छठ पूजा (Chhath Puja) का पर्व हर साल आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है जो भगवान सूर्य और षष्ठी मैया की आराधना का दिन है। कब, कैसे और किस मुहूर्त में करें छठ पूजा, आइये जानते है।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पर्व या छठ पूजा की जाती है। इस पर्व को दिवाली के छह दिन बाद मनाया जाता है। छठ पूजा में भगवान सूर्य और छठ मैया (Chhathi Maiya) का पूजन तथा उन्हें अर्घ्य देने का रिवाज़ है। हमारे देश में सूर्य उपासना के लिए छठ पूजा के त्यौहार को सर्वाधिक पवित्र माना गया है। इस पर्व को वैदिक काल से ही मनाया जा रहा है।
इस लोकपर्व को बीते कुछ सालों में एक अलग पहचान मिली है। इस त्यौहार को मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्य बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहुत ही उत्साह एवं श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। अब इस पर्व की रौनक देश के अन्य हिस्सों में भी देखने को मिलती है।
छठ पूजा भगवान सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित होती हैं। इस दिन उनकी पूजा व उन्हें अर्घ्य देने का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य ही एकमात्र देवता हैं जो प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देते है और पृथ्वी पर समस्त प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ छठ (Chhath) पर छठी मैया की पूजा की भी परंपरा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, षष्ठी माता या छठी मैया संतानों को सुरक्षा प्रदान करती हैं एवं उन्हें दीर्घायु का आशीर्वाद देती हैं।
धार्मिक ग्रंथों में ब्रह्मा जी की मानस पुत्री षष्ठी मैया को कहा गया है। शास्त्रों में छठ मैया को माता कात्यायनी का स्वरूप माना गया है, जिनका पूजन नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर किया जाता है। बिहार-झारखंड की स्थानीय भाषा में षष्ठी देवी को ही छठ मैया कहा गया है। छठ पूजा से संबंधित किसी भी जानकारी के लिए एस्ट्रोयोगी पर देश के सर्वश्रेष्ठ ज्योतिषाचार्यों से संपर्क करें।
इस वर्ष छठ पूजा (Chhath Puja 2021) का पर्व 10 नवंबर, बुधवार के दिन मनाया जाएगा।
सूर्योदय का समय: प्रातःकाल 06 बजकर19 मिनट (10 नवम्बर)
सूर्यास्त का समय: संध्या 05 बजकर 41 मिनट (10 नवम्बर)
चार दिनों तक निरंतर चलने वाला लोक पर्व है छठ पूजा। इस चार दिवसीय उत्सव का आरंभ कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से होता है और कार्तिक शुक्ल की सप्तमी को छठ पूजा का समापन होता है। इसमें पहले दिन नहाय खाये,दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे व अंतिम दिन उषा अर्घ्य दिया जाता हैं।
आज का पंचांग ➔ आज की तिथि ➔ आज का चौघड़िया ➔ आज का राहु काल ➔ आज का शुभ योग ➔ आज के शुभ होरा मुहूर्त ➔ आज का नक्षत्र ➔ आज के करण
छठ पूजा का प्रथम दिन नहाय खाये के नाम से जाना जाता है जो 8 नवम्बर,सोमवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन घर की साफ-सफाई की जाती है और तले-भूने भोजन का सेवन पूरी तरह से वर्जित होता है और शाकाहारी भोजन ही किया जाता है।
नहाय खाय तिथि: 8 नवम्बर, सोमवार
सूर्योदय का समय: सुबह 06 बजकर 18 मिनट
सूर्योस्त का समय: शाम 05 बजकर 42 मिनट पर
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना या लोहंडा के नाम से जाना जाता है। खरना पर पूरे दिन का उपवास रखा जाता है और इस व्रत को करने वाला जातक पूरे दिन जल की एक बूंद तक ग्रहण नहीं करता है। संध्या के समय गुड़ से बनी खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन किया जाता हैं, बाद में इसे प्रसाद के रूप में परिवार के सदस्यों को दिया जाता है।
