य का तृतीय भाव में स्थापित होना विजय भाव को सशक्त बनाता है।
प्रतिस्पर्धा को छठे भाव में जाना जाता है और छठे भाव का स्वामी(शुक्र) का 10वें भाव से दृष्टि का संबंध से दर्शाता है कि जीतने के लिए प्रतिस्पर्धा में आना पड़ेगा।
ओलंपिक में प्रतिस्पर्धा से ही विजय की प्राप्ति हुई है, इसी वजह से भारत ने 2020 टोक्यो ओलंपिक में 7 पदक अपने नाम किए हैं।
वहीं शनि का अपने ही भाव में मकर राशि में वक्री होना, भारत के हित में था। वक्री ग्रह को प्रचंड़ चेष्टाबल प्राप्त होता है और जातक या देश उस कार्य को सिद्ध कर सकता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। शनि का नौवें भाव का स्थायी होना और वहीं गोचरस्थ होना भाग्योदय भी करता है। अंत में शनि की दशम दृष्टि और बृहस्पति की नवम दृष्टि छठें भाव में पड़ना, छठें घर से जुड़े फल की प्राप्ति कराता है। शनि परिश्रम कराते हैं और बृहस्पति फल देते हैं। लेकिन इस बात में कोई संशय नहीं है कि ओलंपिक में गए भारतीय दल ने कठिन परिश्रम किया है परंतु उपर्युक्त ग्रह स्थिति के होने से परिश्रम का फल शत प्रतिशत फलीभूत हुआ है।