ग्रह सभी कुंडली चार्ट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ग्रहों की स्थिति हर व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक या नकारात्मक तरीके से प्रभावित करती है। वैसे ही कुंडली में बना गुरु चांडाल योग(guru rahu chandal yog) आपके जीवन पर बुरा प्रभाव डालता है। आइए अब हम "गुरु चांडाल योग" का अर्थ समझते हैं। ग्रह बृहस्पति को गुरु के रूप में जाना जाता है, जबकि, "चांडाल" शब्द का अर्थ एक व्यक्ति है जो बहिष्कृत है और "योग" का अर्थ है 'संघ' या 'जुड़ना'।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, अगर किसी की कुंडली में राहु या केतु बृहस्पति के साथ स्थित हैं या गुरु का राहु या केतु के साथ दृष्टि संबंध है तो कुंडली में गुरु चांडाल योग बनता है, जिसके कारण व्यक्ति के जीवन में परेशानियां शुरू हो जाती हैं। ऐसा व्यक्ति अनैतिक या अवैध गतिविधियों में शामिल हो सकता है।
यदि कुंडली के पहले भाव में गुरु और राहु एक साथ बैठे होते हैं तो जातक संदिग्ध चरित्र वाला होता है और गलत तरीकों से धन अर्जित करने की कोशिश करता है।
वहीं दूसरे भाव में इस योग के बनने से जातक धनवान तो होता है लेकिन भोग विलासिता की चीजों पर धन अपव्यय करता है। गुरु के कमजोर होने पर जातक नशे की आदी हो सकता है।
कुंडली के तीसरे भाव में गुरु और राहु की युति जातक को साहसी और पराक्रमी तो बनाती है लेकिन राहु की मजबूत स्थिति जातक को गलत कार्यों के लिए कुख्यात कर देती है। जातक जुएं के जरिए धन कमाने लगता है।
यदि कुंडली के चौथे भाव में गुरु चांडाल योग बनता है तो जातक समझदार और बुद्धिमान होता है। लेकिन गुरु की स्थिति कमजोर होने के कारण व्यक्ति पारिवार के प्रति रुचि नहीं लेता है और घर में अशांति बनी रहती है।
कुंडली के पांचवें घर में गुरु और राहु की युति से संतान को कष्ट झेलना पड़ता है और संतान अनैतिक कार्यों में शामिल हो जाता है। गुरु की कमजोर स्थिति की वजह से उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता है और मन अस्थिर बना रहता है।
कुंडली के छठें भाव में इस योग के निर्माण से जातक बीमारियों से जूझता रहता है और उसकी कमर के नीच हमेशा दर्द बना रहता है।
यदि किसी जातक की कुंडली के सातवें भाव में गुरु कमजोरी और राहु बलवान होता है तो जातक के वैवाहिक जीवन में हमेशा विवाद बना रहता है और जीवनसाथी के साथ तालमेल बना पाना काफी मुश्किल होता है।
यदि कुंडली के आठवें घर में गुरु चांडाल योग बनता है तो जातक के बहुत चोट लगती है और जीवनभर दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। यहां तक कि राहु बलवान होने से जातक खुदकुशी की भी कोशिश कर सकता है।
यदि नौवें भाव में गुरु और राहु की युति होती है तो जातक का माता-पिता से हमेशा विवाद बना रहता है और समाज में अपयश की प्राप्ति होती है।
कुंडली के दशवें भाव में गुरु चांडाल योग बनने से जातक के मान-सम्मान, पद और प्रतिष्ठा में कमी आ जाती है और कार्यक्षेत्र में लगातार बदलाव करता रहता है।
कुंडली के ग्यारहवें भाव में इस योग के निर्माण से जातक गलत तरीके से धन कमाता है और मित्रों की संगति अच्छी नहीं होती है और अनैतिक कार्यों को करने में मन लगता है।
कुंडली के द्वादश भाव में गुरु कमजोर होने और राहु बलवान होने से व्यक्ति नास्तिक बन जाता है और धर्म की आड़ में लोगों को धोखा देता है।
जातक को गुरु और राहुल को शांत करने के लिए शांतिपाठ करवाना चाहिए।
इसके अलावा अपने माता-पिता, शिक्षक और वृद्ध लोगों की सेवा करनी चाहिए।
भगवान विष्णु की पूजा करने से और विष्णु सहस्रनाम का जाप करने से गुरु चांडाल योग के नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है।
2 मुखी रुद्राक्ष धारण करें जिससे राहु, केतु और गुरु की नकारात्मकता को दूर करने में मदद मिल सकती है।
·गुरु चांडाल दोष के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए भगवान गणेश की नियमित रूप से पूजा कर सकते हैं।
जातक सोने के साथ पीला नीलम पहन सकता है। हालांकि, पीला नीलम पहनने से पहले किसी ज्योतिषी से सलाह लेनी चाहिए।
बृहस्पति मंत्र “ओम ब्रम् ब्रीं ब्रौं सः गुरवे नमः” का नियमित रूप से ध्यान और जप करें।