खरना व्रत की तिथि: 9 नवम्बर, मंगलवार
सूर्योदय का समय: सुबह 06 बजकर 18 मिनट पर
सूर्योस्त का समय: शाम 05 बजकर 42 मिनट पर।
कार्तिक शुक्ल की षष्ठी या छठ पर्व (Chhath festival) के तीसरे दिन सूर्य देव को संध्या अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा के लिए बाँस से बनी हुई टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि को सजाया जाता है, जिसके बाद व्रती अपने परिवार सहित सूर्य देव को अर्घ्य देता हैं। सूर्य देव को अर्घ्य के समय जल और दूध अर्पित किया जाता है और प्रसाद भरे सूप द्वारा छठी मैया की उपासना की जाती है। सूर्य देव के पूजन के बाद रात में छठी माता के भजन गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी और सुनाई जाती है।
छठ पूजा की तिथि: 10 नवम्बर,बुधवार
सूर्योदय का समय: सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर,
सूर्योस्त का समय: शाम 05 बजकर 41 मिनट पर।
छठ पर्व का चौथा एवं अंतिम दिन, इस दिन प्रातःकाल सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा के अंतिम दिन सूर्योदय से पूर्व नदी के घाट या तालाब पर जाकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य देव के पूजन व अर्घ्य के बाद छठ मैया से संतान की रक्षा एवं परिवार की सुख-शांति की कामना की जाती है। पूजा के उपरांत व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और प्रसाद के सेवन से व्रत खोलते हैं, इस प्रक्रिया को पारण या परना कहा जाता है।
उषा अर्घ्य की तिथि: 11 नवम्बर, गुरूवार
सूर्योदय का समय: सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर,
सूर्योस्त का समय: शाम 05 बजकर 41 मिनट पर।
छठ पूजा को सम्पन्न करने के लिए निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है। सभी सामग्री को एकत्रित करने के बाद सूर्य देव को विधिपूर्वक अर्घ्य दें।
बांस की तीन बड़ी टोकरी, बांस या फिर पीतल के बने तीन सूप, थाली, दूध और गिलास ले।
लाल सिंदूर, दीपक, चावल, हल्दी, नारियल, सुथनी, गन्ना, शकरकंदी और सब्जी लें।
एक बड़ा नींबू, पान, शहद, नाशपती, कैराव, कपूर, साबुत सुपारी, मिठाई और चंदन लें।
भोग लगाने के लिए मालपुआ, ठेकुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा और चावल के बने लड्डू लें।
इस प्रकार दें अर्घ्य - उपरोक्त सभी सामग्री को बांस की टोकरी में रखें। सूर्य देव को अर्घ्य देते समय सूप में सारा प्रसाद रखें और सूप में ही दीपक प्रजवल्लित करें। इसके बाद नदी के जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
छठ पूजा के दौरान आपको अनेक नियमों का पालन करना चाहिए। हम आपको बताने जा रहे हैं कि छठ पूजा के दौरान भूल से भी न करें ये काम।
छठ पूजा के सभी अनुष्ठानों को विवाहित महिला द्वारा ही संपन्न करना चाहिए।
छठ पूजा के दौरान लोगों को विशेष रूप से साफ-सफाई और स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए।
एक परंपरा के अनुसार, छठ पूजा के दौरान परिवार के पुरुषों और स्त्रियों का रात में फर्श पर सोना अनिवार्य है।
पूजा प्रसाद को उपयोग करने से पूर्व बर्तनों को साफ करना चाहिए।
छठ पूजा के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखते हुए घर के भीतर एक अस्थायी रसोईघर का निर्माण किया जाता है।
छठ पूजा के प्रसाद में प्रयोग होने वाला ठेकुआ घर पर ही बनाया जाता है।
विवाहित स्त्रियों को विशेष रीति-रिवाज़ों एवं नियमों का पालन करना होता हैं जैसेकि वे अपने हाथों द्वारा पकाये हुए भोजन को ग्रहण नहीं कर सकती हैं और सिले हुए कपड़े नहीं धारण कर सकती हैं।
एस्ट्रोयोगी परिवार की तरफ से आपको और आपके परिवार को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं।