रक्षाबंधन यानि राखी, इस त्यौहार को लेकर पूरे भारतवर्ष में विशेषकर हिंदूओं में पूरा उल्लास दिखाई देता है। भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक बन चुका यह त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। वर्तमान में बाज़ार ने हमारे लगभग हर रीति-रिवाज़, तीज-त्यौहार को मनाने के मापदंड लगभग बदल दिये हैं। चकाचौंध में इन त्यौहारों के वास्तविक मूल्य भी लुप्त होते जा रहे हैं। रक्षाबंधन से लगभग एक महीने पहले ही बाज़ारों में रौनक शुरु हो जाती है। दुकानें सजाई जाने लगती हैं। रंग-बिरंगी राखियों के स्टॉल भी लगाये जाने लगते हैं। रेशम के धागों से लेकर बनावटी फूलों की राखियां सजी होती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं वैदिक परंपरा के अनुसार जो राखियां आप बाज़ार से खरीदते हैं उनका महत्व केवल प्रतीकात्मक रूप से त्योहार को मनाने जितना ही है। शास्त्रानुसार रक्षाबंधन के दिन बहनों को भाई की कलाई पर वैदिक विधि से बनी राखी जिसे असल में रक्षासूत्र कहा जाता है बांधी जानी चाहिये। इसे बांधने की विधि भी शास्त्रसम्मत होनी चाहिये। रक्षाबंधन पर वैदिक ज्योतिषाचार्य परामर्श करने के लिये यहां क्लिक करें
अब सवाल यह उठता है कि बाज़ार से राखी न लाकर घर पर वैदिक राखी कैसे बनाई जाये। तो इसका समाधान भी हम आपको यहां दे रहे हैं। दरअसल वैदिक राखी बनाने के लिये आपको किसी ऐसी दुर्लभ चीज़ की आवश्यकता नहीं है जिसे प्राप्त करना आपके लिये कठिन हो बल्कि इसके लिये बहुत ही सरल लगभग घर में इस्तेमाल होने वाली चीज़ों की ही आवश्यकता होती है। वैदिक राखी के लिये दुर्वा यानि कि दूब जिसे आप घास भी कह सकते हैं चाहिये, अक्षत यानि चावल, चंदन, सरसों और केसर, ये पांच चीज़ें चाहिये। हां एक रेशम का कपड़ा भी चाहिये क्योंकि उसी में तो इन्हें डालना है।
दुर्वा, चावल, केसर, चंदन, सरसों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर एक पीले रंग के रेशमी कपड़े में बांध लें यदि इसकी सिलाई कर दें तो यह और भी अच्छा रहेगा। इन पांच पदार्थों के अलावा कुछ राखियों में हल्दी, कोड़ी व गोमती चक्र भी रखा जाता है। रेशमी कपड़े में लपेट कर बांधने या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे (मौली) में पिरो दें। आपकी राखी तैयार हो जायेगी।
इसके साथ ही एक राखी कच्चे सूत से भी बनाई जाती है। ब्राह्मण अपने जजमान को यही रक्षासूत्र बांधते थे। इसमें कच्चे सूत के धागे को हल्दीयुक्त जल में भिगोकर उसे सुखाया जाता है। इस तरह कच्चे सूत की राखी तैयार हो जाती है।
दोनों ही राखियों में प्रयुक्त होने वाली सामग्री का विशेष महत्व माना जाता है। कच्चे सूत व हल्दी से बना रक्षासूत्र शुद्ध व शुभ माना जाता है। मान्यता है कि सावन के मौसम में यदि रक्षासूत्र को कलाई पर बांधा जाये तो इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण भी करता है।
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वहीं दुर्वा, अक्षत, केसर, चंदन, सरसों से बना रक्षासूत्र भी शुभ व सौभाग्यशाली माना जाता है। विभिन्न धार्मिक क्रिया-कलापों में इन वस्तुओं का इस्तेमाल होते हुए आपने देखा होगा। हल्दी, चावल और दूब तो विशेष रूप से लगभग हर कर्मकांड, पूजा आदि में प्रयोग की जाती है। दरअसल रक्षासूत्र में इनके इस्तेमाल के पीछे की मान्यता भी यही है कि जिसे भी रक्षासूत्र बांधा जा रहा है उसकी वंशबेल दूब की तरह ही खूब फले-फैले, भगवान श्री गणेश को प्रिय होने से इसे विघ्नहर्ता भी माना जाता है। वहीं अक्षत यानि चावल आपसी रिश्तों में एक दूसरे के प्रति श्रद्धा के प्रतीक हैं साथ ही दीर्घायु स्वस्थ जीवन की कामना भी इनमें निहित मानी जाती है। केसर तेजस्विता के लिये तो चंदन शीतलता यानि संयम के लिये एवं सरसों हमें दुर्गुणों के प्रति तीक्ष्ण बनाये रखे इस कामना के साथ रखी जाती है। हल्दी, गोमती चक्र, कोड़ी भी शुभ माने जाते हैं।
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां अभिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
इस मंत्र का अभिप्राय है कि जिस रक्षासूत्र से महाबली, महादानी राजा बली को बांधा गया था उसी से मैं तुम्हें बांध रहा/रही हूं। हे रक्षासूत्र आप चलायमान न हों यही पर स्थिर रहें। इस रक्षासूत्र को पुरोहित द्वारा राजा को, ब्राह्मण द्वारा यजमान को, बहन द्वारा भाई को, माता द्वारा पुत्र को तथा पत्नी द्वारा पति को दाहिनी कलाई पर बांधा जा सकता है।
इस विधि द्वारा जो भी रक्षासूत्र को बांधता है वह समस्त दोषों से दूर रहकर वर्ष भर सुखी जीवन व्यतीत करता है –
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत।
स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।।
कुल मिलाकर वैदिक रीति रिवाज़ों से बने व बंधे रक्षासूत्र से ही वास्तव में रक्षाबंधन के पर्व की सार्थकता होती है। आप सबको रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं।
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