वराह जयंती – कब और क्यों लिया भगवान विष्णु ने वराह अवतार?

Sat, Sep 04, 2021
टीम एस्ट्रोयोगी
 टीम एस्ट्रोयोगी के द्वारा
Sat, Sep 04, 2021
Team Astroyogi
 टीम एस्ट्रोयोगी के द्वारा
article view
480
वराह जयंती – कब और क्यों लिया भगवान विष्णु ने वराह अवतार?

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।

 

श्रीमदभगवद्गीता के इस श्लोक का भावार्थ है कि जब जब धर्म हानि होने लगती है और अधर्म का बोलबाला होने लगता है तब-तब मैं स्वयं जन्म लेता हूं। भगवान विष्णु के दशावतार की कथाएं भगवान श्री कृष्ण द्वारा कहे गये इस श्लोक की सार्थकता को ही बयां करती हैं। विष्णु के आठवें अवतार तो स्वयं श्री कृष्ण थे उनका 9वां अवतार महात्मा बुद्ध माने जाते हैं लेकिन उस पर मतभेद हैं। दसवें अवतार की फिलहाल कल्पना मात्र है कलयुग के अंत में दसवें अवतार कल्कि के अवतरित होने की कथाएं मिलती हैं। लेकिन हम यहां बात करेंगें भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह की। दरअसल मान्यता है कि भाद्रपद यानि भादों मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान विष्णु अपने तृतीय अवतार वराह के रूप में अवतरित हुए थे। इसलिये इस माह की शुक्ल तृतीया को वराह जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस 2021 में वराह जयंती 09 सितंबर को है। आइये जानते हैं भगवान विष्णु को आखिर वराह रूप में अवतरित होने की ऐसी क्या आवश्यकता पड़ी? ऐसा कौन था जिसकी वजह से हर तरफ अधर्म का प्रसार होने लगा था?

 

वराह जयंती तिथि व समय

तिथि  - 09 सितंबर 2021, दिन बृहस्पतिवार

वराह जयन्ती मुहूर्त - 01:33 पी एम से 04:03 पी एम

तृतीया तिथि प्रारम्भ - रात 02 बजकर 33 मिनट (09 सितम्बर 2021) से 
तृतीया तिथि समाप्त - रात 12 बजकर 18 मिनट (10 सितम्बर 2021) तक

 

वराह अवतार की कथा

भगवान विष्णु के वराह रूप में अवतरित होने का पौराणिक किस्सा कुछ यूं है। कश्यप पत्नी एवं दैत्य माता दिति के गर्भ से हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु ने जन्म लिया। चूंकि इनका जन्म सौ वर्षों के गर्भ के पश्चात हुआ था। इस कारण जन्म लेते ही उनका रूप विशालकाय हो गया। यह धारणा भी तभी प्रचलित हुई कि दैत्य जन्म लेते ही बड़े हो जाते हैं। इनके जन्म लेते ही समस्त लोकों में अंधकार छाने लगा। अब हिरण्यकशिपु में अमर एवं अजेय होने की महत्वाकांक्षा जागी। उसने कठिन तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और वरदान स्वरूप ब्रह्मा जी से देव, दानव, मानव किसी से भी पराजित एवं न मारे जाने का वरदान प्राप्त किया। ब्रह्मा जी से वरदान पाने के पश्चात उसके अत्याचार बढ़ने लगे। देखते देखते ही देखते उसने समस्त लोकों पर कब्जा कर लिया और हरिण्याक्ष इसमें बराबर उसकी मदद करता रहा।

 

आज का पंचांग ➔  आज की तिथिआज का चौघड़िया  ➔ आज का राहु काल  ➔ आज का शुभ योगआज के शुभ होरा मुहूर्त  ➔ आज का नक्षत्रआज के करण

 

एक बार हरिण्यकश्यप ने वरूण देव को युद्ध के लिये ललकारा लेकिन वरूण ने विनम्रता से कहा कि आपसे टक्कर लेने साहस अब मुझमें कहां केवल भगवान विष्णु ही हैं जो तुम जैसे बलशाली से युद्ध करने में समर्थ हैं। जब वरुण देव ने भी हाथ खड़े कर दिये तो वह युद्ध के लिये लालायित भगवान विष्णु की खोज में निकल पड़ा, नारदमुनि से उसे सूचना मिली कि भगवान विष्णु वराह अवतार लेकर रसातल से पृथ्वी को समुद्र से ऊपर ला रहे हैं। इसके पश्चात युद्ध उन्मादी हरिण्याक्ष समुद्र के नीचे रसातल तक जा पंहुचा। वहां का दृश्य देखकर वह आश्चर्य चकित हुआ। उसने देखा कि वराह रूपी भगवान विष्णु अपने दांतो पर धरती उठाए चला जा रहे है। उसने भगवान विष्णु को ललकारा। लेकिन वह शांत चित से आगे बढ़ते रहे। वह उन्हें तरह-तरह के कटाक्षों से उकसाने का प्रयास करता लेकिन भगवान तो भगवान ठहरे केवल मुस्कुरा कर रह जाते और आगे बढ़ते रहते।

