
Pitru Paksha: क्या आपने कभी सोचा है कि घर में अचानक बीमारियां क्यों बढ़ जाती हैं, या मेहनत करने के बावजूद सफलता हाथ से क्यों निकल जाती है? कई बार ऐसी समस्याओं की जड़ किसी सामान्य कारण में नहीं, बल्कि पितृदोष में छिपी होती है। शास्त्रों में बताया गया है कि यदि पितरों की आत्मा असंतुष्ट रह जाए या उनकी उपेक्षा की जाए, तो वे नाराज़ होकर जीवन में रुकावटें डालते हैं।
यही कारण है कि पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध का इतना महत्व बताया गया है। क्योंकि जैसे भगवान की कृपा के बिना जीवन अधूरा है, वैसे ही पितरों का आशीर्वाद भी अनिवार्य माना गया है। अगर पितृदोष लग जाए तो संतान सुख में बाधा, करियर में रुकावट और आर्थिक संकट जैसी परेशानियां बार-बार सामने आती हैं। तो आखिर पितृदोष लगता क्यों है, इसके लक्षण क्या हैं और इससे छुटकारा पाने के उपाय कौन से हैं? आइए, विस्तार से जानते हैं।
हिंदू धर्म में पितरों का बहुत विशेष महत्व माना गया है। शास्त्रों के अनुसार जैसे देवताओं की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है, वैसे ही पूर्वजों का आशीर्वाद भी जीवन की हर सफलता के लिए जरूरी होता है। जब किसी व्यक्ति या परिवार पर पितरों की नाराज़गी होती है, तो इसे पितृदोष (Pitru Dosh) कहा जाता है। पितृदोष होने पर जीवन में बार-बार रुकावटें, आर्थिक संकट, विवाह और संतान सुख में अड़चनें, तथा स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ देखने को मिलती हैं। इसलिए हर साल पितृपक्ष में तर्पण, श्राद्ध और पितरों की पूजा करने का विधान बताया गया है ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद दें।
ज्योतिष और पुराणों में पितृदोष लगने के कई कारण बताए गए हैं। आइए इन्हें विस्तार से समझते हैं:
अकाल मृत्यु और अधूरी क्रिया कर्म- यदि परिवार में किसी सदस्य की असमय मृत्यु हो जाए और उसका अंतिम संस्कार विधिवत न हो, तो आत्मा भटकती रहती है। यह असंतोष पितृदोष का कारण बनता है।
कुंडली में ग्रह स्थिति- ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म कुंडली के दूसरे, आठवें या दसवें भाव में सूर्य और केतु साथ हों, तो पितृदोष बनता है। यह दोष पीढ़ी दर पीढ़ी भी चलता है।
पितरों की उपेक्षा- यदि कोई व्यक्ति बार-बार पितरों की स्मृति में श्राद्ध, तर्पण या दान नहीं करता, तो धीरे-धीरे पितृदोष का प्रभाव बढ़ने लगता है।
अनुचित कर्म या पाप- घर-परिवार या वंश में किए गए कुछ गंभीर पाप भी पितृदोष का कारण बनते हैं। ये दोष तब तक बने रहते हैं, जब तक पितरों की पूजा और तर्पण से उन्हें शांत न किया जाए।
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कई बार लोग समझ नहीं पाते कि उनके जीवन में समस्याओं का कारण पितृदोष हो सकता है। कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं:
खाने में बार-बार गंदगी आना- चाहे भोजन कितनी भी स्वच्छता से बनाया जाए, यदि बार-बार खाने में बाल, कंकड़ या कीड़े निकलें, तो यह पितृदोष का संकेत है।
घर में किसी का लगातार बीमार रहना- यदि परिवार में कोई न कोई व्यक्ति हमेशा बीमार रहता है, या गंभीर बीमारी लंबे समय तक बनी रहती है, तो यह भी पितृदोष का लक्षण माना गया है।
संतान सुख में बाधा- दंपति स्वस्थ होने के बावजूद संतान प्राप्ति में असफल हों, या संतान जन्म के तुरंत बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाए, तो यह भी पितृदोष का असर हो सकता है।
जीवन में रुकावटें- मेहनत करने के बावजूद सफलता न मिलना, बार-बार कार्य बिगड़ना और आर्थिक नुकसान होना भी पितृदोष के लक्षणों में गिने जाते हैं।
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अब जानते हैं वे 6 आसान और प्रभावी उपाय, जिन्हें पितृपक्ष या अमावस्या पर करने से पितृदोष दूर होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
पितृदोष से मुक्ति का सबसे प्रमुख उपाय है कि पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण अवश्य करें। इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वे परिवार को आशीर्वाद देते हैं।
पितृपक्ष में रोजाना या कम से कम एक बार दोपहर में पीपल के वृक्ष की पूजा करें। काले तिल मिले दूध से पीपल पर जल चढ़ाएं और फूल, अक्षत अर्पित करके पितरों से क्षमा मांगें।
घर की दक्षिण दिशा को यमलोक की दिशा माना जाता है। पितृपक्ष में रोजाना शाम को दक्षिण दिशा में तिल के तेल या घी का दीपक जलाना चाहिए। इससे पितृ प्रसन्न होते हैं और बाधाएं दूर होती हैं।
हर अमावस्या को पितरों की आत्मा की शांति के लिए दान और अन्न का वितरण करें। गाय, कुत्ते, कौए आदि जीवों को भोजन कराना भी पितरों को तृप्त करता है।
घर में पितरों की तस्वीर दक्षिण दिशा में लगाएं। रोजाना इसे साफ करें, फूल चढ़ाएं और हाथ जोड़कर क्षमा याचना करें। यह उपाय पितृदोष को शांत करता है।
पितृदोष शांति के लिए हवन, महामृत्युंजय जाप या पितृ शांति अनुष्ठान भी कराना लाभकारी होता है। यह उपाय न केवल दोष को कम करता है बल्कि पूरे परिवार की प्रगति में मदद करता है।
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हमेशा बुजुर्गों का सम्मान करें और उनकी सेवा करें।
किसी भी शुभ कार्य से पहले पितरों को याद करें।
पितृपक्ष में आलस्य न करके श्राद्ध और तर्पण जरूर करें।
अनाथ, गरीब और जरूरतमंदों को भोजन कराना पितरों को प्रसन्न करता है।
पितृदोष व्यक्ति के जीवन में बड़ी बाधाएं खड़ी कर सकता है। यह न सिर्फ स्वास्थ्य और संतान सुख को प्रभावित करता है, बल्कि करियर और धन के मार्ग में भी अड़चनें डालता है। लेकिन पितृपक्ष या अमावस्या पर किए गए छोटे-छोटे उपाय जैसे श्राद्ध, तर्पण, दान, दीपक जलाना और पीपल की पूजा करने से पितृदोष शांत होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
जो लोग इन उपायों को अपनाते हैं, उन्हें पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में धीरे-धीरे हर क्षेत्र में सफलता मिलने लगती है।