 

भगवान विष्णु की कृपा पाने के सरल ज्योतिषीय उपाय जानने के लिये एस्ट्रोयोगी पर देश के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यों से परामर्श करें। ज्योतिषी से अभी बात करने के लिये यहां क्लिक करें।

 

जब भगवान विष्णु अपना काम पूर्ण कर चुके और उचित आधार देकर पृथ्वी को स्थापित कर दिया तो उन्होंने हिरण्याक्ष से कहा कि सिर्फ बातें ही करना जानते हो या लड़ने का साहस भी रखते हो। मैं तुम्हारे सामने हूं, क्यों नहीं मुझ पर प्रहार करते? उनके इतना कहने भर की देर थी कि बिना कुछ सोचे समझे वह आक्रमण के लिये आगे बढ़ गया लेकिन जैसे ही उसने वराहरूपी भगवान विष्णु पर अपनी गदा से प्रहार किया भगवान विष्णु ने अगले ही पल उसकी गदा छीन उसे दूर फेंक दिया। इसके बाद क्रोध में आग बबूला हो वह त्रिशूल से भगवान विष्णु से उनकी ओर झपटा। पलक झपकते ही भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से त्रिशूल के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। जब हथियारों के वार विफल होने लगे तो वह मायावी रूप धारण करने लगा। अपनी माया से भगवन को भ्रमित करने के प्रयास करने लगा। जब वह सारे प्रपंच कर चुका तो भगवान विष्णु ने उसका संहार किया। भगवान के हाथों मृत्यु भी मोक्ष देती है। हरिण्याक्ष सीधा बैंकुठ लोक गमन कर गया।

 

हरिण्याक्ष वध और वराह अवतार के बारे में भागवत पुराण की कथा भी मिलती है। इस कथा के अनुसार ब्रह्मा ने सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिये मनु एवं सतरूपा की रचना की लेकिन इसके लिये उन्हें भूमि की आवश्यकता थी जो कि हरिण्याक्ष नामक दैत्य के कब्जे में थी सागर के तल में वह पृथ्वी को अपना तकिया बनाकर सोता था। देवता उस पर आक्रमण न कर दें इसलिये उसने विष्ठा का घेरा भी सुरक्षा के लिये बना लिया था। अब ब्रह्मा जी के सामने संकट यह था कि कोई भी देवता विष्ठा से पास नहीं फटकेगा ऐसे में पृथ्वी को मुक्त कैसे करवाया जा सकता है। लेकिन हर संकट का समाधान अंतत: नारायण के रूप में ही मिलता है। उन्होंने बहुत विचार किया और इस निर्णय पर पंहुचे कि शूकर ही ऐसा जीन है जो विष्ठा के पास जा सकता है अत: ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु का ध्यान किया और अपनी नासिका से वराह नारायण को जन्म दिया और पृथ्वी को ऊपर लाने की आज्ञा दी। तब वराह रूपी भगवान विष्णु ने हरिण्याक्ष का संहार कर भू देवी को उसके चंगुल से मुक्त करवाया।

 

इस प्रकार भगवान विष्णु ने हरिण्याक्ष का वध करने उद्देश्य से ही वराह अवतार के रूप में जन्म लिया। संयोग से जिस दिन वराह रूप में भगवान विष्णु प्रकट हुए वह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी इसलिये इस दिन को वराह जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। 

 

यह भी पढ़ें

शिव वृषभ अवतार - क्यों किया विष्णु पुत्रों का संहार?   |   जानें विष्णु के किस अवतार में थी कितनी कलाएं   |   जानें भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम की कहानी

महाभारत – किसने लिया किसका अवतार   |   भगवान शेषनाग के अवतार थे श्री बलराम

article tag
Hindu Astrology
Vedic astrology
article tag
Hindu Astrology
Vedic astrology
नये लेख

आपके पसंदीदा लेख

अपनी रुचि का अन्वेषण करें
आपका एक्सपीरियंस कैसा रहा?
facebook whatsapp twitter
ट्रेंडिंग लेख

ट्रेंडिंग लेख

और देखें

यह भी देखें!